आँखे मन का दर्पण है !इन्हे एक प्रकार का 'लाइडिटेक्टर "माना जाता है .जो बिना जुबान हिलाए ही दिल की बात और भाव को पल भर में कह जाती है ...एक घटना है इस से जुड़ी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के जीवन के शुरू के संघर्ष के दिनों की बात है यह ....गंगाधर जी की शादी होने वाली थी ,रिश्ता तय हो गया था कि एक दिन उनकी चाची ने कहा कि 'गंगधार लड़की वालों के यहाँ जाना उनसे कहना कि हम यह रिश्ता नही कर पायेंगे आप किसी अन्य जगह बात करे .."
लड़की के घर जब गंगाधरपहुंचे तो संयोग वश उसके पिता जी बाहर गए हुए थे अंत विवश हो कर दोनों पहली बार तीन पग के फासले पर बैठ गए ...अब गंगाधर कैसे कहे कि तुम्हारे पिता जी दहेज़ नही दे सकते अतः .........!कुछ वाक्य कहने से पहले ही वह कांप गए कि यह सुन के एक गरीब पिता और पुत्री पर आखिर क्या गुजरेगी ! इतने में लड़की के पिता आ गए उनके विस्फरित नेत्रों से उनकी चिंता और घबराहट साफ दिख रही थी और इस बीच गंगाधर अपने मन में मचे द्वंद से उभर चुके थे संघर्ष में जीत आदर्श की हुई वह बोले कि " हमे लड़की पसन्द है "-मारे खुशी के लड़की के पिता के आंखो में आंसू आगये ....जाते समय गंगधार ने उनकी आंखो में देखा तो स्नेह के हज़ार हज़ार भाव झलक रहे थे ...आंखो के प्रकट हुए उन भीने भावों ने गंगाधर का काया कल्प कर दिया और ज़िंदगी को एक नई दिशा मिली !
आंखोकी भाषा कि तरह शरीर के विभिन्न अंगों के अपने अपने संकेत होते हैं ..जो कई बार व्यक्त कि गई बात को झुठला देते हैं सुप्रसिद्ध विज्ञान वेता डॉ जे . फास्ट ने बाडी लेन्गिविज नामक पुस्तक में विज्ञान कि इस शाखा को काइनेसिक्स नाम दिया है .... मानसिक और भावनात्मक क्रियाओं के आंखो से अभिव्यक्त होने के कारण का उन्होंने इस में विस्तार से वर्णन किया है आंखो में झाँकने का मतलब है मस्तिष्क में होने वाली क्रियाओं को स्पष्ट रूप से देखना इस में उन्होंने बताया है कि जब हम किसी रसप्रद वस्तु या व्यक्ति को देखते हैं तो हमारी आंखो की पुतलियाँ चौडी हो जाती है और जब हम किसी नीरस वयक्ति या वस्तु को देखते हैं तो पुतलियाँ सिकुड़ जाती हैं इस तरह आँखे वह है जो मनुष्य के आन्तरिक दिल का हाल बता देती है अपनी ही मूक भाषा में यह कितनी बातें कह जाती है ..आँखे बोलती है :)
5 comments:
आँखें मन का दर्पण होती है. यह शत प्रतिशत सच है. लोकमान्य तिलक जी के जीवन से जुड़ी घटना सन्देश देती हुई.
आँखे ही जुबान होती है.....इसे किसी scintific प्रूफ़ की जरुरत नही है.....आप किसी नन्हें बच्चे की आंखो मे झांक कर देख लीजियेगा ,वो आपकी भाष समझ लेगा.....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.. पढ़ते ही आँखो में चमक आ गयी...
बिलकुल सही कहा आपने । आखों को पढना आना चाहिये बस ।
बहूत सुन्दर -
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