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Tuesday, May 20, 2008
कैलाश मानसरोवर
कैलाश मानसरोवर की यात्रा इस साल एक जून से शुरू हो रही थी पर अभी अभी सुना की यह रोक दी गई है चीन के द्वारा बिना कारण बताये कोई वजह नही बताई है इस फैसले की ..पहला जत्था १ जून को दूसरा ४ जून को और तीसरा इसके १ हफ्ते के बाद जाना था हर जत्थे में सहायकों और कर्मचारी समेत करीब १०० लोग होते हैं ..पहले दो जत्थों को रोक दिया गया है और यह कहा गया है कि तीसरा जत्था अपने समय से जायेगा अब यह तिब्बत समस्या की वजह से हुआ है यह तो चीन वाले अधिकारी ही बता सकते हैं ...
भम भोले के इस स्वर्गलोक को देखने की इच्छा किस के दिल में जागृत नही होती है पर यह इतना आसान नही है बहुत ही मुश्किल यात्रा है यह हिमालय पार जाना कोई आसान बात भी तो नही है मैं तो वहाँ जाने वाले यात्रियों के अनुभव पढ़ती जाती हूँ और जो निश्चय दिल में जागता है कि एक बार तो यहाँ जरुर जाना है उस रास्ते की मुश्किलें देख कर जैसे सब एक पल में दिल डगमगा जाता है यह यात्रा तिब्बत में कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील की परिक्रमा करने से पूरी होती है ..यह यात्रा बहुत ही मुश्किल मानी जाती है इस में १९ हज़ार ५०० फुट की ऊंचाई तक की यात्रा करनी पड़ती है पहले लिखी किताबों और लेखो में जो पढने में आया है कि यहाँ तिब्बती डाकू का बहुत डर हुआ करता था पर इसके साथ ही जब इसके भौतिक गुणों को पढ़ा तो इसके बारे में पढ़ें तो उत्सुकता और बढती गई .... तिब्बत में चीनी घुसपेठियों के बाद १९४८ में यह स्थान भारतीय यात्रियों के लिए और व्यापारियों के लिये बंद कर दिया गया था बाद में १९ ८१ में इसको फ़िर से चीन की सरकार ने यह खोल दिया ..यह वह स्थान है जो हर हिंदू व एशिया में रहने वाले के दिल में धड़कता है कुदरत में अपना विश्वास मनुष्य ने बहुत पहले ही तलाश करना शुरू कर दिया था और इस परिकर्मा में तो छिपी है जीवन से मुक्ति की भावना और आज का मनुष्य भी इस से मुक्त नही हो पाया है
कई तरह कीजांच पड़ताल आवेदन शरीर की स्वस्थता और फ़िर उसके बाद चयन करने कि मुश्किल पार करने के बाद कई हजारों में से कुछ को जाने कि अनुमति मिलती है वहाँ या यह कहो जिस पर भोले बाबा की कृपा रहे वही इस यात्रा को सम्पूर्ण कर पाता है ...इस यात्रा को महज एक धार्मिक यात्रा समझाना कहना कम होगा क्यूंकि यह तो यात्रा है समाज संस्कृति वहाँ की प्राकतिक परिस्थति और आज के तिब्बत को जानने की और हिमालय के उस पर जहाँ भोले बाबा का निवास है उसको देखने की .....मानसरोवर झील में बिखरे वहाँ के कुदरती नज़ारों को निहारने की ...यहाँ पर खड़े शुभ्र शिखरों से मिलना तिब्बत के बौद्धिक मठो को देखना याक और कई तरह घुमंतू पशुचारकों से मिलना और कई जगह से आए तीर्थ यात्रीओं के साथ समय बिताना सच में एक नया अनुभव होगा जो शायद कभी नही भूल सकता है ..यह यात्रा अल्मोड़ा से धारचूला.तवा घाट ,मांगती ,गाला ,बुदधी ,गुंजी ,कालापानी और नवीधांग से लिपू दर्रा होते हुए चीन की सीमा में प्रवेश करती है चीन के इलाके में चीनी सुरक्षा के घेरे में यात्री आगे बढ़ते हैं ...कैलाश पर्वत की परिकर्मा करने के लिए यात्रियों को ५५ किलोमीटर चलना पड़ता है
पढ़ के लिख के जाने की इच्छा बलवती हो उठती है .पर जायेगा तो वही न जिसका बुलावा आएगा .और यह राजनितिक समस्याए खत्म होंगी .मानसरोवर झील को देखने का सपना हर भारतीय के दिल में रहता है भम भम भोले का दर्शन पाना इतना सरल भी तो नही .भम भम भोले की जय ..:)
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5 comments:
आहा ये आजकल आप रोज ऐसे ऐसे विषय क्यों उठा रही है....हमारा काम पर मन नही लगेगा
भम-भम भोले की जय !
कैलाश मानसरोवर के बारे मे बहुत ही अच्छी जानकारी आपने दी है। शुक्रिया ।
बहुत अच्छी जानकारी दी आपने.. आज मैंने भी न्यूज़ पढने के बाद सर्च किया... बहुत मनोरम जगह है.
बम बम भोले की जय. मानसरोवर जाने की इच्छा तो यहाँ भी बहुत है, देखिये कब जाना होगा. अच्छा लगा पढ़कर.
कैसी हैं रंजू जी,
बहुत अच्छी जानकारी दी आपने… वैसे यहाँ की यात्रा करने का सपना मेरे मन में भी है पर पता नहीं कब पूरा हो पाये…।
आपकी जानकारी में थोड़ा विस्तार और होना चाहिए था… जैसे कि वह जगह कैसी है क्या उसकी महत्ता है… आदि।
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