Thursday, September 24, 2009

झूठे ख्वाब


मैं ख्वाब देखती हूँ
और तुम्हे भी संग उनके
जहान में ले जाती हूँ

जानती हूँ यह ख्वाब है
सिर्फ़ .....
चंद लम्हों के ...
जो बालू की तरह
हाथ से फिसल जायेंगे
पर जब यह बंद होते हैं
पलकों में ..
तो अपने लगते हैं
बंद मुट्ठी में भी यह सपने
कुछ पल तो सच्चे लगते हैं ..


इस लिए उस ...
एक सपने को देख्नने के लिए
बुनती हूँ हजारो सपने
और उन्ही पलों को
सच मान कर जी लेती हूँ....

46 comments:

Unknown said...

बंद मुट्ठी में भी यह सपने
कुछ पल तो सच्चे लगते हैं ..

pankityan acchi lagi

Alpana Verma said...

बंद मुट्ठी में भी यह सपने
कुछ पल तो सच्चे लगते हैं ..

-कभी खवाबों में स्वप्निल खूबसूरत पलों को जीना भी सुखकर लगता है.

- मन को भाती हुई एक खूबसूरत कविता!

ओम आर्य said...

आपकी रचना बेहद खुबसूरत है .....मुझे भी लगता है कि जिन्दगी इसी का नाम है ......आभार

ज्योति सिंह said...

इस लिए उस ...
एक सपने को देख्नने के लिए
बुनती हूँ हजारो सपने
और उन्ही पलों को
सच मान कर जी लेती हूँ....
bahut khoob umeed par jeevan nirbhar hai .

M VERMA said...

और उन्ही पलों को
सच मान कर जी लेती हूँ....
बहुत कोमल -- बहुत मासूम कविता
वाह

Himanshu Pandey said...

कितनी गजब की बुनावट है --
"एक सपने को देख्नने के लिए
बुनती हूँ हजारो सपने
और उन्ही पलों को
सच मान कर जी लेती हूँ....


कविता की संश्लिष्ट प्रकृति ढूँढ़ता हूँ आपकी कविताओं में ! इधर कुछ कविताओं में अनुपस्थिति है इसकी । आपकी कविता की सहजता और उसका मुग्ध भाव ही उसकी विशेषता है । आभार ।

मुकेश कुमार तिवारी said...

रंजना जी,

एक सुन्दर और सुखद अहसास भरी कविता जो जीने के लिये ख्वाबों की अहमियत और ख्वाबों के प्रति हमारी संजीदगी दोनों को दर्शा रही है।

एक प्यारा सा आशावादी दृष्टीकोण :-

बंद मुट्ठी में भी यह सपने
कुछ पल तो सच्चे लगते हैं ..


सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

स्वप्न मञ्जूषा said...

एक सपने को देख्नने के लिए
बुनती हूँ हजारो सपने
और उन्ही पलों को
शब्दों की रूमानियत बरबस खींचती चली जाती है और हम बस खीचें चले आते हैं...

Mishra Pankaj said...

रंजू जी नमस्कार !
सपनो की साथ जीने का सही सलीका सीखा दिया आपने

vandana gupta said...

sirf ek pal ki khushi ke liye khwab dekhna ........waah,adbhut.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

एक सुन्दर कविता,
ख्वाब अकसर झूठे ही होते है !

Mukesh Garg said...

namaste ranjna ji,

jab se aapne time ki problem ki wajh se meri id par rachna bhejni band kari hai uske baad aaj kai dino baad aapki rachna padhne ka moka mila , jo main chodh nhi saka. or ye kavita mujhe bahut pasand bhi aai..


badhiya savikar kare

kirpya karke meri id par apni rachna bhejte rahe , to mujhe bahut accha lagega.

महेन्द्र मिश्र said...

बहुत सुन्दर पर जब सपने पूरे नहीं होते तो झूठे लगाने लगते है .....

निर्मला कपिला said...

इस लिए उस ...
एक सपने को देख्नने के लिए
बुनती हूँ हजारो सपने
और उन्ही पलों को
सच मान कर जी लेती हूँ...
रंजू जी क्या कहूँ बहुत सहीरउर सुन्दर अभिव्यक्ति है। ये भी जीने का एक अंदाज़ है लाजवाब बधाई

Arvind Mishra said...

आशा और स्फूर्ति से पगी काव्यांजलि !

mehek said...

sunder bhavurn rachana,khwabon mein jena hi haqiqat ko paripurn karta hai.

रश्मि प्रभा... said...

khwaab jhuthe hi sahi,par sukun dete hain ......

Abhishek Ojha said...

'कुछ पल तो सच्चे लगते हैं ..'
हम तो इन पलों को खूब जीते हैं !

Unknown said...

रंजना जी !

जितना सत्य है आंखॊं में सपनों का होना .... उतना ही सच है आंख खुलने पर .... उसका यथार्थ से ... साक्षात्कार होने पर.. उसका टूटना ..... सपने सच भी होते हैं परंतु सच्चे प्रयास से ही ... यदि हम अपने प्रयास पर ही संदेह करने लगें तो कोई सपना सच नहीं होता है.....

अस्तु .... संवेदनशील हृदय के लिये एक मर्मस्पर्शी रचना ... आभार.

समय said...

‘सबसे ख़तरनाक होता है सपनों का मर जाना’

अच्छी अभिव्यक्ति।

ghughutibasuti said...

सदा की तरह सुन्दर रचना!
घुघूती बासूती

अनिल कान्त said...

दिल में सुखद एहसास जगा गयी ये रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

इस लिए उस ...
एक सपने को देख्नने के लिए
बुनती हूँ हजारो सपने
और उन्ही पलों को
सच मान कर जी लेती हूँ....

सपने सच्चे लगते हैं,
सबको अच्छे लगते हैं।
बधाई!

सुशील छौक्कर said...

सपनों की दुनिया कहानी बहुत खूब कही आपने।
इस लिए उस ...
एक सपने को देख्नने के लिए
बुनती हूँ हजारो सपने
और उन्ही पलों को
सच मान कर जी लेती हूँ.

ऐसा लग रहा जैसे मेरे ही शब्द लिख दिये हो आपने। बहुत पसंद आई ये रचना।

शरद कोकास said...

रंजना जी यह अच्छी रचना है । मै अपने ब्लॉग पर (शरद कोकास पर ) इन दिनो स्त्रियों की कवितायें दे रहा हूँ देख लीजियेगा । इनमे आपको अलग ही स्वर दिखाई देगा ।

Nitish Raj said...

चंद लम्हों के ...
जो बालू की तरह
हाथ से फिसल जायेंगे
पर जब यह बंद होते हैं
पलकों में ..
तो अपने लगते हैं
बंद मुट्ठी में भी यह सपने
कुछ पल तो सच्चे लगते हैं ..

दिल को छूने वाली पंक्तियां, सच्ची सी लगी

हेमन्त कुमार said...

पल भर के लिये यह हमें सारे गमों से ओझल करने वाली कविता है ।
आभार ।

मनोज भारती said...

रंजना जी !!!

"एक सपने को देख्नने के लिए
बुनती हूँ हजारो सपने
और उन्ही पलों को
सच मान कर जी लेती हूँ....

सपने भी जीने के सहारे होते हैं
अपने भी जीने के सहारे होते हैं
सब रंग देखने के बाद ही
सब सहारे छूटने के बाद ही
अपनी ओर नज़र उठती है
स्वयं को जान लेने की प्यास जगती है
इस तरह यह जीवन भी एक सपना है

आप जीवन-यात्रा के सुंदर पड़ाव पर हैं

एक सुंदर रचना

Mohinder56 said...

रंजू जी
बढिया लिखा है आपने.. जिन्दगी और ख्वाब के बारे में.. और यूं भी

जिन्दगी ख्वाब है
और फ़िर भला
ख्वाब में
सच है क्या
और झूठ है क्या...

हा हा ... खुशी और हंसी ही सब कुछ है

विनोद कुमार पांडेय said...

सुंदर अभिव्यक्ति!!!

Udan Tashtari said...

मैं ख्वाब देखती हूँ
और तुम्हे भी संग उनके
जहान में ले जाती हूँ




-कोमल और सुन्दर अभिव्यक्ति!!

अपूर्व said...

देखें तो इन ख्वाबों मे ही जिंदगी है
और देखें तो जिंदगी खुद एक ख्वाब है
खूबसूरत

दिगम्बर नासवा said...

बंद मुट्ठी में भी यह सपने
कुछ पल तो सच्चे लगते हैं ..

सपनो में जीना .. उनको सच मानना और फिर सपना देखना .......... कितना हसीं ख्याल और दिलकश है .......... लाजवाब रचना है ...........

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

बुनती हूँ हजारो सपने
और उन्ही पलों को
सच मान कर जी लेती हूँ....

सुन्दर अभिव्यक्ती |

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

जीने को बहाना कोई भी हो, अच्छा है

रवि कुमार, रावतभाटा said...

खूबसूरत रचना...
अच्छी लगी...

ताऊ रामपुरिया said...

इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.

Mumukshh Ki Rachanain said...

जानती हूँ यह ख्वाब है
सिर्फ़ .....
चंद लम्हों के ...
जो बालू की तरह
हाथ से फिसल जायेंगे
पर जब यह बंद होते हैं
पलकों में ..
तो अपने लगते हैं
बंद मुट्ठी में भी यह सपने
कुछ पल तो सच्चे लगते हैं ..

यही तो जीने का सहारा रह गया वर्ना हकीक़त तो जीने ही कहाँ देती है?
सुन्दर भावपूर्ण रचना
हार्दिक बधाई

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

Himalayi Dharohar said...

आपको पढ़कर बहुत अच्छा लगा. सार्थक लेखन हेतु शुभकामनाएं. जारी रहें.

Himalayi Dharohar said...

आपको पढ़कर बहुत अच्छा लगा. सार्थक लेखन हेतु शुभकामनाएं. जारी रहें.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

जिंदगी ख्वाबों के सहारे ज्यादा खूबसूरत लगती है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

शोभना चौरे said...

kuch khvab hmesha jindgi me tajgi de jate hai .
bhut sundar bhav
abhar

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

जानती हूँ यह ख्वाब है
सिर्फ़ .....
चंद लम्हों के ...
जो बालू की तरह
हाथ से फिसल जायेंगे

haan! khwaab to ret ki tarah hi to hote hain...... phisal jaate hain...... aur rah jaati phir wahi khaali mutthhi.........

bahut hi sunder kavita.........



(Deri se aane ke liye maafi chahta hoon.......)

Asha Joglekar said...

khwab hee hain jo humaree ashaon ko jeewit rakhte hain. Bahut sunder.

रंजना said...

वाह ! वाह ! वाह ! क्या बात कही.......

मन को बांधती बहुत बहुत सुन्दर रचना...

सच कहा,सुख सामने न हो तो सुख का सपना ही सही....जीने के लिए सुख न सही सुख की आस ही कम नहीं...

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

वाह...
ख्वाब, उम्मीद और जीवन सब संगी ही है....