Friday, May 23, 2008

शहतूत की डाल पर बैठी मीना ...

मीना कुमारी में एक सबसे अच्छी बात यह थी कि वह बहुत अच्छी इंसान थी तो सबसे बुरी बात यह थी कि वह बहुत जल्दी सब पर यकीन कर लेतीं थी और वही इंसान उन्हें धोखा दे के चला जाता था ..गुलजार जी ने मीना जी की भावनाओं की पूरी इज्जत की उन्होंने उनकी नज्म ,गजल ,कविता और शेर को एक किताब का रूप दिया जिस में उन्होंने लिखा है

शहतूत की डाल पर बैठी मीना
बुनती रेशम के धागे

लम्हा लम्हा खोल रही है

पत्ता पत्ता बीन रही है

एक एक साँस बजा कर सुनती है सोदायन

अपने तन पर लिपटाती जाती है

अपने ही धागों की कैदी

रेशम की यह कैदी शायद
एक दिन अपने ही धागों में घुट कर मर जायेगी !

इसको सुन कर मीना जी का दर्द आंखो से छलक उठा उनकी गहरी हँसी ने उनकी हकीकत बयान कर दी और कहा जानते हो न वह धागे क्या हैं ? उन्हें प्यार कहते हैं मुझे तो प्यार से प्यार है ..प्यार के एहसास से प्यार है ..प्यार के नाम से प्यार है इतना प्यार कोई अपने तन पर लिपटा सके तो और क्या चाहिए...

मीना जी की आदत थी रोज़ हर वक्त जब भी खाली होती डायरी लिखने की ..वह छोटी छोटी सी पाकेट डायरी अपने पर्स में रखती थी ,,गुलजार जी ने एक बार पूछा उनसे कि यह हर वक्त क्या लिखती रहती हो ..तो उन्होंने जवाब दिया कि मैं कोई अपनी आत्मकथा तो लिख नही रही हूँ बस कोई लम्हा दिल को छु जाता है तो उसको इस में लिख लेती हूँ कोई बात जहन में आ जाती है तो उसको इस में कह देती हूँ बाद में सोच के लिखा तो उस में बनावट आ जायेगी जो जैसा महसूस किया है उसको उसी वक्त लिखना ज्यादा अच्छा लगता है मुझे ...और वही डायरियाँ नज़मे ,गजले वह विरासत में अपनी वसीयत में गुलजार को दे गई जिस में से उनकी गजले किताब के रूप में आ चुकी हैऔर अभी डायरी आना बाकी है गुलजार जी कहते हैं पता नही उसने मुझे ही क्यों चुना इस के लिए वह कहती थी कि जो सेल्फ एक्सप्रेशन अभिवय्कती हर लिखने वाला राइटर शायर या कोई कलाकार तलाश करता है वह तलाश उन्हें भी थी शायद वह कहती थी कि जो में यह सब एक्टिंग करती हूँ वह ख्याल किसी और का है स्क्रिप्ट किसी और कि और डायरेक्शन किसी और कहा कि इस में मेरा अपना जन्म हुआ कुछ भी नही मेरा जन्म वही है जो इन डायरी में लिखा हुआ है ...
किंतु उन में अपनी जिंदगी जीने का एक अनूठा साहस था ,अभिनय के समय वह अपने दर्द पर काबू पा लिया करती थी और हर मिलने वाले से बहुत मुस्करा के मिला करती थी ..इसी दर्द को सहने की शक्ति ने उनसे कहलवाया था ..

हँस हँस के जवां दिल के हम क्यों न चुने टुकडे
हर शख्स की किस्मत में इनाम नही होता ...

सही में कई की किस्मत में दर्द के सिवा कुछ नही होता ..उनकी कुछ यादो को यहाँ इस तरह याद किया गया

मीना कुमारी के बारे में कमाल अमरोही बताते हैं कि बासी रोटी बहुत पसंद थी जब एक दिन नौकर रात को रखना भूल गया तो उन्होंने बच्चो की तरह रोना शुरू कर दिया वह कहते हैं कि वह कान की बहुत कच्ची थी वह लोगों के बहकावे में बहुत आसानी से आ जाती थी ..जब वह बच्ची थी तो बताती है कि उन्हें भी और बच्चों कि तरह कहानी सुनने में बहुत मज़ा आता था वह सब बहने मिल कर अम्मा या दादी को कहानी सुनाने के लिए मनाया करती थी ...और कई तरह की कहानी सुना करती थी .परियों की राजा की दूर देश की ..हर किस्म के किस्से और कहानियाँ बहुत मज़ा आता था तब ..अब तो हँसे हुए भी ज़माना हो गया वह यह बात कह के चुप हो गई थी ..

एक बार उनसे किसी ने पूछा कि उन्हें क्या पसंद है तो उन्होंने हँस के कहा कि मुझे मौत पसंद है ...क्यों?पूछने वाले ने हैरानी से पूछा तो उन्होंने कहा इसका जवाब तो शायद किसी किताब में न मिले यह अपनी निंजी पसंद है..मैं इस शब्द में एक शान्ति अमन और आराम महसूस करती हूँ जिसकी चुप्पी हर बीतते लम्हे में एक दिलचस्प कहानी सुनाया करती है ..मुझे भीड़ अच्छी नही लगती ..मुझे लड़ाई झगडा अच्छा नही लगता बस अपने में रहना अच्छा लगता है ..तब अपने ही दिल की कहानी होती है और उस कहानी को सिर्फ़ आप ही सुन सकते हैं ..शोर शराबे और झगडों में में बेहद खालीपन है एक शायर ने बिल्कुल ठीक कहा है ..

मौत ..तूफ़ान की एक उभरती लहर
ज़िंदगी ...एक हवा का झन्नाटा
अश्क...
वीरान ..कहकशां का शहर

कहकहा ...एक उदास सन्नाटा


शेष अगले अंक में

5 comments:

कुश said...

मैने मीना कुमारी जी का नायाब अभिनय, गुलज़ार साहब द्वारा निर्देशित फिल्म 'मेरे अपने' में देखा तो उनका अभिभूत हो गया.. वाकई मीना जी एक बेहतरीन अदाकारा थी..

Anonymous said...

मीना जी इतनी गहरी जानकारी देने का शुक्रिया ।

राकेश खंडेलवाल said...

इस खूबसूरती से लिखी हुइ श्रंखला के बारे में कुछ भी कह पाना न्याय नहीं कर सकता

डॉ .अनुराग said...

मैं गुलज़ार जी इतना ही बड़ा फैन हूँ जितनी आप अमृता प्रीतम की ....ओर "मेरे अपने "मेरे अपने कोल्लेक्शन मे है ,भावुक व्यक्ति यही मार खाता है वो जल्दी विश्वास करता है फ़िर उतना ही दुखी होता है..........कभी एक शेर मैंने भी लिखा था......वो ....अलबत्ता दूसरे किस्म के लोगो के लिए था.......

कुछ ही कदमो पे होती है मंजिले
हर शख्स की किस्मत मे इम्तिहान नही होता

Udan Tashtari said...

बेहतरीन श्रृंख्ला चल रही है, जारी रहें. बहुत बधाई.