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Tuesday, April 07, 2009
गूंजता सन्नाटा
फैली है खामोशी
सब तरफ़ छाया है
एक गहरा सन्नाटा ....
हवा भी जैसे ...
भूल गयी है लहराना
कुदरत पर ठहरा हुआ
है वक्त का कोई साया ..
मेरे सब लफ्ज़
तेरे हर चित्र भी ,
आज जैसे ...
खामोश हो कर
गुम हो गये हैं
दिल के पुराने पन्नो में ..
टूट गयी है कलम
सूख गये हैं रंग
पर ...
दिल में
थरथराता
यह सन्नाटा
कह रहा है कि
कल यह ....
ज़रूर आग बन कर
काग़ज़ पर बहेगा .............
लेबल:
.kuch yun hi,
kuch-yu-hi,
कविता सन्नाटा,
कुछ यूँ ही,
खामोशी,
सूफी कविता
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36 comments:
शब्दों का चमत्कारी तरीके से सजाकर गहराई से परोस दिया है आपने .. आभार
दिल मे फैले सन्नाटे मे जब जज्बातो का बहाव आता हे तब बना हुआ हर बाँध टूट जाता हे और बहने लगता हे भावनाओ से बना तूफान, उठता हे बवंडर सन्नाटे को चीरता हुआ और दोहराता हे हक़ीकत दुनिया के सामने लो अब मे आ गया.....बहुत ही गहराई से भरा सन्नाटा
खामोश होकर
गुम हो गए हैं
जैसे पुराने पन्नो में .....
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं मुझे ....बहुत खूबसूरती से पेश किया है आपने
mera har lafj.......puraane pannon men. ----
bahut pyaara laga. badhaai.
यह सन्नाटा
कह रहा है कि
कल यह ....
ज़रूर आग बन कर
काग़ज़ पर बहेगा .............
बहुत सच्ची बात
जब भी सन्नाटा टूटता है
आंधियाँ और तूफान ही आते हैं।
मेरा हर लफ्ज़
तेरा हर चित्र भी ,
आज जैसे ...
खामोश हो कर
गुम हो गये हैं...........
क्या नैसर्गिक भाव हैं .बहुत संदर पंक्तियाँ .आपको धन्यवाद एक उम्दा प्रस्तुति हेतु .
हमारी यही दुआ के ये आग जलती रहनी चाहिए.......
sannate aise hi hote hain..........bahut gahre .
मेरे सब लफ्ज़
तेरे हर चित्र भी ,
आज जैसे ...
खामोश हो कर
गुम हो गये हैं
दिल के पुराने पन्नो में ..
वाह ...बहूत ही गहरी बात कही......
खामोशी वाकई किसी तूफ़ान का संकेत होती है....सन्नाटे जब गहरे हो जाते हैं तो बाहर आ ही जाते हैं ..............लाजवाब शब्द संयोजन
दिल में
थरथराता
यह सन्नाटा
कह रहा है कि
कल यह ....
ज़रूर आग बन कर
काग़ज़ पर बहेगा .............
bahut gehre bhav,ye sannata dil ko chu gaya,sunder rachana ke liye badhai.
'कुदरत पर ठहरा हुआ
है वक्त का कोई साया ..
-
कल यह ....
ज़रूर आग बन कर
काग़ज़ पर बहेगा ....'
-खामोशी अपने भीतर छुपाये रखती है एक जलजला..
-यह आज यूँ ही सुलगती रहे .
-खूबसूरत भाव अभिव्यक्ति .
तो यह है आपकी रचना प्रक्रिया !
दिल में
थरथराता
यह सन्नाटा
कह रहा है कि
कल यह ....
ज़रूर आग बन कर
काग़ज़ पर बहेगा .............
खुबसूरत पंक्तियाँ.
sannate ko bhi aawaaaz de di,bahut badhiyaa......
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ... मुझे अच्छी लगी यह रचना भी।
यह सन्नाटा
कह रहा है कि
कल यह ....
ज़रूर आग बन कर
काग़ज़ पर बहेगा ..
बहुत गहरे पैठ कर लिखा है ।
Dard ko kagaj par baha pana,sabse nahi ho pata...yah ishwar ka vardaan hi hai...
Bahut hi bhaavpoorn rachna..Waah !!
आप आजकल शब्दों से आग लगा रही है। और ये आग जलती रहनी चाहिए। बहुत ही सुन्दर लिखा है।
सुन्दर शब्द,
अच्छे भाव,
बधाई।
title itself is an irony!!
bahut khoob
कितना सहज है आपकी शैली. सुन्दर रचना. आभार.
कल यह ....
ज़रूर आग बन कर
काग़ज़ पर बहेगा ..
..ban gaya ji !!
aaj ban gaya !!
behtarain rachna ke liye badhai sweekarein...
दिल में
थरथराता
यह सन्नाटा
कह रहा है कि
कल यह ....
ज़रूर आग बन कर
काग़ज़ पर बहेगा .............
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति।
Ranju ji
bahut sundar abhivyanjana.
Kiran Rajpurohit Nitila
AAMEEN
nice compostion of words
सन्नाटा सनन सनन
ज्वाला भभक भभक
कागज चिर्र मर्र किर्र
दफन सनन सन्नाटा
दिल में
थरथराता
यह सन्नाटा
कह रहा है कि
कल यह
ज़रूर आग बन कर
काग़ज़ पर बहेगा ....... बहुत खूब .कभी अंतरतम के सन्नाटों की आग , कभी मीलों तक जमे हिमखंड , यही तो कागजों पर उतरतेहै .
रंजना जी,
मेरे सब लफ्ज़
तेरे हर चित्र भी ,
आज जैसे ...
खामोश हो कर
गुम हो गये हैं
दिल के पुराने पन्नो में
अच्छी पंक्तियाँ हैं, बहुत कुछ कह जाती हैं थोड़े में ही, यह आपकी खूबियों में है.
लिखती रहिये, आपको पढना एक आदत सी होता जा रहा है.
मुकेश कुमार तिवारी
हमारी यही दुआ के ये आग मचलती रहनी चाहिए.......
यूं ही हमें और भी अच्छी - अच्छे रचनायें मिलती रहे
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत गहरी बात, और वोही खूबसूरत अंदाज़-ऐ-बयान..
बहुत पसंद आई आपकी रचना.. रंजू दी..
bahut sudar lagi yah post..
अन्दर दबा दबा अब रिसता है कागज पर लिखने के वास्ते
जिगर में बैठे शब्द जब निकल न सके आँखों के रास्ते
सन्नाटे की आवाज को कविता में चेतावनी बन कर उतरना अच्छा लगा।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
मेरे सब लफ्ज़
तेरे हर चित्र भी ,
आज जैसे ...
खामोश हो कर
गुम हो गये हैं
दिल के पुराने पन्नो में ..
आपकी लेखनी का जादू दिल को छू गया....
आग बन कर
काग़ज़ पर बहेगा ?
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