एक ज़माने से
तेरी ज़िंदगी का पेड़
कविता कविता
फूलता फलता और फैलता
तुम्हारे साथ मिल कर
देखा है
और जब तेरी ज़िंदगी के पेड़ ने
बीज बनाना शुरू किया
मेरे अंदर जैसे कविता की
पत्तियाँ फूटने लगी हैं .
[.इमरोज़....]
एक सपना जो सच हुआ.....
सुबह उठी तब कहाँ जानती थी कि इन पंक्ति को लिखने वाले से ख़ुद रुबरू बात होगी
और मेरा ज़िंदगी का एक सपना यूँ सच होगा ...मिलना होगा एक ऐसी शख़्सियत से जिसको अभी तक सिर्फ़
उनके बनाए चित्रो से देखा है या अमृता की नज़मो के मध्याम से जाना है ...जाना होगा उस अमृता के घर जिसको मैने 14 साल की उमर से पढ़ना शुरू किया और उसको अपना गुरु मान लिया .....सूबह फ़ोन आया कि आज इमरोज़ से मिलने का वक़्त तय हुआ है 2 बजे से पहले ..यदि साथ चलना चाहो तो चल सकती हो ...नेकी और पूछ पूछ...ऐसी ड्रीम डेट को भला कौन छोड़ना चाहेगा ...जाने में अभी दो घंटे बाक़ी थे और वो 2 घंटे कई सवाल और कई उत्सुकता लिए कैसे बीते मैं ही जानती हूँ ...
अमृता इमरोज़ के प्यार का ताजमहल उनका ख़ूबसूरत घर.......
उनका घर बिल्कुल ही साधारण ..हरियाली से सज़ा हुआ और अमृता इमरोज़ से जुड़े उनके वजूद का अनोखा संगम लगा ....एक ख़ुश्बू सी वहाँ थी या मेरे ज़ेहन में जिस को मैने बचपन से पढ़ा था आज मैं उसके घर पर थी ....हाय ओ रब्बा यह सच था या सपना .....उनके घर की जब डोर बेल्ल बजाई तो दिल एक अजब से अंदाज़ से धड़क रहा था ...उनको देखने की जहाँ उत्सुकता थी वहाँ दिमाग़ में अमृता की लिखी कई नज़मे घूम रही थी ...दरवाज़ा खुला ..समाने अमृता के बड़े बेटे थे कहा कि इमरोज़ अभी बाज़ार तक गये हैं आप लोग अंदर आ जाओ . इमरोज़.अभी आ जाएँगे ... ...ड्राइंग रूम में अंदर आते ही ...कई छोटी छोटी पेंटिंग्स थी एक बड़ा सा ड्राइंग रूम ..ठीक मेरे बाए हाथ की तरफ़ एक दिलीप कुमार की हाथ से बनाई पेंटिंग लगी थी ...उनके ख़ामोश लब और बोलती आँखे जैसे अपनी ही कोई बात कर रहे थे हमसे ...
थोड़ी देर हम उन्ही पेटिंग्स में गुम थे कि पता चला की इमरोज़ आ गये हैं ...और उनसे मिलने फर्स्ट फ्लोर पर जाना होगा ....रास्ते में सीढ़ियों पर पेंटिग्स ..एक सुंदर सी छोटी सी मटकी पेंट की हुई और अंदर दरवाज़े पर अमृता की किसी पंजाबी नज़्म की कुछ पंक्तियाँ लाल रंग से लिखी हुई थी बहुत ही साधारण सा घर जहाँ अंदर आते ही दो महान हस्तियाँ अपनी अपनी तरह से अपने होने का एहसास करवा रही थी...सामने की दीवार पर इमरोज़ के रंगो में सजी अमृता की पंटिंग्स और साथ में लिखी हुई उनकी नज़मे .एक रोमांच सा दिल में पेदा कर रहे थे ....एक छोटी सी मेज़ जहाँ अब अक्सर इमरोज़ कविता या नज़्म लिखते हैं ...उसके ठीक पीछे कुछ मुस्कराते से पौधे ... सामने की तरफ़ रसोईघर ....जहाँ कभी अमृता अपना खाना ख़ुद बनाती थी और इमरोज़ साथ रह कर वही पर उनकी मदद करते थे..उनके लिए चाय बना देते थे ....यहाँ सब सामान शीशे का यानी पारदर्शी जार में है कभी कोई समान ख़त्म होने पर ..इमरोज़ उस ख्त्म हुए समान को फिर से ला कर भर दे ....और अमृता को कोई किसी चिज़ की कमी या कोई परेशानी ना हो ....यही बताते हुए इमरोज़ ने एक बहुत ही सुंदर बात कही की काश इंसान भी पारदर्शी शीशी की तरह होते ..जिस के अंदर झाँक के हम देख सकते ....कितनी सजहता से इमरोज़ कितनी गहरी बात कह गये
एक असाधारण व्यक्तिव इमरोज़ ..
वापस वही रसोई घर के सामने रखी मेज़ पर आ कर और उस इंसान को देख रही थी जिसका ज़िक्र अमृता की नज़मो में होता है ...एक सपना वो अक्सर देखा करती थी की एक लंबा सा आदमी सफ़ेद कुर्ते पायजामे में ..केनवास और रंगो से कुछ पेंट कर रहा है ..यह सपना वह कई साल देखती रही ..इमरोज़ ने बताया कि मुझसे मिलने के बाद वह सपना आना काम हो गया ...सच में इतना प्यार कोई करे और उसके जाने के बाद भी अपनी बातो से अपने एहसासो से उस औरत को ज़िंदा रखे किसी औरत के लिए इस से ज़्यादा ख़ुशनसीबी क्या होगी ......हमारे लिए वो अपने हाथो से कोक ले के आए ..बहुत शर्म सी महसूस हुई की इतनी बड़ा शक्श पर कोई भी अहंकार नही कितना साधारण..दिल को छू गया उनका यह प्यारा सा मुस्कराना .और बहुत प्यार से बाते करना मैने पूछा कि आप को अमृता की याद नही आती ...नही वो मेरे साथ ही है उसकी याद कैसे आएगी ..इसके बाद जितनी भी बात हुई उन्होने उसके लिए एक बार भी थी लफ़ज़ का इस्तेमाल नही किया ..मैने पूछा भी था उनसे की आपने हर बात में है कहा अमृता को ..थी नही ..
प्यार का एक नाम इमरोज़ ....
मैने कहा मैं अमृता जी से मिलना चाहती थी ..तो बोले की मिली क्यूँ नही ..वह सबसे मिलती थी यह दरवाज़ा हमेशा खुला ही रहता था ..कोई भी उस से आ कर मिल सकता था ..तुमने बहुत देर कर दी आने में .....सच में बहुत अफ़सोस हुआ ...कि काश उनके जीते जी उनसे मिलने आ पाती ... सामने जो मेरे शख्श था वो आज भी पूरी तरह से अमृता के प्यार में डूबा हुआ ,,वहाँ की हवा में रंग था नज़्म थी और प्यार ही प्यार था ....कोई किसी को इतना प्यार कैसे कर सकता है ....पर एक सच सामने था ....एक अत्यंत साधारण सा आदमी ...भूरे रंग के कुर्ते में सफ़ेद पाजामे में ..आँखो में चमक ...और चहरे पर एक नूर ..शायद अमृता के प्यार का...सब एक समोहन..सा जादू सा बिखेर रहे थे .मैने जब उनसे पूछा ..... क्या मैं अमृता का रूम देख सकती हूँ ..जहाँ वह लिखा करती थी ..तो उन्होने मुझे पूरा घर दिखा दिया ..यह पहले ड्राइंग रूम हुआ करता था ..अब वहाँ इमरोज़ की पंटिंग्स और अमृता की नज़मो का संगम बिखरा हुआ था एक शीशे की मेज़ जिस पर एक टहनी थी जिसकी परछाई अपना ही जादू बिखेर रही थी इस से बेहतर ..कोई ड्राइंग रूम और क्या हो सकता है ....अमृता का कमरा वैसे ही है जैसा उनके होते हुए था .और बिस्तर पर पड़ी सलवटे जैसे कह रही हो की अभी यही है अमृता ..बस उठ कर शायद रसोईघर तक गयी हो ..फिर से वापस आ के कोई नज़म लिखेगी ..... इमरोज़ का कमरा रंगो में घिरा था ...और हर क़मरे की आईने में कोई न कोई नज्म पंजाबी में लाल रंग से लिखी हुई थी ...एक और कमरे में बड़े बड़े बूक शेल्फ़ .जिस में कई किताबे ..सजी थी ...अमृता की और कई अन्य देश विदेश के लेखको की ....बस सब कुछ जो देखा वो समेट लिया अपने दिल में और वहाँ फैली हवा में उन तमाम चीज़ो के वजूद को महसूस किया ..जो साथ साथ अपना एहसास करवा रहे थे ...
.प्यार के लिए लफ़्ज़ो की ज़रूरत नही..
उन्होने बताया कि चालीस साल में कभी भी अमृता और मैने एक दूसरे को I LOVE U नही कहा ..क्यूकी कभी हमे इस लफ्ज़ की ज़रूरत ही नही पड़ी ..वैसे भी प्यार तो महसूस करने की चीज है उसको लफ़्ज़ो में ढाला भी कैसे जा सकता है ......बस हम दोनो ने एक दूसरे की ज़रूरत को समझा ....वो रात को 2 बजे उठ कर लिखती थी उस वक़्त उस को चाय चाहिए होती थी ...हमारे कमरे अलग अलग थे क्यूँकी उसको रात को लिखने की आदत थी और मुझे अपने तरीक़े से पेंटिंग करनी होती थी .हमने कभी एक दूसरे के काम में डिस्टर्ब नही किया ...बस उठता था उसकी चाय बना के चुप चाप उसके पास रख आता था ..वह मेरी तरफ़ देखती भी नही पर उसको एहसास है कि मैं चाय रख गया हूँ और उसको वक़्त पर उसकी जो जरुरत थी वोह पूरी हो गयी है ..सच कितना प्यारा सा रिश्ता है दोनो के बीच ....उसको सिगरेट की आदत है मैं नही पीता पर उसको ख़ुद ला के देता ..मैने पूछा की क्या आपने कभी उनको बदलने की कोशिश नही की ....उन्होने कहा नही की वो ख़ुद जानती थी की इसको पीने में क्या बुराई है तो मैं उसको क्या समझा सकता हूँबहुत अच्छा लगा .यही तो प्रेम की प्रकाष्ठा है ..इस से उपर प्रेम और हो भी क्या सकता है ...एक एक लफ्ज़ में प्यार था उनका अमृता के लिए
अमृता इमरोज़ का मिलना ......
मैने पूछा की आप मिले कैसे थे ..अमृता को अपनी किताब के लिए कवर पेज बनवाना था ...और इमरोज़ से उसी सिलसिले में मुलाक़ात हुई .....फिर कब यह ख़ूबसूरत रिश्ते में ढल गयी .पता ही नही चला ...अमृता इमरोज़ से 7 साल बढ़ी थी ..तब उस वक़्त बिना किसी समाज की परवाह किए बिना ..उन्होने साथ रहना शुरू किया ...इमरोज़ ने बताया की तब कई लोगो ने कहा की यह तो बूढ़ी हो जाएगी ..तुम अभी जवान हो या अमृता को भी बहुत कुछ कहा गया ..पर कुछ नही सुना ..मैने उस वक़्त जब वो 40 साल की भी नही थी उसकी पेंटिंग बनाई की 80 साल की हो के वो कैसी लगेगी .उसके बाल सफ़ेद किए ..चहरे पर झुरियाँ बनाई ..और जब उसके 80 साल के होने पर मैने उसको उसको पंटिंग से मिलाया तो वो उस पैंटिंग से ज्यादा ख़ूबसूरत थी .....भला नक़ली रंग असली सुंदरता से कैसे मुक़ाबला कर पाते ...यह प्यार कितना प्यारा था जो करे वही समझे
कुछ यादे कुछ बातें.....
कुछ बाते आज की राजनीति पर हुई .कुछ आज कल के बच्चो जो बुढ़ापा आते ही अपने मा बाप को ओल्ड एज होम छोड़ आते हैं ...पर उनकी हर बात का अंत सिर्फ़ अमृता पर हुआ ...उनकी लिखी कविताओ में उन्होने कहा कि कोई दुख का साया या कुछ खोने का डर नही दिखेगा ...क्यूंकि मेरे पास तो खोने के लिए कुछ है ही नही जो ज़्यादातर कविता या नज़मो में होता है क्यूँकी मेरा जो भी कुछ है वो मेरे पास ही दिखता है ...सच हो तो कहा उन्होने अमृता जी वहाँ हर रंग में हर भाव में इमरोज़ के रंगो में ढली हुई थी उन्ही के लफ़्ज़ो में
लोग कह रहे हैं उसके जाने के बाद
तू उदास और अकेला रह गया होगा
मुझे कभी वक़्त ही नही मिला
ना उदास होने का ना अकेले होने का ..
. वह अब भी मिलती है सुबह बन कर शाम बन कर
और अक्सर नज़मे बन कर
हम कितनी देर एक दूजे को देखते रहे हैं
और मिलकर अपनी अपनी नज़मे ज़िंदगी को सुनाते रहे हैं[इमरोज़]
कभी नही भूलेंगे मुझे यह ख़ूबसूरत पल ..
.यह छोटी सी मुलाक़ात मेरी ज़िंदगी के सबसे अनमोल यादगार पलो में से एक है ...उनके कहे अनुसार जल्दी ही उनसे मिलूंगी ..क्यूँकी उनके कहे लफ्ज़ तो अभी मेरे साथ हैं की जैसे अमृता को मिलने में देर कर दी .,.मुझे दुबारा मिलने में देर मत करना ..क्यूँकी मैं भी बूढ़ा हो चुका हूँ ..क्या पता कब चल दूं ... नही इमरोज़ जी आप अभी जीयें और स्वस्थ रहे यही मेरी दिल से दुआ है .....
रंजना [रंजू]
तेरी ज़िंदगी का पेड़
कविता कविता
फूलता फलता और फैलता
तुम्हारे साथ मिल कर
देखा है
और जब तेरी ज़िंदगी के पेड़ ने
बीज बनाना शुरू किया
मेरे अंदर जैसे कविता की
पत्तियाँ फूटने लगी हैं .
[.इमरोज़....]
एक सपना जो सच हुआ.....
सुबह उठी तब कहाँ जानती थी कि इन पंक्ति को लिखने वाले से ख़ुद रुबरू बात होगी
और मेरा ज़िंदगी का एक सपना यूँ सच होगा ...मिलना होगा एक ऐसी शख़्सियत से जिसको अभी तक सिर्फ़
उनके बनाए चित्रो से देखा है या अमृता की नज़मो के मध्याम से जाना है ...जाना होगा उस अमृता के घर जिसको मैने 14 साल की उमर से पढ़ना शुरू किया और उसको अपना गुरु मान लिया .....सूबह फ़ोन आया कि आज इमरोज़ से मिलने का वक़्त तय हुआ है 2 बजे से पहले ..यदि साथ चलना चाहो तो चल सकती हो ...नेकी और पूछ पूछ...ऐसी ड्रीम डेट को भला कौन छोड़ना चाहेगा ...जाने में अभी दो घंटे बाक़ी थे और वो 2 घंटे कई सवाल और कई उत्सुकता लिए कैसे बीते मैं ही जानती हूँ ...
अमृता इमरोज़ के प्यार का ताजमहल उनका ख़ूबसूरत घर.......
उनका घर बिल्कुल ही साधारण ..हरियाली से सज़ा हुआ और अमृता इमरोज़ से जुड़े उनके वजूद का अनोखा संगम लगा ....एक ख़ुश्बू सी वहाँ थी या मेरे ज़ेहन में जिस को मैने बचपन से पढ़ा था आज मैं उसके घर पर थी ....हाय ओ रब्बा यह सच था या सपना .....उनके घर की जब डोर बेल्ल बजाई तो दिल एक अजब से अंदाज़ से धड़क रहा था ...उनको देखने की जहाँ उत्सुकता थी वहाँ दिमाग़ में अमृता की लिखी कई नज़मे घूम रही थी ...दरवाज़ा खुला ..समाने अमृता के बड़े बेटे थे कहा कि इमरोज़ अभी बाज़ार तक गये हैं आप लोग अंदर आ जाओ . इमरोज़.अभी आ जाएँगे ... ...ड्राइंग रूम में अंदर आते ही ...कई छोटी छोटी पेंटिंग्स थी एक बड़ा सा ड्राइंग रूम ..ठीक मेरे बाए हाथ की तरफ़ एक दिलीप कुमार की हाथ से बनाई पेंटिंग लगी थी ...उनके ख़ामोश लब और बोलती आँखे जैसे अपनी ही कोई बात कर रहे थे हमसे ...
थोड़ी देर हम उन्ही पेटिंग्स में गुम थे कि पता चला की इमरोज़ आ गये हैं ...और उनसे मिलने फर्स्ट फ्लोर पर जाना होगा ....रास्ते में सीढ़ियों पर पेंटिग्स ..एक सुंदर सी छोटी सी मटकी पेंट की हुई और अंदर दरवाज़े पर अमृता की किसी पंजाबी नज़्म की कुछ पंक्तियाँ लाल रंग से लिखी हुई थी बहुत ही साधारण सा घर जहाँ अंदर आते ही दो महान हस्तियाँ अपनी अपनी तरह से अपने होने का एहसास करवा रही थी...सामने की दीवार पर इमरोज़ के रंगो में सजी अमृता की पंटिंग्स और साथ में लिखी हुई उनकी नज़मे .एक रोमांच सा दिल में पेदा कर रहे थे ....एक छोटी सी मेज़ जहाँ अब अक्सर इमरोज़ कविता या नज़्म लिखते हैं ...उसके ठीक पीछे कुछ मुस्कराते से पौधे ... सामने की तरफ़ रसोईघर ....जहाँ कभी अमृता अपना खाना ख़ुद बनाती थी और इमरोज़ साथ रह कर वही पर उनकी मदद करते थे..उनके लिए चाय बना देते थे ....यहाँ सब सामान शीशे का यानी पारदर्शी जार में है कभी कोई समान ख़त्म होने पर ..इमरोज़ उस ख्त्म हुए समान को फिर से ला कर भर दे ....और अमृता को कोई किसी चिज़ की कमी या कोई परेशानी ना हो ....यही बताते हुए इमरोज़ ने एक बहुत ही सुंदर बात कही की काश इंसान भी पारदर्शी शीशी की तरह होते ..जिस के अंदर झाँक के हम देख सकते ....कितनी सजहता से इमरोज़ कितनी गहरी बात कह गये
एक असाधारण व्यक्तिव इमरोज़ ..
वापस वही रसोई घर के सामने रखी मेज़ पर आ कर और उस इंसान को देख रही थी जिसका ज़िक्र अमृता की नज़मो में होता है ...एक सपना वो अक्सर देखा करती थी की एक लंबा सा आदमी सफ़ेद कुर्ते पायजामे में ..केनवास और रंगो से कुछ पेंट कर रहा है ..यह सपना वह कई साल देखती रही ..इमरोज़ ने बताया कि मुझसे मिलने के बाद वह सपना आना काम हो गया ...सच में इतना प्यार कोई करे और उसके जाने के बाद भी अपनी बातो से अपने एहसासो से उस औरत को ज़िंदा रखे किसी औरत के लिए इस से ज़्यादा ख़ुशनसीबी क्या होगी ......हमारे लिए वो अपने हाथो से कोक ले के आए ..बहुत शर्म सी महसूस हुई की इतनी बड़ा शक्श पर कोई भी अहंकार नही कितना साधारण..दिल को छू गया उनका यह प्यारा सा मुस्कराना .और बहुत प्यार से बाते करना मैने पूछा कि आप को अमृता की याद नही आती ...नही वो मेरे साथ ही है उसकी याद कैसे आएगी ..इसके बाद जितनी भी बात हुई उन्होने उसके लिए एक बार भी थी लफ़ज़ का इस्तेमाल नही किया ..मैने पूछा भी था उनसे की आपने हर बात में है कहा अमृता को ..थी नही ..
प्यार का एक नाम इमरोज़ ....
मैने कहा मैं अमृता जी से मिलना चाहती थी ..तो बोले की मिली क्यूँ नही ..वह सबसे मिलती थी यह दरवाज़ा हमेशा खुला ही रहता था ..कोई भी उस से आ कर मिल सकता था ..तुमने बहुत देर कर दी आने में .....सच में बहुत अफ़सोस हुआ ...कि काश उनके जीते जी उनसे मिलने आ पाती ... सामने जो मेरे शख्श था वो आज भी पूरी तरह से अमृता के प्यार में डूबा हुआ ,,वहाँ की हवा में रंग था नज़्म थी और प्यार ही प्यार था ....कोई किसी को इतना प्यार कैसे कर सकता है ....पर एक सच सामने था ....एक अत्यंत साधारण सा आदमी ...भूरे रंग के कुर्ते में सफ़ेद पाजामे में ..आँखो में चमक ...और चहरे पर एक नूर ..शायद अमृता के प्यार का...सब एक समोहन..सा जादू सा बिखेर रहे थे .मैने जब उनसे पूछा ..... क्या मैं अमृता का रूम देख सकती हूँ ..जहाँ वह लिखा करती थी ..तो उन्होने मुझे पूरा घर दिखा दिया ..यह पहले ड्राइंग रूम हुआ करता था ..अब वहाँ इमरोज़ की पंटिंग्स और अमृता की नज़मो का संगम बिखरा हुआ था एक शीशे की मेज़ जिस पर एक टहनी थी जिसकी परछाई अपना ही जादू बिखेर रही थी इस से बेहतर ..कोई ड्राइंग रूम और क्या हो सकता है ....अमृता का कमरा वैसे ही है जैसा उनके होते हुए था .और बिस्तर पर पड़ी सलवटे जैसे कह रही हो की अभी यही है अमृता ..बस उठ कर शायद रसोईघर तक गयी हो ..फिर से वापस आ के कोई नज़म लिखेगी ..... इमरोज़ का कमरा रंगो में घिरा था ...और हर क़मरे की आईने में कोई न कोई नज्म पंजाबी में लाल रंग से लिखी हुई थी ...एक और कमरे में बड़े बड़े बूक शेल्फ़ .जिस में कई किताबे ..सजी थी ...अमृता की और कई अन्य देश विदेश के लेखको की ....बस सब कुछ जो देखा वो समेट लिया अपने दिल में और वहाँ फैली हवा में उन तमाम चीज़ो के वजूद को महसूस किया ..जो साथ साथ अपना एहसास करवा रहे थे ...
.प्यार के लिए लफ़्ज़ो की ज़रूरत नही..
उन्होने बताया कि चालीस साल में कभी भी अमृता और मैने एक दूसरे को I LOVE U नही कहा ..क्यूकी कभी हमे इस लफ्ज़ की ज़रूरत ही नही पड़ी ..वैसे भी प्यार तो महसूस करने की चीज है उसको लफ़्ज़ो में ढाला भी कैसे जा सकता है ......बस हम दोनो ने एक दूसरे की ज़रूरत को समझा ....वो रात को 2 बजे उठ कर लिखती थी उस वक़्त उस को चाय चाहिए होती थी ...हमारे कमरे अलग अलग थे क्यूँकी उसको रात को लिखने की आदत थी और मुझे अपने तरीक़े से पेंटिंग करनी होती थी .हमने कभी एक दूसरे के काम में डिस्टर्ब नही किया ...बस उठता था उसकी चाय बना के चुप चाप उसके पास रख आता था ..वह मेरी तरफ़ देखती भी नही पर उसको एहसास है कि मैं चाय रख गया हूँ और उसको वक़्त पर उसकी जो जरुरत थी वोह पूरी हो गयी है ..सच कितना प्यारा सा रिश्ता है दोनो के बीच ....उसको सिगरेट की आदत है मैं नही पीता पर उसको ख़ुद ला के देता ..मैने पूछा की क्या आपने कभी उनको बदलने की कोशिश नही की ....उन्होने कहा नही की वो ख़ुद जानती थी की इसको पीने में क्या बुराई है तो मैं उसको क्या समझा सकता हूँबहुत अच्छा लगा .यही तो प्रेम की प्रकाष्ठा है ..इस से उपर प्रेम और हो भी क्या सकता है ...एक एक लफ्ज़ में प्यार था उनका अमृता के लिए
अमृता इमरोज़ का मिलना ......
मैने पूछा की आप मिले कैसे थे ..अमृता को अपनी किताब के लिए कवर पेज बनवाना था ...और इमरोज़ से उसी सिलसिले में मुलाक़ात हुई .....फिर कब यह ख़ूबसूरत रिश्ते में ढल गयी .पता ही नही चला ...अमृता इमरोज़ से 7 साल बढ़ी थी ..तब उस वक़्त बिना किसी समाज की परवाह किए बिना ..उन्होने साथ रहना शुरू किया ...इमरोज़ ने बताया की तब कई लोगो ने कहा की यह तो बूढ़ी हो जाएगी ..तुम अभी जवान हो या अमृता को भी बहुत कुछ कहा गया ..पर कुछ नही सुना ..मैने उस वक़्त जब वो 40 साल की भी नही थी उसकी पेंटिंग बनाई की 80 साल की हो के वो कैसी लगेगी .उसके बाल सफ़ेद किए ..चहरे पर झुरियाँ बनाई ..और जब उसके 80 साल के होने पर मैने उसको उसको पंटिंग से मिलाया तो वो उस पैंटिंग से ज्यादा ख़ूबसूरत थी .....भला नक़ली रंग असली सुंदरता से कैसे मुक़ाबला कर पाते ...यह प्यार कितना प्यारा था जो करे वही समझे
कुछ यादे कुछ बातें.....
कुछ बाते आज की राजनीति पर हुई .कुछ आज कल के बच्चो जो बुढ़ापा आते ही अपने मा बाप को ओल्ड एज होम छोड़ आते हैं ...पर उनकी हर बात का अंत सिर्फ़ अमृता पर हुआ ...उनकी लिखी कविताओ में उन्होने कहा कि कोई दुख का साया या कुछ खोने का डर नही दिखेगा ...क्यूंकि मेरे पास तो खोने के लिए कुछ है ही नही जो ज़्यादातर कविता या नज़मो में होता है क्यूँकी मेरा जो भी कुछ है वो मेरे पास ही दिखता है ...सच हो तो कहा उन्होने अमृता जी वहाँ हर रंग में हर भाव में इमरोज़ के रंगो में ढली हुई थी उन्ही के लफ़्ज़ो में
लोग कह रहे हैं उसके जाने के बाद
तू उदास और अकेला रह गया होगा
मुझे कभी वक़्त ही नही मिला
ना उदास होने का ना अकेले होने का ..
. वह अब भी मिलती है सुबह बन कर शाम बन कर
और अक्सर नज़मे बन कर
हम कितनी देर एक दूजे को देखते रहे हैं
और मिलकर अपनी अपनी नज़मे ज़िंदगी को सुनाते रहे हैं[इमरोज़]
कभी नही भूलेंगे मुझे यह ख़ूबसूरत पल ..
.यह छोटी सी मुलाक़ात मेरी ज़िंदगी के सबसे अनमोल यादगार पलो में से एक है ...उनके कहे अनुसार जल्दी ही उनसे मिलूंगी ..क्यूँकी उनके कहे लफ्ज़ तो अभी मेरे साथ हैं की जैसे अमृता को मिलने में देर कर दी .,.मुझे दुबारा मिलने में देर मत करना ..क्यूँकी मैं भी बूढ़ा हो चुका हूँ ..क्या पता कब चल दूं ... नही इमरोज़ जी आप अभी जीयें और स्वस्थ रहे यही मेरी दिल से दुआ है .....
रंजना [रंजू]
19 comments:
Thankz for sahring Ur gud momentzz spend with the Gr8 personality Really say i dont know the person u told but I readed all of ur experiance,very gud to see U n joying the time wid the gr8 personality
रंजना जी,
आपने मुलाक़ात को इतनी खूबसूरती से लिखा है कि पाठक को लगता है कि वह भी स्वयम् इमरोज़ से मिल रहा है। और इमरोज़ और अपने माध्यम से अमृता को फ़िर से जीवित कर दिया है। आपकी एक इच्छा पूरी हुई। शुभकामनाएँ....
बहुत अच्छा लगा, आपने इतने विस्तारपूर्वक इस मुलाकात के बारे में लिखा..
बहुत ही खूबसूरत तरीके से आपने अपने इस अनुभव का चित्रन किया है।
आपसे और भी बहुत ही अच्छा अच्छा पढ़ने की उम्मीद है हमें, इसी तरह लिखेती रहें।
रन्जु,
तुम्हारे इस सुन्दर चित्रण से तुम्हारी इस मुलाकात का महत्व आंकां जा सकता हे । पढ्ते-पढ्ते ऎसा लगा कि मॆं भी तुम्हारे साथ ही था । इस मुलाकात को तुमने अपने दोस्तों से बांटां, यह तुम्हारा अपने दोस्तों के प्रति तुम्हारे प्यार को दर्शाता हॆ ।
रंजना जी, इस खूबसूरत और यादगार वक्त को पाठकों से साँझा करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद। और साथ साथ आपको एक पुरानी हसरत पूरी होने पर बधाई। सचमुच आपने मुलाकात को, अमृता और इमरोज को प्रत्यक्ष कर दिया। प्रेम के इस उदात्त रूप और ऐसी महान प्रेममय शख्सियत से मुलाकात लराने का फिर से धन्यवाद।
Its Really Nice to read such a good Stuff posted by u....and glad to know abt real and deep love...thnx for sharing it with us...!!!
Thanks for telling about these two people.I always wanted to know them. :)
ghughuti basuti
shukriya aap sabka jo aapne mere saath mere in anmol palo ko padh ke mere saath bantaa ....thanks dil se ....[:)]
शानदार!!
एक सजीव मुलाकात का सजीव शब्दों मे विवरण, काबिले तारीफ़!!
रंजना जी,
मैं अभिभूत हूँ-आपकी लेखनी से.अमृता इमरोज़ का प्यार मेरी ज़िन्दगी का एक अद्भुत एहसास हैं.
मेरी माँ पन्त की बेटी बनकर चली,मेरा नाम पन्त जी की देन.......क्या आप orkut पर हैं? मैं आप से बात करना चाहूंगी.
Ranjna Ji,
Great............reading it like watching a movie.
..ranjana
....mai aapse baat kanara chahungi..kiya aap orkut par hai..sach ..aap ke sath mai bhi imroj ji mukhatib hogai..or...alam yeh hai ki...aankh se ansun ..ruk hi nahi rahe...renu.
.my orkut acc.
renu.radha@writter.com
Ranjana aap ne bahut badhiya likha hai. Kya muje bata sakti hain ki Amrita ji ki complete Biography kaise milegi?
Thanks
Bashir Alam
पोस्ट भी यादगार है...
Imroj jee se do baar milne ka mauka hame bhi mil gaya... par unke ghar tak pahuch pana bahut badi baat hai..:)
achchha laga padh kar:)
मेरा दुर्भाग्य है कि मैंने अमृता-इमरोज के बारे में ज्यादा नहीं जानता हूँ लेकिन जानना चाहता जरूर हूँ |
आपने अपनी मुलाकात को इतनी सहजता से लिखा है कि मेरी उत्सुकता और बढ़ गयी है |
ईश्वर करे कि इमरोज का स्वास्थ्य और जीवन यूँ ही बरकरार रहे और आप शीघ्र ही उनसे दुबारा मिलें |
सादर
आदरणीया सादर प्रणाम, आपके शब्दों को पढ़कर ऐसी अनुभूति ही नहीं होती कि इमरोज जी से मिला ही नहीं, मानों ऐसा प्रतीत होता है कि वे सामने बैठे हुए हैं और यह सारी बातें कह रहे हों. अमृता जी एवं इमरोज जी का यह प्रेम वाकई सत्य प्रेम है इस प्रेम को नमन.
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