Friday, February 01, 2008

बात कुफ्र की ..अमृता प्रीतम और इमरोज़ भाग ३

अमृता प्रीतम और इमरोज़ भाग ३

-अमृता प्रीतम और इमरोज़ ...इनके बारे में जानना और लिखना सच में एक अदभुत एक सकून सा देता है दिल को ..एक लेखिका के रूप में अमृता जी को बहुत प्रतिरोध का सामना करना पड़ा ,उनका बहुत विरोध भी हुआ ,उनके स्पष्ट ,सरल और निष्कपट लेखन के कारण और उनके रहने सहने के ढंग के कारण भी ..लेकिन उन्होंने कभी भी अपने विरोधियों और निन्दकों की परवाह नही की !उन्होंने अपने पति से अलग होने से पहले उन्हें सच्चाई का सामना करने और यह मान लेने के लिए प्रेरित किया की समाज का तिरिस्कार और निंदा की परवाह किए बिना उन्हें अलग अलग चले जाना चाहिए ,उनका मानना था की सच्चाई का सामना करने के लिए इंसान को सहास और मानसिक बल की जरुरत होती है

एक बार एक हिन्दी लेखक ने अमृता जी से पूछा था की अगर तुम्हारी किताबों की सभी नायिकाएं सच्चाई की खोज में निकल पड़ी तो क्या सामजिक अनर्थ न हो जायेगा ?

अमृता जी ने बहुत शांत भाव से जवाब दिया था कि यदि झूठे सामजिक मूल्यों के कारण कुछ घर टूटते हैं तो सच्चाई की वेदी पर कुछ घरों का बलिदान भी हो जाने देना चाहिए !!

अमृता और इमरोज़ दोनों मानते थे कि उन्हें कभी समाज की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं थी !आम लोगो की नज़र में उन्होंने धर्म विरोधी काम ही नही किया था बलिक उससे भी बड़ा अपराध किया था ,एक शादीशुदा औरत् होते हुए भी सामजिक स्वीकृति के बिना वह किसी अन्य मर्द के साथ रहीं जिस से वह प्यार करती थी और जो उनसे प्यार करता था !

एक दिन अमृता ने इमरोज़ से कहा था कि इमरोज़ तुम अभी जवान हो .तुम कहीं जा कर बस जाओ .तुम अपने रास्ते जाओ ,मेरा क्या पता मैं कितने दिन रहूँ या न रहूँ !"

तुम्हारे बिना जीना मरने के बराबर है और मैं मरना नही चाहता " इमरोज़ ने जवाब दिया था !

एक दिन फ़िर किसी उदास घड़ी में उन्होंने इमरोज़ से कहा था कि तुम पहले दुनिया क्यों नही देख आते ? और अगर तुम लौटो और मेरे साथ जीना चाहा तो फ़िर में वही करुँगी जो तुम चाहोगे !"
इमरोज़ उठे और उन्होंने उनके कमरे के तीन चक्कर लगा कर कहा "लो मैं दुनिया देख आया ! अब क्या कहती हो ?"

अब ऐसे दीवाने प्यार को क्या कहे ?

अमृता जी के लफ्जों में कहे तो ..

आज मैंने एक दुनिया बेची
एक दीन विहाज ले आई
बात कुफ्र की थी
सपने का एक थान उठाया
गज कपडा बस फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी ली ...

शेष अगले अंक में ....

अमृता जी पर लिखी एक किताब पर आधारित है यह जानकारी !!

4 comments:

Anonymous said...

अगर तुम्हारी किताबों की सभी नायिकाएं सच्चाई की खोज में निकल पड़ी तो क्या सामजिक अनर्थ न हो जायेगा ?
अमृता जी ने बहुत शांत भाव से जवाब दिया था कि यदि झूठे सामजिक मूल्यों के कारण कुछ घर टूटते हैं तो सच्चाई की वेदी पर कुछ घरों का बलिदान भी हो जाने देना चाहिए !!
hindi bloggers ko jo apne kuyae mae kaid hae amrita preetam sae jarur kuch seekh saktey haen

शोभा said...

रंजना जी
बहुत मार्मिक प्रसंग लिया है आपने । पढ़कर बहुत अच्छा लगा । समाज और दुनिया की बाधाएँ सबके ही सामने आती हैं । पर एक साहित्यकार इन सबको अधिक गहराई से लेता है । इसी तरह अपने अध्ययन का प्रसाद बाँटती रहें । शुभकामनाओं सहित

Anita kumar said...

अच्छा लगा पढ़ कर

Anonymous said...

बहुत अच्छा लगा पढ़कर!!