मौसम आज कल कई रंग एक साथ दिखा रहा है ...कभी जलती गर्मी और कभी रिमझिम फुहार ..इसी रंग को इन्हीं छोटी क्षणिकाओं के रूप में कहने की एक कोशिश की है ..
१)
गुलमोहर के फूल
जैसे हाथ पर कोई
अंगार है जलता ...
२)
जेठिया आग से
झुलसे है बहार
अमलतास से मिटे
कुछ गर्मी की आस
३)
झूमे पत्ते
डाली डाली
झूम के बरसा मेघ
सावन की ऋतु आ ली
४)
कैसे मदमस्त
हो के छेड़े मल्हार
पत्तियों पर बुंदिया की
पड़े है जब मार.....
५ )
उमड़ी घटा
दीवाने बदरा
शोर मचाये
नाचा मन मोर भी
पर तुम न आये ..
बिखरी जुल्फों को
अब कौन सुलझाए ...
33 comments:
वाह ! वाह ! वाह ! लाजवाब चित्रण.....इन संक्षिप्त क्षणिकाओं में में आपने पूरे मौसम को ही उतार दिया. वाह !! बहुत बहुत सुन्दर !!
आप ने तो बदलते मौसम और आने वाली राहतों का अहसास करा दिया।
लाजवाब क्षणिकाएं रंजना जी वाह....शब्द चित्र अद्भुत बनाये हैं आपने...तारीफ के लिए उचित शब्द ही नहीं मिल रहे...
नीरज
'कैसे मदमस्त
हो के छेड़े मल्हार
पत्तियों पर बुंदिया की
पड़े है जब मार.....'
वाह !बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ.
मौसम को खूब कैद किया है इन सभी छोटी कविताओं में.
सभी कवितायेँ पसंद आयीं.
[रंजना जी ,यहाँ तो सिर्फ गुलमोहर खिले हैं..दहकते जलते अंगारे से! :)बरखा रानी तो कभी मेहरबान ही नहीं होती...]
mousam ke bahane bahut achchi baat ho gayee
सुन्दर और सामयिक क्षणिकाएं है, हमें भी मल्हार छिड़ने का इंतज़ार है ! गुलमोहर वाली पहले भी पोस्ट की थी क्या आपने? अगर हाँ तो देखिये कितने गौर से मैं आपका ब्लॉग पढता हूँ :)
वाक़ई बहुत ख़ूबसूरत!
sabhi kshnikayen jeevan k komalkant aur samvedansheel pksh ko uurja dene wali toh hain hi,sahityik parakh par bhi paathak ko aatmik santushti pradaan karti hain ....aapko in maasoom rachnaaon k liye
hardik hardik badhaiyan
अच्छे शब्द दृश्य !
खूबसूरत चित्रों और उतकृष्ट शब्दावली मे इन क्षणिकाओं ने मौसम का बिल्कुल सटीक एहसास कराया. बेहद सफ़लतम रचना कहुंगा इसको.
विभिन्न मौसमों को एक साथ जीवंत करने के लिये बहुत शुभकामनाएं आपको.
रामराम.
गजब ..
ये है मौसम का हाल सखे!!
कविता निकलवा डाली मौसम ने.. :)
बेहतरीन रंगारंग प्रस्तुति!!
इतने सुन्दर शब्द चित्रों के लिए साधुवाद.
हमें तो कविता से ही राहत मिल रही है. काश इसे दुपहर को पढ़ा होता. लेकिन उस समय बिजली गोल थी. आभार
बहुत सुन्दर..
अच्छा लगा पढ़कर। जैसे दृश्य जीवंत हो उठा हो।
मेरा मन तो मयूर की तरह नाचने लगा ...बहुत अच्छा लगा पढ़कर
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बेहतरीन क्षणिकायें मैम..खास कर नंबर ३ वाला सबसे ज्यादा भाया
बेहतरीन कविताये,बहुत सुन्दर...
वाह.लाजवाब..............
छोटी छोटी रचनाओं में........मौसम के इतने बड़े फैलाव को आसानी से उतार दिया आपने.......... हर मौसम शब्दों के माध्यम से अपनी अपनी छठा बिखेर रहा है
चित्रों के साथ मोसम का चित्रांकन ......
बेहद लाजवाब .
अमलतास का चित्र बेह्द खूबसूरत है .लगा जैसे बड़ा होना चाहिए ..मौसम का असर आप पर भी हो गया ..
वाह वाह वाह। ऐसा आनंद आ गया जैसे उस बारिश में भीगने पर आया था जो पिछले हफ्ते आई थी। चित्र भी सुंदर।
सब के सब बहुत ही बेहतरीन .
रंजना जी,
मौसम में बदलाव को क्रमबद्ध या श्रृंखला के रूप में बहुत ही खूबी से उकेरा है।
बूंदो की सुखद अनुभूति से लगाकर बरसते सावन में विरह वेदना की तड़प..... लाजवाब।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
bahut khoob.. sundar..
क्षणिकाएं मैंने लिखी भी पढी भी हैं, पर आपकी ये क्षणिकाएं बनावट और बुनावट में अलग होने के बावजूद अर्थ की लयात्मकता के कारण बेहद तमत्कृत करती हैं।
धर्म की व्याख्या के बहाने जीवन के गहरे सूत्र भी आपने उपलबध करा दिये।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अरे अच्छा हुआ कुश के जाल घर पे आपकी पोस्ट देख ली और खीँचे चले आये और इतनी सुँदर रच्नाएँ पढ लीँ वाह वाह ! आनँद आ गया जी
- लावण्या
प्रिय बहन ,जय हिंद
आपकी क्षणिकाएं अच्छी लगी ,पर दो जगह कुछ खटक रही हैं ,१ में अंगार है जलता की जगह जलता अंगारा होता तथा ५ में मन मोर भी की जगह मन मयूरा होता तो कितना सुन्दर लगता , खैर पसंद अपनी-अपनी
मैं आपको दिल से धन्यवाद देना चाहती हूँ ,मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए एवं कमेन्ट देकर मेरी हिम्मत बढाने के लिए
चिंगारीयों (क्षणिकाओं) में दावानल भर दिया आपने.. बधाई
झूमे पत्ते
डाली डाली
झूम के बरसा मेघ
सावन की ऋतु आ ली
सभी क्षणिकायें पसँद आईं.
har kshanika mausam ki khoobsurat bangi , bahut sundar
sabse pahle to sorry for late posting of comment...achchi lagi ye rachna aapki
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