

यह फ़िल्म बहुत कामयाब रही और धर्मेन्द्र का केरियर इस से संवर गया उनका कहना था कि "हर नए आने वाले को सहारे की जरुरत होती है ,इस फ़िल्म इंडस्ट्री में आने वाला हर नया फनकार उस बच्चे की तरह होता है जो किसी का सहारा चाहता है और जब कोई उसकी तरफ़ हाथ बढ़ा देता है तो वह यहाँ टिक जाता है उसके पांव यहाँ जम जाते हैं ...आज हमारे मजबूत क़दमों के नीचे सहारा देने वालों की बुनियाद रखी ह्युई है ...एक मीना कुमारी बनने से यह इंडस्ट्री किसी और को मीना कुमारी बन जाने से नही रोक सकती न ही इन्कार कर सकती है मदद करने से हम किसी का मुकद्दर तो नही बदल सकते हैं पर उसकी मदद कर सकते हैं मुकद्दर बनाने में तो उसकी मेहनत और लगन ही काम आएगी ''..कितना सही कहा था मीना जी ने

कहते हैं की पाकीजा के बनने के दिनों में मीना जी के चेहरे पर एक अजब सी चमक थी और एक अनोखा संतोष कमाल अमरोही ने पाकीजा शुरू तो बहुत पहले की थी लेकिन बाद में मत भेदों के कारण इसका काम रुक गया इसकी प्लानिंग पहले १९५८ में की गई थी जब दोनों साथ थे महल स्टूडियो तब किराए पर लिया गया था और कई भव्य सेट लगाए गए थे ...तब इस में मीना कुमारी के साथ अशोक कुमार और धर्मेन्द्र थे फ़िर मीना कुमारी सफलता अकेलेपन और शराब के दौर से गुजरती हुई अस्पताल तक पहुँच गई ...कभी ठीक तो कभी बीमार होने का सिलसिला चल पड़ा और तब उन्होंने फ़िर से इस फ़िल्म को शुरू करने की जिद की फ़िर मीना जी के ही पहल करने पर दुबारा इस फ़िल्म को शुरू किया गया और बहुत जोश के साथ उन्होंने इस में सहयोग दिया पर धर्मेन्द्र की जगह राजकुमार को लाया गया


हर नए जख्म पर अब रूह बिलख उठती है
होंठ गर हंस भी पड़े तो आँख छलक उठती है
ज़िंदगी एक बिखरता हुआ दर्दाना है
ऐसा लगता है अब खत्म हुआ अफसाना है ..
मीना जी को को अपनी मौत का शायद पहले ही एहसास हो गया था तभी तो उन्होंने अपना यह आखरी हिसाब भी चुकता कर दिया था और जाते मीना कुमारी ख़ुद को ,पाकीजा को ,कमाल अमरोही को फिल्मी इतिहास के पन्नों में अमर कर गई वह वह फिल्मों के चमन का नायाब फूल थी जो बरसों बहुत इंतज़ार के बाद खिलता है और अपनी खुशबु से सारे चमन को महका देता है
मसरत पे रिवाजों का पहरा है
न जाने कौन सी उम्मीद पर दिल ठहरा है
तेरी आँख में झलकते हुए इस उम्र की कसम ,
ऐ दोस्त !दर्द से रिश्ता बहुत ही गहरा है ..
मीना कुमारी
पढी गए लेखो और किताबों के आधार पर है यह सब जानकारी ...अभी बहुत कुछ बाकी है वह अगले अंक में
9 comments:
पाकीजा तो हमने भी देखी है, मीना कुमारी के बारे में कभी-कभार विविध्भारती पर सुनाने को मिलता था. पर इतनी अच्छी जानकारी एक जगह पर... शुक्रिया आपको.
रंजना जी,
आज आपके ब्लोग पर आकर अच्छा लगा।
यहा पर भी इतनी अच्छी रोचक जानकारी...
बधाई
आपने मीना जी के पत्थरो के पहलू से भी अवगत करा दिया जिसकी हमें जानकारी नही थी। आपका शुक्रिया।
इन्तजार है अगले अंक का. बहुत कुछ नये पहलू मालूम पड़ रहे हैं मीना कुमारी के, जो शायद कभी न नजर में आते, आभार.
मसरत पे रिवाजों का पहरा है
न जाने कौन सी उम्मीद पर दिल ठहरा है ..
वाकई ..कुछ लोग दर्द की खान होते है........अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा....
बेहतरीन लेख ..अच्छी जानकारी दी है आपने !
बेहद सुंदर लेख और मीना कुमारी की खूबसूरत शायरी, बधाई ।
मीना जी सँवेदनशील कलाकार थीँ - उनसा कोई ,
बरसोँ के बाद ही
दीखता है फिल्मोँ मेँ -
आपने उनकी शायरी के साथ ज़िँदगी को बुना है
ये पसन्द आया -
आगे के इँतज़ार मेँ
स्नेह्,
- लावण्या
दिल उम्मीद पर ही ठहरता है , मीना कुमाही जी सहयोग और अपनी करनी की बात सही कहती थी ,
पाकीजा में वो रूह जैसी लगती जिस बाबत कभी लिखने की सोच रही थी..
Post a Comment