Saturday, February 17, 2007

मानते हो यदि स्वयं को मेरा शिव,


मानते हो यदि स्वयं को मेरा शिव,
तो शक्ति मान मुझे जीना होगा.

मेरे अधरो पर रख अपने अधर.
मेरे जीवन का पूर्ण विष पीना होगा..

मेरी हर ज्वाला को मेरे हर ताप को.
मन में बसे हर संताप को ...........

अपने शीश धरे गंगा जल से
तुमको ही शीतल करना होगा........

रिक्त पड़े इस हृदय के हर कोने को...........
बस अपने प्रेम से भरना होगा.......

मानते हो यदि स्वयं को मेरा शिव.......
तो शक्ति मान मुझे जीना होगा.................


ranju

9 comments:

Divine India said...

कहीं शक्ति कही ज्वाला उद्देश्य नमन का तम
रखा है…बाहर चेतना खोजना कहाँ किसी ने सम
रखा है…रख कर अपने अधरों को आत्मा के
मुख पर देखों तपीस मन की घुल जाती है किस ओर्॥
बढ़िया…शुक्रिया!!

Divine India said...

ye word veri...hataao pareshaani hoti hai...

Anonymous said...

बहुत सुंदर लिखा है मैडम.. शिव-शक्ति के इस रूप वर्णन को शबद नहीं हैं..

ePandit said...

शिव-शक्ति तो एक-दूसरे के पूरक हैं, इनके संबंधों मे आप शर्तें कैसे लगा सकती हैं।

अति सुन्दर कविता!

Mohinder56 said...

मेरे अधरो पर रख अपने अधर.
मेरे जीवन का पूर्ण विष पीना होगा..

मेरी हर ज्वाला को मेरे हर ताप को.
मन में बसे हर संताप को ...........
पर्व और आपकी कविता का मिलान अधभुत है, सुन्दर रचना

ABHISHEK KUMAR (QAASID) said...

man gaye ji...

uff this is one of ur best creations i have ever read... hindi ka itna uttam prayog aur bichar ka itna sundar pravah.... kya baat hai ji...

for the first time i m not righting any lines of mine..its such a beauty ji....

kuch naya aur bahut alag.... maza aagaya..

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया दिव्याभ बहुत ख़ूब कहा आपने ...
हटा दिया जी :)..अब कोई परेशानी नही होगी .. :)

रंजू भाटिया said...

shukriya manya ,shrish ,mohinder ji ..aur abhishek ..aapko pasand aaya .yah jaan ke achha laga .thanks again ..:)

vandana gupta said...

bahut hi sundar bhav rachna.