अमृता बचपन से अकेली पली बड़ी है ...जब वह मात्र दस साल की थी उनकी माँ का स्वर्गवास हो गया !उनका बचपन वैसा नही था जैसा एक आम बच्चे का होता है ....उनके पिता लेखक थे जो रात में लिखते और दिन में सोया करते थे ....घर में सिर्फ़ किताबे और किताबे ही थी जिनमें वह दब कर रह गई थी! कई बार उन्हें लगता था कि वह ख़ुद एक किताब है मगर कोरी किताब सो उन्होंने उसी कोरी किताब में लिखना शुरू कर दिया !
तब उनके पिता ने उनकी प्रतिभा को पहचाना उसको संवारा तुक और छन्द का ज्ञान करवाया उन्हें भगवान की प्रशंसा के गीत और इन्सान के दुःख दर्द की कहानी लिखने को प्रेरित किया वह चाहते थे कि अमृता मीरा बाई की तरह लिखे पर यह नही हो सका !
अमृता ने चाँद की परछाई में से निकल कर अपने लिए एक काल्पनिक प्रतिमा बना ली थी जिसे वह घंटो चाँद की परछाई में देखा करती थी उसका काल्पनिक नाम उन्होंने राजन रखा था ....ग्यारह साल की अमृता ने अपनी पहली प्रेम कविता उसी राजन के नाम लिखी जो उनेक पिता ने उनकी जेब में देख ली थी ,अमृता डर गई थी और यह नही कह पायी की कविता उन्होंने ही लिखी है ......पिता ने उनके मुहं पर थप्पड़ मारा इसलिए नही कि उन्होंने कविता लिखी इस लिए कि उन्होंने झूठ बोला था !
पर उनकी कविता कोई दोष न ले सकी कि उसने झूठ बोला और बिना रोक टोक के कविता उमड़ पड़ी और बहने लगी ....
पंजाब सरकार ने अमृता को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से समानित किया !पंजाब प्रदेश के मुख्यमंत्री ख़ुद अमृता के घर उन्हें सम्मानित करने उनके घर पहुंचे...... अमृता अपने पीहर [पिता के घर से मिले ] सम्मान से बहुत भावुक हो गई थी और बहुत जज्बाती हो कर उन्होंने कहा कि बहूत साल बाद मेरे मायके वालों ने मुझे याद किया है पर इतनी देर कर दी कि अब मैं अपने पैरों पर खड़ी भी नही हो सकती ....इसका इस्तकबाल भी नही कर सकती हूँ ....
पीहर की याद उनके जहाँ में एक साथ उमड़ आई थी वह कुछ बोल नही पा रहीं थी उनके शब्दों में एक शिकायत थी कि उनके पिता के प्रदेश से उन्हें इतनी देर बाद पहचाना गया !!
अमृता प्रीतम
एक दर्द था -
जो सिगरेट की तरह
मैंने चुपचाप पिया है
सिर्फ़ कुछ नज्म हैं --
जो सिगरेट से मैंने
राख की तरह झाड़ी हैं !!
***************************************
मुद्दत से एक बात चली आती थी
कि वक्त की ताक़त रिश्वत देती
इतिहास से चोरी
इतिहास के पन्नों की खरीदती
वह जब भी चाहती रही
कुछ पंक्तियाँ बदलती
और कुछ मिटाती रहीं ,
इतिहास हँसता रहा
खीझता रहा ,
और हर इतिहास कार को
वह माफ़ करता रहा !
पर आज शायद
बहुत ही उदास है -----
एक हाथ उसकी जिल्द को उठा कर
कुछ पन्नों को फाड़ता
और उनकी जगह
कुछ और पन्ने सी रहा है
और इतिहास ---
चुपके से पन्नों से निकल कर
एक पेड़ के नीचे खड़ा
एक सिगरेट पी रहा है........
--
तब उनके पिता ने उनकी प्रतिभा को पहचाना उसको संवारा तुक और छन्द का ज्ञान करवाया उन्हें भगवान की प्रशंसा के गीत और इन्सान के दुःख दर्द की कहानी लिखने को प्रेरित किया वह चाहते थे कि अमृता मीरा बाई की तरह लिखे पर यह नही हो सका !
अमृता ने चाँद की परछाई में से निकल कर अपने लिए एक काल्पनिक प्रतिमा बना ली थी जिसे वह घंटो चाँद की परछाई में देखा करती थी उसका काल्पनिक नाम उन्होंने राजन रखा था ....ग्यारह साल की अमृता ने अपनी पहली प्रेम कविता उसी राजन के नाम लिखी जो उनेक पिता ने उनकी जेब में देख ली थी ,अमृता डर गई थी और यह नही कह पायी की कविता उन्होंने ही लिखी है ......पिता ने उनके मुहं पर थप्पड़ मारा इसलिए नही कि उन्होंने कविता लिखी इस लिए कि उन्होंने झूठ बोला था !
पर उनकी कविता कोई दोष न ले सकी कि उसने झूठ बोला और बिना रोक टोक के कविता उमड़ पड़ी और बहने लगी ....
पंजाब सरकार ने अमृता को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से समानित किया !पंजाब प्रदेश के मुख्यमंत्री ख़ुद अमृता के घर उन्हें सम्मानित करने उनके घर पहुंचे...... अमृता अपने पीहर [पिता के घर से मिले ] सम्मान से बहुत भावुक हो गई थी और बहुत जज्बाती हो कर उन्होंने कहा कि बहूत साल बाद मेरे मायके वालों ने मुझे याद किया है पर इतनी देर कर दी कि अब मैं अपने पैरों पर खड़ी भी नही हो सकती ....इसका इस्तकबाल भी नही कर सकती हूँ ....
पीहर की याद उनके जहाँ में एक साथ उमड़ आई थी वह कुछ बोल नही पा रहीं थी उनके शब्दों में एक शिकायत थी कि उनके पिता के प्रदेश से उन्हें इतनी देर बाद पहचाना गया !!
अमृता प्रीतम
एक दर्द था -
जो सिगरेट की तरह
मैंने चुपचाप पिया है
सिर्फ़ कुछ नज्म हैं --
जो सिगरेट से मैंने
राख की तरह झाड़ी हैं !!
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मुद्दत से एक बात चली आती थी
कि वक्त की ताक़त रिश्वत देती
इतिहास से चोरी
इतिहास के पन्नों की खरीदती
वह जब भी चाहती रही
कुछ पंक्तियाँ बदलती
और कुछ मिटाती रहीं ,
इतिहास हँसता रहा
खीझता रहा ,
और हर इतिहास कार को
वह माफ़ करता रहा !
पर आज शायद
बहुत ही उदास है -----
एक हाथ उसकी जिल्द को उठा कर
कुछ पन्नों को फाड़ता
और उनकी जगह
कुछ और पन्ने सी रहा है
और इतिहास ---
चुपके से पन्नों से निकल कर
एक पेड़ के नीचे खड़ा
एक सिगरेट पी रहा है........
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10 comments:
वाह ! बहुत ही कमाल की रचनाएं. अमृता प्रीतम की अनूठी छाप. एकदम जुदा. शुक्रिया पहुंचाने का.
रंजना जी,
अमृता प्रीतम जी के बारे में आप सचमुच काफ़ी गहरी जानकारी दे रही है.. साथ ही उनकी रचनायें भी पढने को मिल रही हैं...
धन्यवाद
अमृता ने चाँद की परछाई में से निकल कर अपने लिए एक काल्पनिक प्रतिमा बना ली थी जिसे वह घंटो चाँद की परछाई में देखा करती थी उसका काल्पनिक नाम उन्होंने राजन रखा था ....
कुछ ऐसी ही कल्पना एक कोमल कवि मन करता है...
एक अनाम नाम साथ होता है,लेखनी का साथ देता है........
कितनी बड़ी विडम्बना है,जीवन के अन्तिम मोड़ पर सम्मान मिलता है,
प्रतिभा इसकी मोहताज नहीं होती,पर वक़्त पर मिले,.......
रंजना जी,ये नज्म कमाल की हैं
sachmuch bemisal hai amrita...yun bhi unki shayri ka kuch andaz gulzar se milta julta hai khas taur se najmo me...bantne ke liye shukriya.
एक इमरोज़ ने,और यहाँ देखा की तुमने
अमृता को जिंदा कर दिया
उनके हर एक पल को सार्थक बना दिया,
अम्मा का आशीर्वाद लो
नमस्ते अम्मा जी ,
आपने इस को पढ़ा और अपना आशीर्वाद दिया दिल से खुशी हुई ..अमृता के बारे में लिख के ,पढ़ के एक सकून जो दिल को मिलता वह उनको जानने वाला ही जान सकता है ..उनके बारे में लिखते हुए उनके घर की खुशबु और इमरोज़ की मुस्कारती आँखे जो अभी भी अमृता के प्यार से भरी हुई है लिखने का एक नया जोश भर देती हैं ...और मैं इस अमृता इमरोज़ की कड़ी को एक पग और आगे बढ़ा देती हूँ ...लगता है की कैसे समाप्त कर दूँ इस प्यार करने वाले दो दिलों की दास्तान को .अभी तो बहुत कुछ लिखना रह गया है ...आप जैसे लोग साथ हैं तो यह जोश और दुगना हो उठा है ..लगता है मेरी तरह और भी कुछ अमृता के दीवाने हैं जो अमृता के साथ आज भी पल पल जीते हैं .आपका आशीर्वाद यूं ही बना रहे बहुत बहुत शुक्रिया आपका
'
आपकी रंजू
और बाकी सब मित्रों का भी तहे दिल से शुक्रिया जो इस श्रृंखला को इतने प्यार से पढ़ रहे हैं ...यूं ही साथ रहे लिखने का जोश बना रहता है इस से :)
बहुत बढ़िया!!
अमृता से जुड़ा बहुत कुछ पढ़वा रही हैं आप
शुक्रिया
bahut sundar rachanaye hai aur amrutaji ke bare mein padhana bhi achha lag raha hai,bahut janane ko mila unke bare mein.
sach-much amritaji k bare me jankar achha laga. meri manju aunty se amritaji k bare me suna tha.wo aaj v amritaji ki bahut badi fen hai.kai br unhe kai khat v likhe pr unhe koi jawab nai mil paya tha,jinka unhe aaj v dukh hai
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