Sunday, May 06, 2007

एक कामकाज़ी पत्नी की दास्तान



आज की नारी घर और बाहर दोनो मोर्चो को बख़ूबी संभाल रही है
मेरी छोटी बहन भी इसी श्रेणी में आती है ...मेरी कविता पढ़ पढ़ के
एक दिन उसको भी जोश चढ़ा और अपनी पीड़ा उसने कुछ इन लफ़्ज़ो में बयान करी:)


पुरुष होने का सिला उन्होने एक शब्द में जतला दिया
प्यार भारी ज़िंदगी का यह उन्होने सिलसिला दिया
मैं तो मौन रहता हूँ प्रिय,ना तुमको कुछ कहता हूँ
एक बीबे पति की तरह हर बात तुम्हारे सहता हूँ


कितने सुंदर शब्द हैं यह जो सुने मेरी किस्मत पर रश्क़ करे
पर यही चार शब्द मेरी आत्मा को घायल कर गये
की तुम तो मौन रह कर देवता हो गये
कुछ अत्याचार ना कर पाए इस लिए "बीबे" हो गये

पर आज में तुमसे पूछती हूँ की मेरे
किस कसूर पर तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो
सुबह सबसे जल्दी उठ कर
बच्चो को स्कूल भेजना मेरा कसूर था???
नौकरी करके तुम्हारे हाथ बाँटना कसूर था???
घर आ के दुबारा चकारी करना कसूर था???
सुबह शाम अपने आप को घर पर समर्पित करना कसूर था?

हाँ अगर यह कसूर है तो मत दबाओ अपनी भावनाओ को
मत रहो चुप और मत बनो देवता ..
कुछ तीखी तीखी बातें मुझे सुनाओ
और हो सके तो हाथ भी तुम मुझ पर उठाओ
शायद तभी तुम कह सखोगे तुमने पति धर्म निभाया है
और एक असली पति बन कर ज़िंदगी का रस पाया है

हेरानी होती है तुम्हारे दोगले विचारों पर
एक तरफ़ तो कहते हो पत्नी अर्धागनी होती है
पर असल में तो यह बाते सिर्फ़ एक छलावा हैं
पत्नी के रूप में मुफ़्त में आया को पाया है

महीने की तनख़्वाह दुगनी हुई है
पर पुरुषतव में कही कमी नही हुई है
जो पत्नी दिन रात घर बाहर ख़त कर दिन अपने बिताती है
सारी दुनिया में वही सबसे तेज़ तरार जानी जाती है
पति जो कभी कभी घर रहता है
घर की चिंताओं से बेख़बर रहता है
अतिथि सा सतकार पा कर मौन रहता है
पर वही सबकी नज़रो में " बीबा " समझा जाता है

वाह री दुनिया तेरा यही दस्तूर
पति यहाँ का राजा .
और पत्नी हर दम मजबूर है
पति देवता गिना जाएगा
और पत्नी चरणो की दासी
पर मेरी जैसी पत्नी पा कर
हो जाएगी तुम्हारी एसी टेसी
ना ज़ुल्म करा है ना ज़ुल्म साहूँगी
प्यार से अपना बनाया तो
जान भी अपनी दे दूँगी
पुरुष होने का जो अहम निभाया
तो नाको चने चबवा दूँगी
शिक्षा दीक्षा के हर मुकाम पर
तुमसे मेने बढ़त पाई है
"बीबे" तो अब तुम क्या बनोगे
सही अर्थों में अब "बीबी" बनने की बारी अब मेरी आई है


बीबा ...एक पंजाबी लफ्ज़ है जिसका अर्थ सीधा होता है ..

पूनम भाटिया द्वारा लिखित...

14 comments:

Divine India said...

Gr8!!! आपकी ये बहन भी भावनाओं के ज्वार को रखती हैं…इस विषय पर मैं तो ज्यादा क्या कह सकता हूँ किंतु यह व्यथा नारियों की परम सत्य और चित्रित है…आपकी लिखावट और इनके लफ्ज़ में जो अंतर दिखा वह यह है कि आप मूर्त है और ये मौलिक…।

ghughutibasuti said...

बहुत सही लिखा है । यह स्थिति बदलने में अभी बहुत समय लगेगा । इतनी आसानी से पुरुष अपनी पुरुषोचित सुविधाएँ तो छोड़ने से रहे, आप चाहे कितना भी कमा लें, गृह स्वामी तो वही रहेंगे, चाहे घर आपने ही क्यों न खरीदा हो । इस स्थिति को बदलने के लिए संघर्ष तो करते रहना पड़ेगा ।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन बयाबी है-पूनम जी को साधुवाद दें और आपको भी कि आपने उन्हें प्रस्तुत किया इतनी सशक्त रचना के साथ.

-अब उनका ब्लॉग भी शुरु करवा ही दें.

Anonymous said...

Ranjana ji ki sister ko aadab

Wah aap ne kaya vayang kia hai aaj ke Pation par wakai maja aa gaya main umeed karta hoon ki ishi tarha aap aage bhi likhti rahaingi or samaj main faili galat dharnao par ishi tarha kataksh karti rahaingi

Mohinder56 said...

वाह वाह.. मजा आ गया...मै भी कुछ ऐसा ही...हास्य में लिखना चाहता हूं जल्द ही लिखूंगा... छोटी बहना को हमारी तरफ़ से बधाई दीजियेगा

Monika (Manya) said...

बहुत सही लिखा है .. आपकी बहन ने.. बहुत दिनों बाद आई हूं .. काफ़ी बदलाव है यहां.. देख कर अच्छा लगा.. काम काजी स्त्री की व्यथा और सत्य को शाश्वत प्र्वाह में कहा है...

रंजू भाटिया said...

shukriya divyabh ....:)

रंजू भाटिया said...

shukriya mired ji ...sahi kaha aapne ...abhi waqt legega badalne mein ..par bedlega jarur yah asha hai dil mein ....

रंजू भाटिया said...

shukriya sameer ji ...jee haan aapke vichaar par gaur farmaya jayega ..unka blog bhi jaldi hi aapko yahan dikhega ..hosala afjaai ke liye shukriya ..:)

रंजू भाटिया said...

shukriya rajesh ji ...

रंजू भाटिया said...

shukriya mohinder ji ...aap ka likha hum bhi padhana chahenge ..:)

रंजू भाटिया said...

shukriya manya ..bahut dino baad dikhi aap ..kaisi hain ..aapko yah badlaaw achha laga ..jaan kar khushi hui ..shukriya ...:)

सुनीता शानू said...

रंजना जी आज ही देखा आपका ब्लोग..अब तक हिन्द-युग्म पेर ही पढा़ था,..आपकी छोटी बहन भी अच्छा लिखती है...उन्हे बहुत-बहुत बधाई...
सुनीता(शानू)

ij singh said...

Wah ustad { Ranjana ji } Wah !
Bare mian to bare mian chote mian subhan Allah !!!
Bhai ek shikayat hai
Ab Sare mard etne bure bhi nahi hote,
Aur sari naria bhi etni BIBI bhi nahi hotee !
Pati aur patni mein mutual trust ki bat hai.
Any way I congratulate both the sisters.
Pl keep it up.