सावन की यह भीगी सी बदरिया
बरसो जा के पिया की नगरिया
यहाँ ना आके हमको जलाओ
अपने बरसते पानी से यूँ शोले ना भड़काओ
उनके बिना मुझे कुछ नही भाये
सावन के झूले कौन झुलाये
बिजली चमक के हमे ना डराओ
बिन साजन के दिल मेरा कांप जाये
उलझा दिए हैं बरस के जो तुमने मेरे गेसू
उनको अब कौन अपने हाथो से सुलझाए
यह बिखरा सा काजल,यह चिपका सा आँचल
अब हम किसको अपनी आदओ से लुभायें
रुक जाओ आ बहती ठंडी हवाओं
तेरी चुभन से मेरा जिया और भी तड़प सा जाये
मत खनको बेरी कंगना,पायल
तुम्हारी खनक भी अब बिल्कुल ना सुहाये
सब कुछ सूना सूनाा है उनके बिना
मुझको यह बरसती बदरिया पिया के बिना बिल्कुल ना भाये!!
बरसो जा के पिया की नगरिया
यहाँ ना आके हमको जलाओ
अपने बरसते पानी से यूँ शोले ना भड़काओ
उनके बिना मुझे कुछ नही भाये
सावन के झूले कौन झुलाये
बिजली चमक के हमे ना डराओ
बिन साजन के दिल मेरा कांप जाये
उलझा दिए हैं बरस के जो तुमने मेरे गेसू
उनको अब कौन अपने हाथो से सुलझाए
यह बिखरा सा काजल,यह चिपका सा आँचल
अब हम किसको अपनी आदओ से लुभायें
रुक जाओ आ बहती ठंडी हवाओं
तेरी चुभन से मेरा जिया और भी तड़प सा जाये
मत खनको बेरी कंगना,पायल
तुम्हारी खनक भी अब बिल्कुल ना सुहाये
सब कुछ सूना सूनाा है उनके बिना
मुझको यह बरसती बदरिया पिया के बिना बिल्कुल ना भाये!!
12 comments:
उलझा दिए हैं बरस के जो तुमने मेरे गेसू
उनको अब कौन अपने हाथो से सुलझाए
यह बिखरा सा काजल,यह चिपका सा आँचल
अब हम किसको अपनी आदओ से लुभायें
सावन की फ़ुहार से शिकायत
बहुत प्यारी लगी
आपकी कविता की बनावट
बहुत प्यारी लगी
आहSSSS मधुर संगीत की नाव…शब्दों की कल-कल…भावनाओं का बहाव…बस ढूंढते हुए खोजी मन का तलाश है वह छोटा सा गाँव।
कहाँ जाकर रुकेगी आपकी नैया बस किनारों तलक पहुंचाये ये मधुरता की मिठास…
बहुत बढ़िया और सुंदरता से बही पूरी रचना. बधाई.
क्या बात है? आषाढ़ में सावन की बात हो रही है, मगर सच कहूँ कविता में इतना रस है कि लगने लगा कि सावन आ गया।
wow !!!!!!!!!!!!!!!1
yah bhiga sa mausammmmmmmmmmmmmmmm
padkar bahut achha laga mam.....
ye lag raha hai bilkul mere liye hai....yani premlata ke liye...ha ha ha.....pl.dnt.mind...
bahut bahut dhanybad mam....aapko premlata ke taraf se uuuuuuummmmm
Ranju ji,
aapne barish ke mausam ki bechaini par khoobsoorat kavita likhi hai. sundar bhav hain.
"यह बिखरा सा काजल,यह चिपका सा आँचल
अब हम किसको अपनी आदओ से लुभायें
रुक जाओ आ बहती ठंडी हवाओं
तेरी चुभन से मेरा जिया और भी तड़प सा जाये"
वर्षा का विरह…… जब बारिश की बूंदें भीगोकर शीतल करने की बजाय विरहाग्नि को और बढ़ा जाएं!!
शानदार कविता!!
nice writing ranju. But it is same voice have been hearing for long...
ऐसी रचना जोः
आंखों के रास्ते से दिल में उतर गई!
बहुत सुंदर रचना है।
बधाई स्वीकारें।
Bahut khubsurat rachna hai,bahut hi sunder bhaav hai, jab ki ye rachna meri pasand se hat kar hai, per mujhe bahut achhi lagi. Badhaai...
Saawan aane ki ghanti baja di hai aapne ranju ji...!!
ranju ji bahut sunder rachna hai pad kar esa laga ki aaj barish na hokar bhi barish ho rahi hai.
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