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Monday, July 02, 2007
मैं ख़्याल रखूँगी...
तुम प्यास की तरह मेरे लबों पे रहो..
मैं ख़याल रखूँगी की यह प्यास जगती रहे
बसे रहो मेरे दिल में सुरीला राग बन के
मैं ख़्याल रखूँगी यह धुन प्यार की बजती रहे
सजाओ मेरे आशियाँ को अपने ख्वाबो से
मैं ख़याल रखूँगी की यह रात सितारों सी चमकती रहे
प्यार की बरसती घटाओ को मुझ पे जम के बरसाओ
मैं ख़याल रखूँगी की यह सावन की रुत यूँ चलती रहे
ढल जाओ मेरे गीतो में प्यार का लफ्ज़ बन के तुम
मैं ख़्याल रखूँगी की एक आग इन लफ़्ज़ो में सुलगती रहे
कर दो अपनी पवन छुअन से मुझ पत्थर को पारस
मैं ख़्याल रखूँगी की धड़कनो में धुन तेरे नाम की बजती रहे
ज़िंदगी ना लगे कभी यूँ ही बेवजह सी जीती हुई सी
मैं ख़याल रखूँगी की जीने की आस दिल में पलती रहे
कब चल पाया है यह संसार नफ़रत की बातों से
मैं ख़्याल रखूँगी की प्यार की शमा दिल में जलती रहे !!
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11 comments:
चाहत………………
कामना………
और विरह………
ये तीन बातें आपकी इस रचना में बहुत उभरकर आई हैं, इन तीनों ही बातों को लेकर लिखी गई एक सुंदर रचना!!
कब चल पाया है यह संसार नफ़रत की बातों से॰॰॰॰
वाह क्या बात है दी' आपने तो बड़ी गज़ब की बात कह दी ।
श्रंगार रस की प्रधानता काव्य रचना के माधुर्य को बनाये रखने मे पूर्णतः सफल हुई है।
अब बराबर आपके ब्लोग पर आने का " मैं खयाल रखूंगा।"
आर्यमनु
ज़िंदगी ना लगे कभी यूँ ही बेवजह सी जीती हुई सी
मैं ख़याल रखूँगी की जीने की आस दिल में पलती रहे
main khayaal rakhungi ki aapki har nazm padti rahu :)
gud one
एकदम ख्याल रखूँगा कि जब जब ऐसी सुन्दर रचना लिखें मैं टिप्पणी कर दाद देता रहूँगा. सुन्दर!!
न चाहते कभी मिटती हैं न हसरतें
बस उन्हे याद करने वाले बदलते हैं.. सुन्दर रचना
हजारों चाहते ऐसी कि हर चाहत पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, मगर फ़िर भी कम निकले
डा. रमा द्विवेदी said....
रंजू जी,
प्रथम बार आपके ब्लाग को पढ़ा...रचनाएं अच्छी लगीं...यह रचना अच्छी है पर दूसरी पंक्ति की लय अन्य पंक्तियों से टूट रही है'जगती रहे' भी कर सकती थीं...उम्मीद है आप अन्यथा नहीं लेंगी और थोड़ी सावधानी बरतेंगी। मेरी हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं स्वीकारें।
डॉक्टर रमा आपका यहाँ स्वागत हैं ..शुक्रिया उस ग़लती की तरफ़ ध्यान दिलाने के लिए .टाइप की ग़लती थी मैने ठीक कर दिया है ..उम्मीद है की आप यूँ ही मेरा लिखा आगे भी पढ़ती रहेंगी और मेरा होसला यूँ ही बढ़ाती रहेंगी ...शुक्रिया :)
raag, pyaas, ashiyaan, ghata, sitare
Chand jane pahchane shabdon se jani pahchani baatein;
Bhawanaon ki tadap shabdon ke is jaal se nikalne ki
Shabdon ki khwahish in sadiyon purani zanzeeron ko tod nischhand ghumne ki;
Kabhi iss kagaz ke mahal ko pattharon ka niwala do varna agli barish mein dhah jayenge ye
bahut khubsoorat ranju ji. bahut hi saral shabdo mei sunder abhivyakti hai.. aapki rachnaaye dil ko chhuti hain.
:) :)
रस का सागर व्याकुल है घुलने को मौसम में और राह दिखा रही है यह कविता उस ओर आश्रय की…।
क्याSSSSS बात है जब भी कहा बहुत प्यारा प्यार भरा ही कहा…कहाँ है इतनी प्रीति दुनियाँ के वन में अब सींचा है आपने इसे तो मिलेगा प्रेम सफर…।
bahut achcha hai..shabd nahi mil rahe ..
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