आरकुट में कविता जी ने अमृता प्रीतम के प्रेम के बारे में विचारों को पढ़ा और यह सवाल मुझसे पूछा ..तो मुझे लगा की इस विषय पर कुछ विचार यहाँ लिखूं ..आप सब का भी स्वागत है इस विषय पर अपने विचार जरुर दे ..
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अभी अभी आपके अमृता प्रीतम वाले पार्ट को पढ़ा ...उसमें एक बात है कि अमृता जी ने कहा है कि वो और इमरोज़ एक दूसरे में लीन नही ..वरना प्यार करने वाला कौन रहेगा ...इस बारे मेरी ऑरकुट पर बहुत लोगों से चर्चा करने की कोशिश की..किसी ने ख़ास इंटेरेस्ट नही लिया आप बताएं..प्रेम में स्वतंत्रता ...इस बारे में आप क्या सोचती हैं ??एक प्रेम मीरा का था ...जहाँ 'तू' ही था मीरा समाप्त हो गयी थी ...कहते हैं ना प्रेम गली आती सांकरी ता में दो ना समाए..??...किंतु स्वतंत्रता की बात करें तो उसकी सीमा क्या होगी...सोचियेगा और बताइयेगा ...फिर मैं बताऊँगी कि मुझे क्या लगता है??
कविता जी सबसे पहले आपने इसको इतने ध्यान से पढ़ा और समझा उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया ...बहुत ही अच्छा सवाल है जो आपके जहन में आया है ..प्रेम में स्वतंत्रता ...बहुत जरुरी है क्यूंकि प्रेम बन्धन या बंधने का नाम नही है .प्रेम वही है जो एक दूसरे को समझे उसको वैचारिक आजादी दे ..प्रेम के बारे में इस से पहले मैं इसी ब्लॉग में ढाई आखर प्रेम के लिख चुकी हूँ ..अमृता जी यदि यह कहती है प्रेम में लीन नही इसका मतलब सिर्फ़ इस बात से है कि प्रेम किसी को अपने बन्धन में बांधने की कोशिश नही है ,यह तो एक दूसरे को समझने और जानने और उनके विचारों को भी उतनी ही आजादी देने का नाम है जितनी की अपनी .अमृता ने इमरोज़ को .वैचारिक .आजादी अपनी सोच की आजादी दी और इमरोज़ ने उन्हें ..दोनों ने कभी एक दूसरे के ऊपर ख़ुद को थोपा नही कभी ....शायद तभी .शायद अमृता जी की यही प्रेम की कशिश थी आजादी थी जो मैंने इमरोज़ जी की आंखो में उनके जाने के बाद भी देखी ....
पर आज कल कौन इस बात को समझ पाता है समय ही ऐसा आ गया है कि लोग प्रेम को सिर्फ़ अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करते हैं स्वार्थ वश दोस्ती करेंगे और मतलब के लिए प्यार केवल अपने लिए सोचेंगे और अपना मतलब पूरा होते ही गिरगिट की तरह रंग बदल लेंगे ,,
अब आती है मीरा के प्यार की बात ..प्यार के लिए सबका अपना अपना नजरिया है कोई इस में डूब के पार लगता है तो उस में बह के ...फर्क सिर्फ़ समझने का है ..यहाँ न अमृता के प्यार को कम आँका जा सकता है न मीरा के ..दोनों ने अपने अपने तरीके से प्यार के हल पल को जीया और भरपूर जीया ....
मेरी नज़र में प्यार वही है जो देहिक संबंधों से ऊपर उठ कर हो .प्रेम देह से ऊपर अध्यात्मिक धरातल पर ले जाता है और प्रेम की इस हालत में इंसान कई प्रकार के रूप लिए हुए भी समान धरातल में जीता है ..प्रेम की चरम सीमा वह है जब दो अलग अलग शरीर होते हुए भी सम्प्दनों का एक ही संगीत गूंजने लगता है और फ़िर इसका अंत जरुरी नही की विवाह ही हो ..प्रेम हर हालात में साथ रहता है .मीरा के प्रेम की सिथ्ती अध्यात्मिक थी वह उस परमात्मा का अंश बन गई थी उसी का रूप बन गई थी जहाँ कोई भेद नही ...कोई छुपाव नही ...
यह मेरे अपने विचार है ..प्रेम क्या है इस के बारे में सबके मत अपने अपने हो सकते हैं ..कविता जी मुझे आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा ..शुक्रिया
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अभी अभी आपके अमृता प्रीतम वाले पार्ट को पढ़ा ...उसमें एक बात है कि अमृता जी ने कहा है कि वो और इमरोज़ एक दूसरे में लीन नही ..वरना प्यार करने वाला कौन रहेगा ...इस बारे मेरी ऑरकुट पर बहुत लोगों से चर्चा करने की कोशिश की..किसी ने ख़ास इंटेरेस्ट नही लिया आप बताएं..प्रेम में स्वतंत्रता ...इस बारे में आप क्या सोचती हैं ??एक प्रेम मीरा का था ...जहाँ 'तू' ही था मीरा समाप्त हो गयी थी ...कहते हैं ना प्रेम गली आती सांकरी ता में दो ना समाए..??...किंतु स्वतंत्रता की बात करें तो उसकी सीमा क्या होगी...सोचियेगा और बताइयेगा ...फिर मैं बताऊँगी कि मुझे क्या लगता है??
कविता जी सबसे पहले आपने इसको इतने ध्यान से पढ़ा और समझा उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया ...बहुत ही अच्छा सवाल है जो आपके जहन में आया है ..प्रेम में स्वतंत्रता ...बहुत जरुरी है क्यूंकि प्रेम बन्धन या बंधने का नाम नही है .प्रेम वही है जो एक दूसरे को समझे उसको वैचारिक आजादी दे ..प्रेम के बारे में इस से पहले मैं इसी ब्लॉग में ढाई आखर प्रेम के लिख चुकी हूँ ..अमृता जी यदि यह कहती है प्रेम में लीन नही इसका मतलब सिर्फ़ इस बात से है कि प्रेम किसी को अपने बन्धन में बांधने की कोशिश नही है ,यह तो एक दूसरे को समझने और जानने और उनके विचारों को भी उतनी ही आजादी देने का नाम है जितनी की अपनी .अमृता ने इमरोज़ को .वैचारिक .आजादी अपनी सोच की आजादी दी और इमरोज़ ने उन्हें ..दोनों ने कभी एक दूसरे के ऊपर ख़ुद को थोपा नही कभी ....शायद तभी .शायद अमृता जी की यही प्रेम की कशिश थी आजादी थी जो मैंने इमरोज़ जी की आंखो में उनके जाने के बाद भी देखी ....
पर आज कल कौन इस बात को समझ पाता है समय ही ऐसा आ गया है कि लोग प्रेम को सिर्फ़ अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करते हैं स्वार्थ वश दोस्ती करेंगे और मतलब के लिए प्यार केवल अपने लिए सोचेंगे और अपना मतलब पूरा होते ही गिरगिट की तरह रंग बदल लेंगे ,,
अब आती है मीरा के प्यार की बात ..प्यार के लिए सबका अपना अपना नजरिया है कोई इस में डूब के पार लगता है तो उस में बह के ...फर्क सिर्फ़ समझने का है ..यहाँ न अमृता के प्यार को कम आँका जा सकता है न मीरा के ..दोनों ने अपने अपने तरीके से प्यार के हल पल को जीया और भरपूर जीया ....
मेरी नज़र में प्यार वही है जो देहिक संबंधों से ऊपर उठ कर हो .प्रेम देह से ऊपर अध्यात्मिक धरातल पर ले जाता है और प्रेम की इस हालत में इंसान कई प्रकार के रूप लिए हुए भी समान धरातल में जीता है ..प्रेम की चरम सीमा वह है जब दो अलग अलग शरीर होते हुए भी सम्प्दनों का एक ही संगीत गूंजने लगता है और फ़िर इसका अंत जरुरी नही की विवाह ही हो ..प्रेम हर हालात में साथ रहता है .मीरा के प्रेम की सिथ्ती अध्यात्मिक थी वह उस परमात्मा का अंश बन गई थी उसी का रूप बन गई थी जहाँ कोई भेद नही ...कोई छुपाव नही ...
यह मेरे अपने विचार है ..प्रेम क्या है इस के बारे में सबके मत अपने अपने हो सकते हैं ..कविता जी मुझे आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा ..शुक्रिया
7 comments:
amrita preetam ko bahut padha hai aor aapke pas kuch nazm dekhkar .man hua unhe chura lun..hindi me shivani ko bhi padha hai ..par amrita jaisi bindas .sach me koi nahi hai.
प्यार,दैहिकता के अंतर्गत नहीं आता....शरीर नगण्य है,प्यार आपसी समझ है .......
आपने सही कहा-विचारों की स्वतंत्रता , .......
प्यार दिखावा नहीं,वह सिर्फ दो प्यार करनेवालों के बीच की बात है
जो 'सरेआम' नज़र आये वह प्यार नहीं,
आँखों से जो छलके,प्यार वह है.......
अमृता,इमरोज़ की बात जुदा है
इबादत करने का जी करता है........
सचमुच प्यार दिखावा नहीं दो प्यार करने वालो के बीच की बात हैं ....
रंजना जी प्यार तो सभी करते हे, लेकिन प्यार हे कया यह बहुत कम जानते हे प्यार सिर्फ़ देना जानता हे, प्यार का कोई नाम नही.प्यार सिर्फ़ प्यार हे.
बकवास है, कोई नहीं बता पाएगा इस बारे में. जो इश्क को जान लेगा वो कुछ कहने की हालत में नहीं रहेगा और जो जान ही नहीं पाया वह क्या खाक बताएगा इस शानदार हकीकत की जादूबयानी... हां कबीर कुछ कहने के हालात में थे यहां से कुछ सूत्र मिल सकते हैं कोई बंधु इनकी व्याख्या करे तो राज खुले..
हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?
जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ?
खलक सब नाम अनपे को, बहुत कर सिर पटकता है,
हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनिया से यारी क्या ?
न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछड़े पियारे से,
उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या ?
कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से,
जो चलना राह नाज़ुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या ?
मेरे तो उपर से निकल गया जी!!
pyar ke itne gehre bhav padhe bahut achha laga.
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