Saturday, August 29, 2009

एक बारिश की शाम

औरत का दिल ईश्वर ने ऐसा बनाया है कि हर वक़्त प्यार के खुमार में डूबा रहता है कुछ नया खोजता सा ,कुछ नया रचता सा। रजनीश ज़ी के लफ़्ज़ो में .. सारी तहज़ीब स्त्री के आधार पर बनी,घर ना होता तो, नगर ना होते ... नगर ना होते ,तो तहज़ीब ना बनती ...मर्द और औरत दोनो के सहज मन अलग -अलग होते हैं . .इस लिए प्रेम मर्द के लिए बंधन हो जाता है और औरत के लिए मुक्ति का मार्ग, पर वह बंधे रहना चाहती है सिर्फ़ अपने प्रियतम के प्यार से ..उसको खोने का डर उस पर हर वक़्त हावी रहता है ...इसी ख्याल पर बुनी गई है यह कहानी ...

वो बहुत सुंदर नही थी और नाम था उसका मीता ....पर अपने आपको सज़ा के रखना उसे ख़ूब आता था बुद्धिमान थी ,.वक़्त के अनुसार चलना जानती थी ।.पैसा पास था खर्च करना उसका शौक था, जो चीज पसंद आ जाती ले लेती, बिना सोचे की यह कितने की है !घर सजाना और दूसरों का ध्यान सदा कैसे अपनी तरफ़ रखना है यह उसको अच्छी तरह से आता था ! शादी शुदा थी ..एक प्यारा सा बेटा था .... पति साहिल जो हर पल उसके चारों ओर घूमता रहता .....वह जो चीज़ चाहती ख़रीद लेती ....और साहिल हर पल उसको प्यार करके कहता ' तुम्हारी लाई हर चीज़ सुंदर .. ...तुम्हारी हर ख़ुशी मेरी ख़ुशी ."".बस वो सुन के इठला उठती अपने पर, और मुस्करा कर उसकी बाहों में समा जाती !
एक शाम मौसम बहुत सुहाना था सोचा चलो आज बाज़ार घूम के आते हैं |साहिल के आने में अभी देर थी
उसने कार उठायी और बाज़ार की तरफ चल पड़ी ! यूँ ही घूमते-घूमते उसकी नज़र एक बहुत ख़ूबसूरत, कान के बूंदों पर पड़ गई ..सात रंगो से सजे वो बूंदे जैसे उस को अपनी तरफ बुला रहे थे |वह दुकान के अन्दर गई और दाम पूछे पर उस वक्त जो कीमत दूकानदार ने बतायी ,उतने पैसे उसके पास नही थे ..थोड़े से पैसे दे कर उसने वह बूंदे अपने नाम करवा लिए और फ़िर आ के लेने की बात कह कर दुकान से बाहर आ गई ..

जब बाहर आई तो बारिश शुरू हो चुकी थी वह अपनी कार की तरफ़ गई तो एक मासूम सी सुंदर जवान लड़की उसके पास आ के खड़ी हो गयी ..और बोली कि वह बहुत भूखी है.कुछ पैसे दे ,जिस से वो खाना खा सके !
मीता ने उसको सिर से पाँव तक देखा ....फटे कपड़ो में भी उसमें एक कशिश थी , पर्स खोल के पैसे देने ही लगी थी कि एक विचार उसके दिल में आया ..कि यह इस हालत में क्यों है ??यहाँ पूछा तो यह बताएगी नही क्यों न इसको अपने घर ले जाऊं इसकी कहानी भी पूछ लूंगी और खाना भी खिला दूंगी ,अगली किटी पार्टी में कुछ तो नया सुनाने को और अपनी अमीर सहेलियों पर कुछ तो रुआब पड़ेगा ,.यह सोच के उसके होंठो पर एक मुस्कुराहट आ गयी ...

उसने उस लड़की से कहा .." मेरे साथ मेरे घर चलो ..मैं तुम्हे भर पेट खाना खिलाउँगी.."
लड़की सहम गयी ... 'नहीं नहीं ..कही आप मुझे किसी आश्रम में तो नही भेज देंगी ..'
.'अरे नही "मीता बोली
बारिश बहुत तेज है और यहाँ तुम्हे अब खाने को भी क्या मिलेगा ..तुम मेरे साथ चलो यही पास ही मेरा घर है खा पी के फिर अपनी राह चली जाना ".....भूखे को अपनी बातों में फंसाना कौन सा मुश्किल काम था ...वो लड़की उसके साथ आ गयी ।

कार में उसको बिठाकर मीता घर की तरफ़ चल पड़ी ...लड़की डरी सहमी सी कार में बैठी थी ,यह देख के मीता ने उसको कहा घबराने की जरुरत नही है ..मैं भी औरत हूँ तुम्हे मुझ से कोई नुकसान नहीं होगा |मानव दिल की थाह कौन नाप सका है जो वही मासूम लड़की नाप लेती ...उधर मीता कार चलाते हुए सोच रही थी यह गरीब लड़की भी जान ले कि अमीर लोगो के पास भी दिल होता है वो भी मदद करना जानते हैं ...क्या करेगी दो रोटी खायेगी अपनी कहानी सुना के चली जायेगी ,पर इस से जो मेरे पास कहानी बनेगी उसकी "'वाह वाही ''तो अनमोल है .....यह सोचते सोचते वह घर के पास आ गई ...कार बरामदे में खड़ी करके उसने लड़की को बहुत प्यार से अन्दर आने को बोला .. वो मासूम लड़की अन्दर आ के उसके घर की सजावट देख के और भी सहम गई .. और वो सहम के एक कोने में खड़ी हो गयी

अरे बाबा !!"'डरो मत ..आराम से रहो "" यह कह कर उसने अपनी नौकरानी को आवाज़ दी ... उस लड़की के लिए खाना ले के आए और उसके लिए चाय ले आए !
अरे !!!!""तुम्हारे तो सब कपड़े भीगें हैं ''..ठहरो जब तक खाना आता है तुम यह मेरा पुराना सलवार कमीज पहन लो ..
लड़की बोली नहीं नहीं बस आप खाना दे दो मैं यूं ही ठीक हूँ ....अरे !नही नही तुम्हे सर्दी हो जायेगी कह कर उसने उसको जबरदस्ती अपने पुराने कपड़े थमा दिए| वह अपनी दयालुता दिखाने का कोई मौका नही छोड़ना चाहती थी और जब वह उसका पुराना सूट पहन के आई तो मीता उसको देख के हैरान हो गई ,उसका रूप तो और निखर आया था जरुर यह किसी भले घर की लड़की है ..शायद किन्ही बुरे हालातों में फंस कर इस बेचारी की यह हालत हो गई है ...मीता के दिल में उस लड़की के बारे में जानने की उत्सुकता बढती जा रही थी ...वह जल्द से जल्द उसके बारे में सब जान लेना चाहती थी

अभी वो उस से कुछ पूछना शुरू करती कि....साहिल कमरे में आ गया .. एक अजनबी को देख कर हैरानी से वही खड़ा रह गया ...बोला यह कौन?.मीता एक दम से बोली यह मेरी मेरी जान पहचान की है .आज अचानक रास्ते में मिल गई !"".. ओह्ह....ठीक है अच्छा ज़रा तुम मेरे साथ दूसरे कमरे में आ सकोगी ..मुझे तुमसे कुछ कहना है .... साहिल ने मीता से कहा...

मीता उस लड़की से बोली तुम बैठो ..मैं आती हूँ पाँच मिनिट में ...कह कर वो साहिल के पीछे-पीछे आ गयी ..साहिल ने कहा ""अब बताओ यह कौन है ?"" मैंने तो इनको पहले कभी नही देखा .और बहुत मासूम सी लग रही है ,कुछ डरी सहमी सी भी है ,पूरी बात बताओकि यह कहाँ से आई हैं !!
मीता ने सब बात बताई ...साहिल ने हँस के कहा .."'वाह !! तुम पागल हो इतना तो मैं जानता था ..पर यह भी कर लोगी सिर्फ़ वाह-वाही के लिए .. यह नही जनता था""! .फ़िर शरारत से हंस के बोला वैसे तुम इसको यहीं रखने वाली हो या खाना खिला के इसकी कहानी सुन के यहाँ से रफा दफा कर दोगी, वैसे किसी भले घर की लगती है और बहुत सुंदर भी है . ..मैं तो कमरे में आ के ठगा सा खड़ा रह गया ... उसको देखते हुए जैसे उसको ईश्वर ने फ़ुरसत में बनाया है ....सोच लो यदि तुम उस को यहाँ रखने की सोच रही हो, रात तक तो कुछ भूल ना कर बैठो कह कर शरारत से मुस्कुराने लगा !
""अजीब इंसान हो तुम ""इतना कह कर ..मीता वापस कमरे में आ गयी .!"सुंदर ,,ठगा सा रह गया "..यह लफ्ज़ उसके कानो में गूंजने लगे . अब उसका दिमाग जैसे घड़ी की दो सुइयों की तरह साहिल की बातों पर अटक के रह गया था ,अब उसको उस लड़की के बारे में जानने में कोई दिलचस्पी नही रह गई थी !
सोचते सोचते उसका दिमाग़ भन्ना गया ... वो तेज़ी से उठी ,, कुछ पैसे उस लड़की के हाथ में थाम के जाने को बोल दिया और कपड़े बदल के ..दुबारा अच्छे से तैयार हो के साहिल के पास गयी !
साहिल ने पूछा क्या हुआ इतनी जल्दी सुन ली उसकी कहानी ..जाओ ,तुम सुनो मैं यही हूँ अभी कह कर वह फ़िर शरारत से मुस्करा दिया .. .
मीताने कहा कि वो लड़की नही रुकना चाहती थी .. मैने उसको कुछ पैसे दे के भेज दिया .. अब मैं ज़बरदस्ती तो उसको नही रोक सकती थी ना . यह कहते हुए वो मुस्करा के साहिल के सीने से लग गयी ... सुन कर साहिल चुप हो गया और धीरे से हँसने लगा |
उसने साहिल से पूछा आज बाज़ार में बहुत सुंदर से बूंदे देखे हैं .".कुछ पैसे दे आई हूँ और कुछ देकर लाने हैं ..."साहिल ने मुस्करा के उसको अपने सीने से लगा लिया और बोला...ले लेना ....तुम्हे मैंने कब किस चीज के लिए मना किया है ...
खिड़की पर पड़े गुलदान में रखे गुलाब मुस्करा रहे थे ,बाहर का समां बारिश होने से भीगा भीगा था ...और मीता साहिल के सीने से लगी अपने सवाल के जवाब में सिर्फ़ एक बात सुनना चाहती थी ... कि ... क्या वह सच में सुंदर है .....???????उतनी ही जिसको देखकर साहिल ठगा सा देखता रह गया था !

Tuesday, August 25, 2009

मिलती कोई राह

Wednesday, August 12, 2009

उलझने ....


कई उलझने हैं ..........
कई रोने के बहाने हैं ...
कई उदास बातें हैं ..
कई तन्हा रातें हैं ..
पर ........पर ....
जब भी तेरी नजरें मेरी नजरो से
तेरी धड़कने मेरी धडकनों से
और तेरी उँगलियाँ मेरी ऊँगलियों से
उलझ जाती है ..........
तो सारी उलझने
सारी उदास बातें ,तन्हा रातें
ना जाने कैसे खुद बा खुद सुलझ जाती है ..........

Thursday, August 06, 2009

अक्षर अक्षर जोड़ के बना यूँ शब्द संसार ..



जब इंसान ने अपने विकास की यात्रा आरंभ की तो इस में भाषा का बहुत योगदान रहा | भाषा समझने के लिए वर्णमाला का होना जरुरी था क्यों कि यही वह सीढी है जिस पर चल कर भाषा अपना सफ़र तय करती है | वर्णमाला के इन अक्षरों के बनने का भी अपना एक इतिहास है .| .यह रोचक सफ़र शब्दों का कैसे शुरू हुआ आइये जानते हैं ...जब जब इंसान को किसी भी नयी आवश्यकता की जरूरत हुई ,उसने उसका आविष्कार किया और उसको अधिक से अधिक सुविधा जनक बनाया| २६ अक्षरों कीवर्णमाला को भले ही अंग्रेजी वर्णमाला को रोमन वर्णमाला कहा जाए लेकिन रोमन लोगों ने इसको नहीं ईजाद किया था | उन्होंने सिर्फ लिखित भाषा को सुधार कर और इसको नए नए रूप में संवारा| हजारों वर्षों से कई देशों में यह अपने अपने ढंग से विकसित हुई और अभी भी हो रही है | वर्णमाला के अधिकतर अक्षर जानवरों और आकृतियों के प्राचीन चित्रों के प्रतिरूप ही है ..|

इसका इतिहास जानते हैं कि यह कैसे बनी आखिर | .३००० ईसा पूर्व में मिस्त्रवासियों ने कई चित्र और प्रतीक बनाए थे | हर चित्र एक अक्षर के आकार का है| इसको चित्रलिपि कहा जाता था लेकिन व्यापार करने लिए यह वर्णमाला बहुत धीमी गति की थी | खास तौर पर जो उस वक़्त विश्व के बड़े व्यपारी हुआ करते थे,१२०० इसा पूर्व के फिनिशियिंस के लिए | इस लिए उन्होंने उन अक्षरों को ही विकसित किया जिनमें प्रतीक से काम चल सकता था हर प्रतीक एक ध्वनी का प्रतिनिधितव करता था और कुछ शब्द मिल कर एक शब्द की ध्वनि बनाते थे| ...८०० इसा पूर्व में यूनानियों ने फिनिशिय्न्स की वर्णमाला को अपना लिया ,लेकिन फिर पाया कि इन में व्यंजन की ध्वनियां नहीं है .जबकि उन्हें अपनी भाषा में इसकी जरूरत थी | इसके बाद उन्होएँ १ फ़िनिशियन अक्षर जोड़ लिए इस तरह २४ अक्षरों वाली वर्णमाला तैयार हुई |
११४ ईसवीं में रोम में लोगों ने वर्णमाला को व्यवस्थित किया बाद में इंग्लॅण्ड में नोमर्न लोगों नने इस वर्णमाला में जे ,वी और डबल्यू जैसे अक्षर जोड़े और इस तरह तैयार हुई वह नीवं जिस पर आज की अंग्रेजी वर्णमाला कई नीवं टिकी है

शब्दों का जादू यूँ ही अपने रंग में दिल पर असर कर जाता है ...पर अक्सर पहले चित्र जानवर आदि की आकृतियों से ही बनाए गए थे ...जैसे अंग्रेजी का केपिटल क्यु बन्दर का प्रतीक है पुराने चित्रों में इस क्यु को सिर कान और बाहों के साथ उकेरा गया है
सबसे छोटे शब्द यानी प्रश्नवाचक और विस्मयबोधक चिन्हों के बारे में १८६२ में फ्रांस में एक बड़े लेखक विकटर हयूगो का आभारी होना पड़ेगा हुआ यूँ कि उन्होंने अपना उपन्यास पूरा किया और छुट्टी पर चले गए लेकिन यह जानने को उत्सुक थे कि किताबे बिकती कैसे हैं ? साथ ही वह सबसे चिन्ह भी गढ़ना चाहते थे सो उन्होंने प्रकाशक को एक पत्र लिखा :?प्रकाशक भी कुछ कम कल्पनाजीवी नहीं थे ,वह भी सबसे छोटा अक्सर बनाने का रिकॉर्ड लेखक हयूगो के साथ बनना चाहते थे सो उन्होंने भी जवाब में लिखा :!
और इसी सवाल जवाब के साथ चलते हुए वर्णमाला में सबसे छोटे अक्सर बने जिन्हें चिन्ह कहा गया ...
सबसे मजेदार बात यह है कि सबसे लम्बे वाक्य लिखने का श्री भी हयूगो को ही जाता है वह वाक्य भी उनके उपन्यास का है जिस में ८२३ अक्षर ,९३ अल्प विराम चिन्ह ,५१ अर्ध विराम ,और ४ डेश आये थे .लगभग तीन पन्नो का था यह वाक्य
अंडर ग्राउंड अंगेरजी भाषा का एक मात्र ऐसा शब्द है जिसका आरम्भ और अंत यूएनडी अक्षरों से होता है
टैक्सी शब्द का उच्चारण भारतीय ,अंग्रेज ,फ्रांसीसी ,जर्मन ,स्वीडिश ,पुर्तगाली और डच के लोग समान रूप से करते हैं ..

इस तरह यूँ शुरू हुआ अक्षरो का सफ़र और अपनी बात हर तक पहुंचाने का माध्यम बन गया ..आज इन्हों अक्षर की बदौलत हम न जाने कितनी नयी बाते सीख पाते हैं ,बोल पाते हैं दुनिया को जाना पाते हैं ..

Sunday, August 02, 2009

दोस्ती बनी रहे यह यूँ ही ....

तुम्हारा मेल दोस्ती की हद को छू गया
दोस्ती मोहब्बत की हद तक गई
मोहब्बत इश्क की हद तक
और इश्क जनून को हद तक ॥

अमृता इमरोज़ की दोस्ती पर कही यह पंक्तियाँ दोस्ती की परिभाषा को और भी अधिक गहरा रिश्ता बना देती है ...दोस्ती लफ्ज़ ही ऐसा है जो दिल के अन्दर तक अपना वजूद कायम कर लेता है यदि दोस्ती सच्ची और गहरी है तो .... वैसे तो सभी रिश्ते अपना अपना स्थान ज़िन्दगी में बनाए रखते हैं ...पर दोस्ती का रिश्ता सबसे अलग होता है क्यों कि यह बना बनाया नहीं मिलता हमें इसको बनाना पड़ता है और फिर यदि दोनों और से दिल मिल जाए तो यह ता -उम्र निभाया जा सकता है ....कोई खून का रिश्ता नहीं होता यह फिर भी बहुत प्यारा और हर दिल अजीज होता है ..

दोस्ती का रिश्ता बहुत नाजुक होता है ,एक जरा सी ग़लतफ़हमी इस रिश्ते को तोड़ के रख देती है और जहाँ विश्वास नहीं रहता वहां यह यह रिश्ता भी आगे नहीं पनप सकता है ...बड़े बड़े वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि जिनके दोस्त होते हैं वह एक लम्बी स्वस्थ उम्र जीते हैं ...आखिर कहीं तो तो कोई हो जिस से आप अपने दिल की बात बेहिचक कह सके सुन सकें ..जिनके पास दोस्त नहीं वह बहुत अकेले और तन्हा होते हैं ..अब यह आपके ऊपर है कि अपने स्वभाव से आप कैसे दोस्त बनाते हैं और उस दोस्ती को कैसे निभा पाते हैं ...
दोस्ती जब भी करें दिल से करे और उस में विश्वास बनाये रखे ...अगर आप चाहते हैं कि आपका दोस्ती का रिश्ता कायम रहे तो एक दूजे की निजी बातें अपने तक ही रखे उसको सार्वजनिक न करें ..."इगो "का दोस्ती में कोई स्थान नहीं है ..यह दोस्ती को तोड़ देता है जहाँ अहम् है वहां दोस्ती आगे नहीं बढ़ सकती है ...दोस्ती की परिभाषा में एक दूजे के सुख दुःख बाँटना भी आता है जहाँ तक संभव हो सके एक दूजे का सुख दुःख बांटने की कोशिश करनी चाहिए ...पर यह ध्यान रहे कि हर व्यक्ति की अपनी एक निजी ज़िन्दगी होती है उस में अधिक दखल अंदाजी न हो जितना स्पेस आप एक दूजे को देंगे उतनी दोस्ती अधिक निभेगी ..यह हर रिश्ते के लिए जरुरी है ..कि हर कोई अपनी मर्जी से जीए ...हाँ इस बात का ध्यान हमेशा रहे कि सच्ची दोस्ती वही है जब लगे कि दोस्त गलत रास्ते पर जा रहा है तो उसको एक बार काम से काम सुधारने की बताने कि कोशिश जरुर करें ...यह बात आपके साथ भी लागू होती है यदि आपका दोस्त आपकी कोई गलती को समझ रहा है और उसको समझाने कि कोशिश करता है तो उसकी बात समझे ....

दोस्ती को मजबूत बनाए रखने के लिए कोई गलती खुद से महसूस करे तो उसी वक़्त उसको समझ कर एक दूजे से माफ़ी मांग ले और बात चीत बंद न करें ,क्यों कि जहाँ आपसी बात चीत कम हो जाती है वहां रिश्ता टूटने में अधिक देर नहीं लगती है ...एक दूजे के समय कि कद्र करें ...यह थी कुछ दोस्ती की महतवपूर्ण बातें जिनको आप दिल से निभाएंगे तो दोस्ती गहरी रहेगी और लम्बी चलेगी ..किसी भी छोटी सी ग़लतफ़हमी की वजह से इस खूबसूरत दोस्ती को न खोने दे .|

रंजू भाटिया

Saturday, August 01, 2009

अल्लाह करे कि कोई भी मेरी तरह न हो

मीना कुमारी के डायरी के पन्ने कभी नही भूल पाती हूँ ..एक बार फ़िर से आज उन्ही के शब्दों में उनको याद करने का दिल हो आया ...

मीनाकुमारी ने जीते जी अपनी डायरी के बिखरे पन्ने प्रसिद्ध लेखक गीतकार गुलजार जी को सौंप दिए थे । सिर्फ़ इसी आशा से कि सारी फिल्मी दुनिया में वही एक ऐसा शख्स है ,जिसने मन में प्यार और लेखन के प्रति आदर भाव थे ।मीना जी को यह पूरा विश्वास था कि गुलजार ही सिर्फ़ ऐसे इन्सान है जो उनके लिखे से बेहद प्यार करते हैं ...उनके लिखे को समझते हैं सो वही उनकी डायरी के सही हकदार हैं जो उनके जाने के बाद भी उनके लिखे को जिंदा रखेंगे और उनका विश्वास झूठा नही निकला उन्ही की डायरी से लिखे कुछ पन्ने यहाँ समेटने की कोशिश कर रही हूँ ...कुछ यह बिखरे हुए से हैं .पर पढ़ कर लगा कि वह ख़ुद से कितनी बातें करती थी ..न जाने क्या क्या उनके दिलो दिमाग में चलता रहता था ।
४ -११ -६४

सच मैं भी कितनी पागल हूँ ,सुबह -सुबह मोटर में बैठ गई और फ़िर कहीं चल भी दी लेकिन तब इस पहाड़ के बस नीचे तक गई थी ऊपर, तीन मील तक तब तो पैदल चलना पड़ता था ।अब सड़क बनी है कच्ची तो है पर मोटर जा सकती है प्रतापगढ़--भवानी का मन्दिरअफजल और बन्दे शाह का मकबरा फ़िर ५०० सीढियाँ ... यह बर्था कहती थी सुबह चलना चाहिए...चलना चाहिए पर इसके लिए दुबले भी तो होना चाहिए इसलिए इतना बहुत सा चला आज ।
फ़िर वही नहाई नहाई सी सुबह ...वही बादल दूर दूर तक घूमती फिरती वादी भी उसी शक्ल में घूमते फिरते थे
ठहरे हुए से कितनी चिडियां देखी कितने कितने सारे फूल, पत्ते चुने पत्थर भी
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रात को नींद ठीक से नही आई वही जो होता है जहाँ जगता रहा इन्तजार करता रहा
लेकिन सच यूं जगाना अच्छा है जबरदस्ती ख़ुद को बेहवास कर देना
यहाँ तो जरुरी नही यहाँ तो खामोशी है चैन है ,सुबह है दोपहर है शाम है
आह .....!!!!
कल सुबह उठ नही सकी थी तो बड़ी शर्म आरही थी सच दरवाज़े के बाहर वह सारी कुदरत वह सारी खूबसूरती खामोशी अकेलापन ..सबको मैं दरवाज़े से बहार कर के ख़ुद जबरदस्ती सोयी रही । क्यों ? क्यों किया ऐसा मैंने
तो रात को जगाना बहुत अच्छा लगता है सर्दी बहुत थी नही तो वह दिन को उठा कर बहार ले जाती कई बार दरवाज़े तक जा कर लौट आई सुबह के करीब आँख लगी इसलिए सुबह जल्दी नही उठ पायी ।

५ -११- ६४

रात भी हवाओं की आंधी दरवाज़े खिड़कियाँ सब पार कर जान चाहती थी शायद इस लिए कल भी मैं जाग गई और सुबह वही शोर हैं फ़िर से । सच में बिल्कुल दिल नही कर रहा है कि यहाँ से जाऊं । यही दिन अगर बम्बई में गुजरते तो बहुत भारी होते और यहाँ हलांकि ज्यादा वक्त होटल में रहे हैं फ़िर भी सच इतनी जल्दी वक्त गुजर गया है कई आज आ गया ।इतनी जल्दी प्यारे से दिन सच जैसे याद ही नही रहा की कल क्या होगा ?

जनवरी -१ -१९६९

रात बारह बजे और गिरजे के मजवर ने आईना घुमा दिया ।कितनी अजीब रस्म है यह फूल और सुखी हुई पत्तियों को चुन चुन कर एक टीकों खाका बनाया
सदियों में हर नुक्ते को
रंगीन बनाना होगा ,
हर खवाब को संगीत बनाना होगा
यह अजम है या कसम मालूम नही

जनवरी -२ -१९६९

आज कुछ नही लिखा सोचा था अब डायरी नही लिखूंगी लेकिन सहेली से इतनी देर नाराज़ भी नही रहा जा सकता न ।आह ....!!!आहिस्ता आहिस्ता सब कह डालो ..आज धीरे धीरे कभी तो इस से जी भरेगा आज नही तो कल....

अप्रैल - २१ -१९६९

अल्लाह मेरा बदन मुझसे ले ले और मेरी रूह उस तक पहुँचा दे चौबीस घंटे हो गए हैं जगाते जागते ....अब कल की तारिख में क्या लिखूं शोर है भीड़ है सब तरफ़ और दर्द --उफ़ यह दर्द

मई- २ -१९६९

तारीखों ने बदलना छोड़ दिया है अब क्या कहूँ अब ?

मई -३ -१९६९

कब सुबह हुई कब शाम कब रात सबका रंग एक जैसा हो गया है तारीखे क्यों बनायी हैं लोगो ने ?
मई -४ -१९६९
यादों के नुकीले पत्थर
लहू लुहान यह मेरे पांव
हवा है जैसे उसकी साँसे
सुलग रही धूप और छावं

उनकी डायरी के यह बिखरे पन्ने जैसे उनकी दास्तान ख़ुद ही बयान कर रहे हैं और कह रहे हैं

अचानक आ गई हो वक्त को मौत जैसे
मुझे ज़िंदगी से हमेशा झूठ ही क्यों मिला ?
क्या मैं किसी सच के काबिल नही थी !""

वह जब तक जिंदा रही धड़कते दिल की तरह जिंदा रही और जब गुजरी तो ऐसा लगा की मानो वक्त को भी मौत आ गई हो उनकी मौत के बाद जैसे दर्द भी अनाथ हो गया क्यूंकि उस को अपनाने वाली मीना जी कहीं नही थी ..