Friday, May 11, 2007

रॉक गार्डन***


उस बनाने वाले ने रॉक गार्डन
मेरे दिल में एक नयी चाहत जगा दी है
मेरे सोए हुए अरमानो को टूटे हुए एहसासो को
फिर से जीने की एक नयी राह दिखा दी है !!

कुछ वक़्त पहले मेरे साथ लिखने वाले मेरे एक साथी ने रॉक गार्डन पर कुछ लिखा था जिसका मूल भाव यह था की जिस तरह एक कलाकार ने टूटी फूटी चीज़ो से एक नयी दुनिया बसा दी है क्या कोई मेरे एहसासो को इसी तरह से सज़ा के नये आकार में दुनिया के सामने ला सकता है ?दिल तो मेरा है "रॉक" ही, क्या उस पर अहसास का गार्डन बना सकता है? ...... मेरे दिल को उनकी लिखी यह कविता छू गयी . ..मैने कोशिश की है उनके कुछ जवाबो को अपनी तरह से देने की ..

बना तो दे हम तेरे रॉसे दिल को
फिर से अपनी चाहतो से
एक नया सा बाग़ महकता हुआ
पर क्या तुम उन टूटी फूटी चीज़ो की तरह
अपने एहसासो को फिर से जी पाओगे

अपने टूटे हुए अस्तित्व को सॉंप दिया था
उन टूटे प्यालो कंकरों, पत्थरों ने उस बाज़ीगर को
क्या तुम अपने सारे दर्द , टूटे हुए एहसास
ऐसे मुझे दे पाओगे... ?????

क्या तुम में भी है सहनशीलता उन जैसी
जो उन्होने नये आकर बन पाने तक सही थी
क्या तुम भी उन की तरह तप कर
फिर से उनकी तरह सँवर पाओगे ????

अगर मंज़ूर हैं तुम्हे यह सब
तो दे दो मुझे अपने उन टूटे हुए एहसासो को
मैं तुम्हारे इस रॉहुए दिल को
फिर से महका दूँगी सज़ा दूँगी
खिल जाएगा मेरे प्यार के रंगो से
यह वीरान सा कोना तेरी दुनिया का
पूरी दुनिया को मैं यह दिखा दूँगी !!

6 comments:

mamta said...

कविता तो अच्छी है पर शब्दों को लिखते हुए ध्यान रखा करें । जैसे चीजों ,कंकरों, पत्थरों (अगर ये ककरो ,पथरो नही है तो )

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया ममता जी ...ठीक कर दिया है ..कभी कभी मेरा हिंदी लिखने वाला ठीक से काम नही करता
सो कुछ गड़बड़ हो जाती है ...शुक्रिया आपका तहे दिल से :)

Udan Tashtari said...

बढ़िया भाव हैं रचना के. अच्छा लगा पढ़कर इस परिकल्पना को.

Anonymous said...

बहुत ही सुन्दर!

Mohinder56 said...

सुन्दर भाव भरी रचना

रंजू भाटिया said...

shukriya sameer ji ..joshi ji ..aur mohinder ji ...aapka tahe dil se