लम्हे वही थे ज़िंदगी के हसीन
जो बिताए हमने तेरे इंतज़ार में
फिर वक़्त कैसे बदल गया
रही ख़बर ना फिर मेरी ज़िंदगी की बहार में
कैसा मिलन था यह हमारा तुम्हारा
तुम पास थे मेरे इतने और
उस वक़्त मैं.... मैं नही थी
एक खुदा के नूर की तरह
तुम मुझे में समा गये
मेरी आँखो की चमक में
मेरी सांसो की रफ़्तार में
मोहब्बत के इज़हार में
ज़िंदगी के एहसास में
मंदिर की किसी घंटी की तरह मन में
और हवा की ख़ुश्बू की तरह बस गये मुझी में
जो बिताए हमने तेरे इंतज़ार में
फिर वक़्त कैसे बदल गया
रही ख़बर ना फिर मेरी ज़िंदगी की बहार में
कैसा मिलन था यह हमारा तुम्हारा
तुम पास थे मेरे इतने और
उस वक़्त मैं.... मैं नही थी
एक खुदा के नूर की तरह
तुम मुझे में समा गये
मेरी आँखो की चमक में
मेरी सांसो की रफ़्तार में
मोहब्बत के इज़हार में
ज़िंदगी के एहसास में
मंदिर की किसी घंटी की तरह मन में
और हवा की ख़ुश्बू की तरह बस गये मुझी में
ईश्वर का स्वरूप खुद में ही है तलाश है खुद की खुद में। सफर" मैं से मैं की तलाश में यह रचना सच है न :)
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11 comments:
इंतजार के ऐहसास को तंहाई के विरह में
अच्छे से पिरोया है...मगर सदा की तरह
उठते मनोवेग को पहले ही लगाम लगा
दिया...क्या यह कोई सपना तो नहीं जो
बीच में ही टूट गया...!!!हमेशा की तरह
तुमसे और की.....संगीत बिल्कुल तुम्हारे
ब्लाग से मेल खा रहा है its really romantic धन्यवाद.
दिल के मनोभावों को अच्छी तरह व्यक्त किया है आपने इन पंक्तियों में !
HUM INTZAAR KARENGE TERA KAYAMAT TUK
KHUDA KARE KI KAYAMAT HO
OR TUU AAYE
shukriya .divyabh .....sapna hi thaa jo tut gaya [:)]
shukriya .divyabh .....sapna hi thaa jo tut gaya [:)]
shukriya manish .....
shukriya mohinder ..bahut sahi lines likhi hai aapne ..
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-12-2014) को "बिलखता बचपन...उलझते सपने" (चर्चा-1834) पर भी होगी।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत खूब ...इश्वर खुद के अन्दर ही होता है ...
बहुत सुन्दर
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