Friday, May 01, 2009

मम्मी के सपने ..

उफ्फ्फ्फ़ !!!"पापा जी इसको इस वक्त यह राजकुमारी की कहानी मत सुनाओ !! इसके दिमाग में फ़िर यही घूमता रहेगा ,इतनी मुश्किल से अभी इसको परीक्षा के लिए याद करवाया है ..आप यह पेपर लो इस में इसके जी .के कुछ सवाल हैं खेलते खेलते इसको वही रिवीजन करवाओ !! ""पेपर अपने ससुर को दे कर वह सनी को थपथपा के वहाँ से जाने लगी तो सन्नी बोला "मम्मा प्लीज़ सुनाने दो न कहानी ...बस थोडी सी सुन के फ़िर रिवीजन कर लूँगा ..""

हाँ ..हाँ बहू इतना बच्चे के पीछे नही पड़ते ..अभी तो पढ़ कर उठा है .थोडी देर इसके दिमाग को फ्रेश होने दो .फ़िर इसको जी .के भी पढ़ा दूंगा!

"नही नही "पापा जी आप इसको यही करवाए बस ..यह अभी नही समझेगा तो इसका भविष्य बेकार है बिल्कुल .वह सामने वाले राधा जी की बेटी को देखिये उसके हाथ से तो किताब छूटती नही और एक यह है कि कह कह के इसको पढाना पढता है!

मैंने नेट चालू किया है वहाँ से से भी देखूं कोई नई जानकारी मिलती है तो प्रिंट आउट ले लेती हूँ उसके ...यह कह कर वह सन्नी को घूरती हुई वहाँ से चली गई ..!!

और सन्नी बेचारा फ़िर से जी. के प्रश्न सुनाने में लग गया ...अलका के ससुर माथा पकड के बैठ गए और सोचने लगे कि यह बहू भी हद कर देती है ...पूरा घर लगा है सन्नी को पढाने में अभी छठी कक्षा का ही तो छात्र है पर जब देखो "किताब -किताब और पढ़ाई " ...अरे भाई बच्चो का चहुँमुखी विकास होना चाहिए ...पर कौन समझाए इनको ..!!

उधर सन्नी दादा जी को सोच में डूबा देख वहाँ से भाग के खेल में लग गया ..उसका बस चलता तो वह सारा दिन उड़ती चिडिया के संग उड़ता रहता .पर मम्मी से तो कोई भी पंगा नही लेता ..पापा ही है जो कभी कभी मम्मी को कहते हैं कि इतना पीछे मत पढ़ा करो यूं ..यूं भी भला कहीं पढ़ाई होती है ...पर न जी ..मम्मी कब सुनने वाली हैं ..उनके सपने तो आसमान को छूते हैं !!!

सन्नीईईईई !!!!!!!तू फ़िर खेल में लग गया ..हे भगवान! मैं क्या करूँ इस लड़के का ..?? इधर आ ....देख मैंने तेरे सारे नोट बना दिए हैं जी. के कम्पीटिशन की बहुत सी जानकारी आज मुझे नेट से मिल गई है, मैंने सब एक जगह कर दी है ..बस अब तू ध्यान से इसको पढ़ ..."

और उधर सन्नी बेचारा हैरान परेशान उन नोट्स को देख रहा था कि इनको कैसे दिमाग में घुसाए ? यह मम्मी तो मुझे न जाने क्या बनाना चाहती है ...उसको नोट्स एक बहुत भयंकर राक्षस से दिख रहे थे ....जो उसको चारों तरफ़ से घेरे हुए न जाने किसी दूसरी ही दुनिया के नज़र आ रहे थे .पर उसको इनो याद करना ही होगा नहीं तो
आफत आ जायेगी ..और वह उनको रटने की कोशिश में फ़िर से जुट गया !

इधर अलका सोच रही थी कि अभी तक तो उसका बेटा बिल्कुल उसके कहे अनुसार चल रहा है वह ख़ुद पढाती है ,उसका सारा काम नियम से करवाती है . समय से पोष्टिक खाना ,उठाना सब समय से हो रहा है ..अभी यह समय है उसको इसी सांचे में ढालने का ...आज कल तो १००% मार्क्स आने चाहिए हर चीज में .तभी आगे बढ़ा जा सकता है ..और मेरा सन्नी किसी से कम नही रहेगा ...!!इसको मैंने पहले स्कूल लेवल पर फ़िर नेशनल लेवल पर और फ़िर इंटरनेशनल लेवल पर लाना है और वह ख्यालो में ही सन्नी को उन ऊँचाइयों को छूते देख रही थी जहाँ वह देखना चाहती थी !!

परीक्षा के मारे घर भर में जैसे आफत थी ..हर कोई सन्नी को ज्ञान बंटता रहता और वह बेचारा सन्नी सोचता कि यदि वह फर्स्ट नही आया तो न जाने क्या होगा उसका ..और उसकी मम्मी के सपनो का ..यही सोचते सोचते उसकी हालत ख़राब होती जा रही रही थी ..न भूख लग रही थी और सोना तो वह जैसे भूल ही चुका था ,दिमाग की नसे ऐसे की जैसे अभी बाहर आ जायेगी..

परीक्षा में दो दिन थे बस अब ..शाम को पापा आए तो उन्हें रोज़ की तरह सन्नी उछलता कूदता नज़र नही आया ..उसके दादा जी भी कुछ चिंतित से दिखे ..कुछ भांप कर उन्होंने अलका को आवाज़ लगाई कि आज यह शान्ति कैसे हैं और सन्नी कहाँ है ?

"अपने कमरे में है " परसों से उसके पेपर शुरू हैं न ,तो कुछ नर्वस सा है ..अलका बोली

अरे ..नही बहू मुझे तो दोपहर से उसका बदन गर्म लग रहा है ..दादा जी चिंतित हो कर बोले

नही ..नही पापा जी आपको वहम है ..वह बस कुछ नर्वस है ..आप उसको अब बुखार है कह के सिर पर मत चढाओ !!

अरे मुझे देखने दो ..पापा यह कहते हुए सन्नी के कमरे में आ गए ..सन्नी को हाथ लगाया तो वाकई में उसको तेज बुखार था
तुम भी न बच्चे के पीछे हाथ धो के पड़ जाती हो ..कर लेगा पढ़ाई भी ..और जल्दी से डॉ को फ़ोन लगाया ..उधर सन्नी बुखार में बडबड़ा रहा था कि क्या वह फर्स्ट अब आ पायेगा ..विज्ञान कोई ऐसा चमत्कार नही कर सकता क्या ????????

रंजना ( रंजू ) भाटिया ...कहानी लेखन विधा में आज पेश है यह दूसरी पूर्व प्रकाशित लघु कहानी

26 comments:

श्यामल सुमन said...

स्वप्न सजाना स्वप्न देखना दोनों अच्छी बात।
अगर शिशु पर स्वप्न लदाया पहुँचाये आघात।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

लघुकथा शिक्षाप्रद है।
छोटे बालकों के माता-पिता
इससे सबक जरूर ले लें।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

लघुकथा शिक्षाप्रद है।
छोटे बालकों के माता-पिता
इससे सबक जरूर ले लें।

अनिल कान्त said...

जिद तरह से बीते वर्षों में बच्चो के विकास को लेकर चिंता जताई जा रही है और उसे कोल्हू का बैल बना दिया जाता है ...न ठीक से खेलने दिया जाता न दोस्त बनाने दिया जाता ...क्या पहले कभी डॉक्टर इंजिनियर नहीं बने क्या लोग ....पर आजकल तो जैसे होड़ सी मच गयी है ....पूर्ण विकास के लिए जरूरी है की उनका शारीरिक और मानसिक एवं उनके बचपन का भी विकास ठीक से होने देना चाहिए

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

सुशील छौक्कर said...

कई बार लगता है हम माँ बाप अपने बच्चों पर ज्यादा ही उम्मीदों का बोझ डाल देते है। उसी माहोल को देखाती और सोचने को कहती है ये पोस्ट।

admin said...

बालमनोविज्ञान के तल को गहराई में जाकर स्पर्श करती है यह कहानी। इस यथार्थपरक कहानी के लिए हार्दिक बधाई।
----------
सावधान हो जाइये
कार्ल फ्रेडरिक गॉस

Shikha Deepak said...

अच्छी यथार्थपरक कथा है। बच्चों पर इतना दबाव डालना अच्छा नहीं। मैंने देखा है ऐसे में बच्चे या तो बीमार हो जाते हैं या फ़िर विद्रोही।

Abhishek Ojha said...

बड़ी आफत है जी ! ऐसी मम्मियों से तो भगवान् बचाए :-)

PN Subramanian said...

घोर अन्याय हो रहा है. हम बच्चों से उनका बचपन छीन रहे हैं.

PN Subramanian said...

घोर अन्याय हो रहा है. हम बच्चों से उनका बचपन छीन रहे हैं.

दिनेशराय द्विवेदी said...

ख्वाबों की महफिल उन की चूर हुई
अब उन को, तुम में नजर आते हैं,
लादो न इतने ख्वाब अपने उन पर
कि नया कोई ख्वाब उगने न पाए।

Alpana Verma said...

यही तो होता है लगभग हर बच्चे के साथ..अभिभावकों की उनसे बढती अपेक्षाएं उन के बचपन को छीने जा रही हैं.
यथार्थ से जुडी एक अच्छी कहानी.
बच्चे के मन के भावों का समझती समझाती हुई.

vandana gupta said...

bilkul yatharthparak likha hai aapne.
sirf apni soch apne bachchon par ladna unke sath anyay hai yeh har ma baap ko samajhna chahiye.

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत ही शिक्षाप्रद पोस्ट है .

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत यथार्थपरक कहानी है. अभिभावकों को भी सोचना पडेगा और बाल मनोविज्ञान को समझना पडेगा.

रामराम.

Arvind Mishra said...

आप तो सिद्धहस्त कहानीकार भी हैं -यह कहानी भी मन को छू गयी !

Mohinder56 said...

घर घर की कहानी है.. पढाई के चक्कर में बच्चों का बचपन कहीं खो सा गया है...
सुन्दर शब्दों से निखारा है इसे आपने.

रश्मि प्रभा... said...

is tarah bachchon par dabaaw banana uchit nahin....har bachche ki apni shamta hoti hai....

प्रिया said...

bes yahi sab hota hai... every child is special. why dont parents understand these things? aapka varnan solid hain

Pragya said...

bilkul yatharth ka anubhav karaya hai aapne... aajkal maa-baap jitne padhe-likhe hain utne hi nasamajh hai...
bechre bachche aur unke baste!

उन्मुक्त said...

अक्सर लोग सोचते हैं कि,
'खेलो कूदोगे तो होगे बर्बाद,
पढ़ोगे लिखोगे तो होगे नवाब।'

पर यह सच नहीं है। शायद, सच यह है,
'खेल, कूद कर सीखोगे,
केवल तब ही बनोगे, नवाब।'

जितेन्द़ भगत said...

सार्थक रचना।

गौतम राजऋषि said...

अच्छी कहानी मैम...

दिगम्बर नासवा said...

अक्सर आज की तेज़ ज़िन्दगी में हम को लगता है की हमारे बच्चे भी पूरी तरह तैयार हो और बिना सोचे समझे उन पर दबाव बना रहता है ................ वो विकसित नहीं हो पाते, तनाव में रहते हैं.............पर दुसरे पहलू से देखो तो हर माँ बाप चाहता है उनका बच्चा इस रफ़्तार में पीछे न रहे...............

ये कहानी घर घर की कहानी लगती है........

रचना त्रिपाठी said...

मैं भी अपनी बेटी के लिए कुछ इसी प्रकार सोचती हूँ। लेकिन यह लेख पढ़कर लगता है कि माता-पिता को अपने बच्चों पर इतना दबाव नही डालना चाहिये।


धन्यवाद।

PD said...

badhiya kahani ke sath ek achchha message bhi tha..