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Monday, January 16, 2012

बात दिल की फ़िर होंठों तक आ कर रह गई

बदली दर्द की बरस कर पलकों पर रह गई
बात दिल की फ़िर होंठों तक आ कर रह गई
 
टूटी न खामोशी आज भी पहली रातों की तरह
ख्वाव उजले लिये यह रात भी काली रह गई
 
बेबसी धडकी बेचैन तमन्ना बन कर  दिल में
तन्हा सांसे फ़िर से तन्हाई में घुल कर रह गई
 
खुल के  इजहार करू न  आया वह बहारों का मौसम
आज खामोशी मेरी मुझे खिंजा सी चुभ कर रह गई

Thursday, September 24, 2009

झूठे ख्वाब


मैं ख्वाब देखती हूँ
और तुम्हे भी संग उनके
जहान में ले जाती हूँ

जानती हूँ यह ख्वाब है
सिर्फ़ .....
चंद लम्हों के ...
जो बालू की तरह
हाथ से फिसल जायेंगे
पर जब यह बंद होते हैं
पलकों में ..
तो अपने लगते हैं
बंद मुट्ठी में भी यह सपने
कुछ पल तो सच्चे लगते हैं ..


इस लिए उस ...
एक सपने को देख्नने के लिए
बुनती हूँ हजारो सपने
और उन्ही पलों को
सच मान कर जी लेती हूँ....