Thursday, November 06, 2008

कहानी पॉपकोर्न की ..


कल लिखी थी बाल उद्यान में कहानी पॉपकोर्न की .आपने कल न पढ़ी हो तो आज के अमर उजाला के ब्लॉग कोना में पढ़े ...:)

26 comments:

पुनीत ओमर said...

समाचार पत्र में स्थान पाने के लिए बधाइयाँ

सुशील छौक्कर said...

अरे वाह यहाँ भी।

फ़िरदौस ख़ान said...

मुबारक हो...

MANVINDER BHIMBER said...

subha hi pad ki thii....bahut saari mubarkein

कुश said...

पढ़ते हुए पोप कॉर्न भी मिल जाता तो क्या बात थी.. बधाई..

Abhishek Ojha said...

पोपकोर्न इतना पुराना है ?

Arshia Ali said...

Badhayi ho Badhayi.

admin said...

कहानी पॉपकार्न की वाया अमर उजाला, बहुत बढिया, बहुत बहुत बधाई।

संगीता पुरी said...

खुशी हुई जानकर । बधाई !

Mohinder56 said...

भई जीभ लपलप कर रही है... अब एक कोल्ड ड्रिंक और पापकार्न के पेकट का प्रबन्ध कीजिये.. :) सिर्फ़ महक से काम नहीं चलेगा

दीपक कुमार भानरे said...

महोदया, ज्ञान वर्धक और रोचक आलेख का समाचार पत्र मैं प्रकाशित होने पर बधाई .

डॉ .अनुराग said...

शुक्र है अभी मेरे बेटे को पढ़ना नही आता वरना अभी आपके पास कूद आता .पोपकोर्न उसकी पसंदीदा चीज़ है ओर मई कुकर ओर माइक्रोवेव दोनों में बनाना सीख गया हूँ.....आपकी कहानी पर बधाई .....कुछ पोपकोर्न भी ठेल देती तो.....

Arvind Mishra said...

यह तो बढियां लिखा है आपने 1

Alpana Verma said...

bahut bahut badhayee --rochak jaankari hai --

सतीश पंचम said...

आपके इस पॉपकॉर्न और सिनेमा के जोड ने मुझे मुंम्बई के Imax सिनेमा की याद दिला दी, हम तीन दोस्त गये थे सज्जनपुर देखने....कम्बख्त साठ रूपये का था पॉपकॉर्न कोन, लेकिन ले लिया गया....किसी को गाँव वगैरह में पता चले कि साठ रूपये का मकई खा रहे हैं तो हम लोगों पर हंसे बिना न रह सकेगा :) बधाई स्वीकारें।

Anonymous said...

bahut badhai

pallavi trivedi said...

badhiya jaankari di...badhai.

राज भाटिय़ा said...

अजी हम तो गावं मै जब जाते थे तो भट्टी पर मक्की भुनवा लाते थे,ओर मजे से खाते थे, आज भी यहां मक्की को घर मै ही भुन कर उस के फ़ुल्ल्ले खुब मजे से खातै है,
धन्यवाद

रंजना said...

रोचक जानकारी के लिए आभार.
लेकिन महानगरों में सिनेमा हाल में जाने से पहले जब पापकार्न खरीदते हैं तो गाँव में बालू में भुनी हुई सोंधी खुशबू वाली उस वह मकई(पापकार्न) की बड़ी याद आती है.वहां पाव भर मकई भुनाने पर भूनने वाली को हम दो मुट्ठी मकई दिया करते थे और यहाँ जब १६० रुपये में दो मुट्ठी मकई का पापकार्न खरीदते हैं तो बड़ा आखर जाता है.. .

art said...

bada hi manoranjak likha hai ranhju di.........

Mumukshh Ki Rachanain said...

रंजना जी,

अपने लिखे लेख को पढ़वाने के लिए धन्यवाद.
पोपकोर्न तो बहुत चाव से हम घर में भी तैयार कर खाते हैं पर इसका इतिहास इतना पुराना और रोचक होगा जानकर प्रसन्नता हुई.

चन्द्र मोहन गुप्त

Mumukshh Ki Rachanain said...

रंजना जी,

अपने लिखे लेख को पढ़वाने के लिए धन्यवाद.
पोपकोर्न तो बहुत चाव से हम घर में भी तैयार कर खाते हैं पर इसका इतिहास इतना पुराना और रोचक होगा जानकर प्रसन्नता हुई.

चन्द्र मोहन गुप्त

Smart Indian said...

जानकारी के लिए बधाई!

योगेन्द्र मौदगिल said...

बधाई... इस जानकारी पूर्ण आलेख के लिये शुभकामनाएं

प्रवीण त्रिवेदी said...

mahnga pop corn khilane aur amar ujaala ke kone me sthan pane ke liye badhai!!!!!!!!!!



aasha hai ki agli bar aap kone ke bajay mukhya page me jagah paayen!!!!

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी हैं, इस आलेख ने। आभार।