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Tuesday, December 04, 2007
ज़िंदगी
ज़िंदगी कभी तू भी मुझे अपनो की तरह मिल
किसी ग़ैर की तरह क्यों सताती है मुझे
रोता है दिल मेरा तेरी बेरूख़ी देख कर
तेरी हर बात आज रुलाती हैं मुझे,
कभी थामा था दामन हमने ख़ुशी का
कभी हमने भी खिलते गुलो को देखा था
कभी मुस्कराया था जीवन मेरा भी
कभी हमने भी प्यार का मौसम देखा था
आज क्यों हर बात लगती है सपना
किसी किस्से सी तू नज़र आती है मुझे
यूँ ना दिखा संगदिली अपनी ऐ ज़िंदगी
कि अब मौत भी ठुकराती है मुझे
ज़िंदगी कभी तू भी मुझे अपनो की तरह मिल
किसी ग़ैर की तरह क्यों सताती है मुझे!!
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17 comments:
भावों को शव्द देनें में तो आपका जवाब नहीं, जीवन के हर पल को आपने अपनी कविताओं में जीवंत किया है । आभार ।
घर पर ब्लाग मित्र का फोन और गांव की कुंठा
bhut khoob..
zindagi ke rang apki rachna mein khoob kheeley hai
बढ़िया रचना!!
पर अगर यह ताज़ी रचना है तो एक बार फ़िर आप निराशा की ओर जाती दिख रही हैं जबकि बीच में कुछ दिनो पहले तक आपकी रचनाओं में आशावाद झलक रहा था!!
कभी थामा था दामन हमने ख़ुशी का
कभी हमने भी खिलते गुलो को देखा था
खिलते गुल गर मुरझाने लगे तो मन तड़प उठता है ....
--- बहुत भाव भीनी रचना..
ज़िंदगी कभी तू भी मुझे अपनो की तरह मिल
किसी ग़ैर की तरह क्यों सताती है मुझे!!
बहुत खूब. बहुत संवेदन शील रचना है ये आपकी. वाह
मेरा एक शेर आप कि रचना के लिए:
"बिताते तुम जो नीरज ज़िंदगी संग इन गुलाबों के
तो काटों बीच रहने का तुम्हे भी ढंग आ जाता"
नीरज
ज़िंदगी कभी तू भी मुझे अपनो की तरह मिल
किसी ग़ैर की तरह क्यों सताती है मुझे
bahut khuub
"किसी गैर की तरह क्यों सताती है?" -- जीवन है अगर जहर, तो पीना ही पड़ेगा ना? गमों से भी आनन्द उठाना सीख लें तो जीवन सुखमय हो सकता है।
यानी जिंदगी का खुशनुमां चेहरा देखा तो है आपने. इसीलिए इतनी शिदृधत से तलाश है , लेकिन शब्दों में अपनी बेचैनी पिरो देने की आपकी कला लाजवाब है. अपनी की सी बात लगती है. बहुत खूब
कमाल की अभिव्यक्ति है रंजू जी.
"ज़िंदगी कभी तू भी मुझे अपनो की तरह मिल
किसी ग़ैर की तरह क्यों सताती है मुझे!!"
हालांकि फिर ये भी लगा कि ज़िंदगी तो फ़ितरतन ग़ैर है, अपनों कि तरह मिले भी तो क्योंकर ? या शायद कभी कभी, किसी किसी से मिलती भी हो अपनों कि तरह !
"कौन कहता है कि आसमान में सूराख नही हो सकता,तबियत से एक पत्थर उछालो तो यारो"
"दुष्यंत" की यह पंक्तिया आप पर बिल्कुल फिट बैठती हैं। आपकी शब्द संयोजन शैली वाकई एक
दिन लोगों को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देगी।
ज़िंदगी कभी तू भी मुझे अपनो की तरह मिल
किसी ग़ैर की तरह क्यों सताती है मुझे
रोता है दिल मेरा तेरी बेरूख़ी देख कर
तेरी हर बात आज रुलाती हैं मुझे,
क्या बात है... बहुत खूब..
जवाब नहीं
bhut khoub likha hai apne jindgi ke bare main.badhai
ज़िन्दगी से ये सिफ़ारिश या शिक़ायत कुछ भी है, किन्तु इस तरह कहना अच्छा लगा|
bohot achchha likha hai aapne,mujhe achchha isliye laga kyunki ismein mujhe apni zindagi dikhayi di.
bohot achchha likha hai aapne,mujhe achchha isliye laga kyunki ismein mujhe apni zindagi dikhayi di.
yaar agyaar kya kante numa kar gye
B.A.kiya noukri mili penshion mili or mar gye.
साधारण शब्दों में ..- असाधारण |
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