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Tuesday, May 12, 2009
बेबसी ...
कहा उन्होंने चाँद तो ,
चांदनी बन मैं मुस्कराई
उनकी ज़िन्दगी में ....
कहा कभी उन्होंने सूरज तो
रोशनी सी उनकी ज़िन्दगी में
जगमगा कर छाई मैं ...
कभी कहा मुझे उन्होंने
अमृत की बहती धारा
तो बन के बरखा
जीवन को उनके भर आई मैं
पर जब मैंने माँगा
उनसे एक पल अपना
जिस में बुने ख़्वाबों को जी सकूँ मैं
तो जैसे सब कहीं थम के रुक गया ..
तब जाना....
मैंने कि ,
मेरे ईश्वर माने जाने वाले
ख़ुद कितने बेबस थे
जो जी नही सकते थे
कुछ पल सिर्फ़ अपने
अपनी ज़िन्दगी के लिए!!!
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36 comments:
इसे तो मैं बागी कविता कहूँगा
आपकी कविता पढ़कर आपका "अबाउट मी" पढ़ा ...लगा वही जवाब है.....
man ke vichar kahein ya dil ki dhadkanon ki udhedbun ....behtreen likha hai
कभी कहा मुझे उन्होंने
अमृत की बहती धारा
तो बन के बरखा
जीवन को उनके भर आई मैं
वाह रंजना जी वाह...लाजवाब रचना....बहुत बहुत बधाई...
नीरज
बहुत ही बढिया......
वाह और आह भी !
मेरे ईश्वर माने जाने वाले
ख़ुद कितने बेबस थे
जो जी नही सकते थे
कुछ पल सिर्फ़ अपने
अपनी ज़िन्दगी के लिए!!!
achhi kavita...
ढूँढ़ते रह जाओगे जैसी कविता
बहुत विचारणीय कविता है।
bahut sahi kaha aapne.......apne liye kuch pal mangna hi sabse badi bebasi hai.........jo jina chahkar bhi ji nhi pate.
बहुत बढिया लगी यह अभिव्यक्ति भी. शुभकामनाएं
रामराम.
लाजवाब..........जब मांगने जाओ तभी पता चलता है बेबसी का अंदाज़................
वो बेबसी है या कुछ और................क्या पता....
yathaarth rachna
वाह सुन्दर शब्दों को बांधा है आपने
bahut sundar
badhai !!!!!!
कैसी बेवसी है ! सोचने लगा मैं तो...
sach ka bodh karati kavita.
क्या कहें-सुन्दर संयोजन!! भावपूर्ण रचना तो खैर है ही!
बह्त ख़ूब!
कई बार पढा। और हर बार वाह ही निकला।
बहुत ही सुंदर रचना .
bhut sundar man ki abhivykti.
Didi, bahut bada sach likha hai aapne.. Bahut sahas chahiye aisi rachna ko rachne ke liye..
Bahut gehri abhivyakti hai aapki rachna mein..
आखिरी पैरे में कविता एकदम से चौंका देती है..और यही कविता की असली खूबसूरती है
मेरे ईश्वर माने जाने वाले
ख़ुद कितने बेबस थे
जो जी नही सकते थे
कुछ पल सिर्फ़ अपने
अपनी ज़िन्दगी के लिए!
यह एक सच ही तो है.. स्त्री जीवन का..
जैसे-'अपने लिए कब माँगा कुछ?जब माँगा तब पाया क्या??
बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति है.
एक अलग तरह की रचना और जो सोचने पर मजबूर कर दे आपको। अलग, बेहद अलग रचना।
... सुन्दर अभिव्यक्ति, प्रसंशनीय !!!!
तब जाना....
मैंने कि ,
मेरे ईश्वर माने जाने वाले
ख़ुद कितने बेबस थे
जो जी नही सकते थे
कुछ पल सिर्फ़ अपने
अपनी ज़िन्दगी के लिए!!!
इसे बेबसी कहें या प्यार का अस्तित्व का भी न बचना.
प्यार में यदि त्याग नहीं तो प्यार कैसा. प्यार सदा दूसरे के लिए कुछ भी करने को उद्यत रहता है, बेबसी का कभी बहाना नहीं बनाती.......................................
सुन्दर प्रस्तुति पर आभार.
विचारणीय प्रश्न खडा करने का शुक्रिया.
चन्द्र मोहन गुप्त
जीवन की सच्चाई को आपने बखूबी लफजों का जामा पहना दिया है। आईना दिखाती इस कविता के लिए हार्दिक बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Vakai ek bebas sacchai chipi hai in panktiyon mein.
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी यूँ कोई बेवफा नहीं होता..
जी बहोत चाहता है सच बोले ,क्या करें हौसला नहीं होता....
आपकी कविता बेहद उम्दा है जहां तक मैंने समझा है वो ये है के इस में आपने आपने प्यार को कितनी भावना पूर्ण से कुर्बानिया देती रही है मगर जब,... आपने अपने लिए समय मांगा तो सामने वाला नहीं दे पाया .... पता नहीं उसे उस वक्त किस बात की मजबूरियाँ रही होगी...
बेहद उम्दा रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
अर्श
न तो मुझे यह बाग़ी कविता लग रही है और न ही इसका जवाब About me मे मिल रहा है.. आपने कविता इस अंदाज़ में पेश की है कि बेबसी भी शृंगारित हो उठी है.. आभार
wah wah..
Lekin aap ke blog bahut hai.. kuch kam kiziye..
मेरे ईश्वर माने जाने वाले
ख़ुद कितने बेबस थे
जो जी नही सकते थे
कुछ पल सिर्फ़ अपने
अपनी ज़िन्दगी के लिए!!
सार्थक और गहरे भाव,स्त्री जीवन की पड़ताल करते हुए .बहुतखूब रंजना जी .
पर जब मैंने माँगा
उनसे एक पल अपना
जिस में बुने ख़्वाबों को जी सकूँ मैं
तो जैसे सब कहीं थम के रुक गया ..
तब जाना....
मैंने कि ,
मेरे ईश्वर माने जाने वाले
ख़ुद कितने बेबस थे
जो जी नही सकते थे
कुछ पल सिर्फ़ अपने
अपनी ज़िन्दगी के लिए!!!
ye bhi to samjhna mushkil hai na ki wo babas hai nahi to ilzaam laga dete hain log
aapki rachna bahut kuch samjhaati hai
bhaut kam log kisi ko samjh paate hain
मेरे ईश्वर माने जाने वाले
ख़ुद कितने बेबस थे
जो जी नही सकते थे
कुछ पल सिर्फ़ अपने
अपनी ज़िन्दगी के लिए!!
jitna achha start utna hi achha end, maza aa gaya
bahut he sunder rachna hai.Sadhuvad !!
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