उनकी इसी नज्म की तरह है
यह मिटटी का दीया,तूने ही तो दिया था
मैंने तो उस में आग का शगुन डाला है
और तेरी अमानत लौटा लायी हूँ ..
तेरे चारों चिराग जलते रहे
मैं तो पांचवां जलाने आई हूँ ....
अमृता पर अब तक जितना लिखा वह अपनी नजर से अपने भाव ले कर लिखा ..पर जब उस लिखे पर कोई दूसरी कलम लिखती है तो लगता है ...कि हम जिस दिशा में जा रहे हैं वह सार्थक है ..उनके लिखे ने मुझे इस राह में और अधिक लिखने का होंसला दिया ..आप इसको इस लिंक पर पढ़ सकते हैं ......धन्यवाद रवींद्र जी .॥
कल इस पोस्ट के लिए विदु जी ने (ताना -बाना ) बहुत ही सुंदर कॉमेंट ई -मेल से भेजा...वह मुझे बहुत पसंद आया ,उसको मैं यहाँ वैसा ही दे रही हूँ ...यह भी अमृता के प्रति प्यार का सच्चा इजहार लगा मुझे
प्रिय रंजना ,जैसा की तुमसे वादा था,करीब बारह-तेरह साल पहले इसे डायरी में नोट किया था,...अमृता प्रीतम जी की याद मैं ....चल रहे आप के यशश्वी ब्लॉग हेतु ...शुभ कामनाओं के साथ....उनकी कविता धूप का टुकडा का ये अंश है,कल लगा ,भाई रविन्द्र व्यास वाली तुम्हारी पोस्ट पर , कोई कमेन्ट करूं उससे बेहतर मुझे लगता है तुम्हे अमृता की ये पंक्तियाँ दे दूँ....व्यास जी ने जिस शिद्दत से लिखा है वो भी काबिले तारीफ है ,,,शब्द नही होते कभी कभी बस ....
अंधेरे का कोई पार नही /एक खामोशी का आलम है/और तुम्हारी याद इस तरह/जैसे धूप का एक टुकडा,हथेलियों पर इश्क की /मेहँदी कोई दावा नही /हिज्र का एक रंग है/और तेरे ज़िक्र की एक खुशबू/मैं जो तेरी कुछ नही लगती/जब मैं तेरा गीत लिखने लगी /कागज़ पर उभर आई/केसर की लकीरें .....