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Wednesday, September 28, 2022

अक्षर जोड़ कर बना यूं शब्द संसार

 अक्षर अक्षर जोड़ के बना यूँ शब्द संसार ..


शब्द जो बोलते हैं

जब इंसान ने अपने विकास की यात्रा आरंभ की तो इस में भाषा का बहुत योगदान रहा | भाषा समझने के लिए वर्णमाला का होना जरुरी था क्यों कि यही वह सीढी है जिस पर चल कर भाषा अपना सफ़र तय करती है | वर्णमाला के इन अक्षरों के बनने का भी अपना एक इतिहास है .| .यह रोचक सफ़र शब्दों का कैसे शुरू हुआ आइये जानते हैं ...जब जब इंसान को किसी भी नयी आवश्यकता की जरूरत हुई ,उसने उसका आविष्कार किया और उसको अधिक से अधिक सुविधा जनक बनाया| २६ अक्षरों की वर्णमाला को भले ही अंग्रेजी वर्णमाला को रोमन वर्णमाला कहा जाए लेकिन रोमन लोगों ने इसको नहीं ईजाद किया था | उन्होंने सिर्फ लिखित भाषा को सुधार कर और इसको नए नए रूप में संवारा| हजारों वर्षों से कई देशों में यह अपने अपने ढंग से विकसित हुई और अभी भी हो रही है | वर्णमाला के अधिकतर अक्षर जानवरों और आकृतियों के प्राचीन चित्रों के प्रतिरूप ही है ..|


इसका इतिहास जानते हैं कि यह कैसे बनी आखिर | .३००० ईसा पूर्व में मिस्त्रवासियों ने कई चित्र और प्रतीक बनाए थे | हर चित्र एक अक्षर के आकार का है| इसको चित्रलिपि कहा जाता था लेकिन व्यापार करने लिए यह वर्णमाला बहुत धीमी गति की थी | खास तौर पर जो उस वक़्त विश्व के बड़े व्यपारी हुआ करते थे,१२०० इसा पूर्व के फिनिशियिंस के लिए | इस लिए उन्होंने उन अक्षरों को ही विकसित किया जिनमें प्रतीक से काम चल सकता था हर प्रतीक एक ध्वनी का प्रतिनिधितव करता था और कुछ शब्द मिल कर एक शब्द की ध्वनि बनाते थे| ...८०० इसा पूर्व में यूनानियों ने फिनिशिय्न्स की वर्णमाला को अपना लिया ,लेकिन फिर पाया कि इन में व्यंजन की ध्वनियां नहीं है .जबकि उन्हें अपनी भाषा में इसकी जरूरत थी | इसके बाद उन्होएँ १९ फ़िनिशियन अक्षर जोड़ लिए इस तरह २४ अक्षरों वाली वर्णमाला तैयार हुई |


११४ ईसवीं में रोम में लोगों ने वर्णमाला को व्यवस्थित किया बाद में इंग्लॅण्ड में नोमर्न लोगों नने इस वर्णमाला में जे ,वी और डबल्यू जैसे अक्षर जोड़े और इस तरह तैयार हुई वह नीवं जिस पर आज की अंग्रेजी वर्णमाला कई नीवं टिकी है


शब्दों का जादू यूँ ही अपने रंग में दिल पर असर कर जाता है ...पर अक्सर पहले चित्र जानवर आदि की आकृतियों से ही बनाए गए थे ...जैसे अंग्रेजी का केपिटल "क्यु" बन्दर का प्रतीक है पुराने चित्रों में इस" क्यु "को सिर कान और बाहों के साथ उकेरा गया है


सबसे छोटे शब्द यानी प्रश्नवाचक और विस्मयबोधक चिन्हों के बारे में १८६२ में फ्रांस में एक बड़े लेखक विकटर हयूगो का आभारी होना पड़ेगा हुआ यूँ कि उन्होंने अपना उपन्यास पूरा किया और छुट्टी पर चले गए लेकिन यह जानने को उत्सुक थे कि किताबे बिकती कैसे हैं ? साथ ही वह सबसे चिन्ह भी गढ़ना चाहते थे सो उन्होंने प्रकाशक को एक पत्र लिखा :?

प्रकाशक भी कुछ कम कल्पनाजीवी नहीं थे ,वह भी सबसे छोटा अक्सर बनाने का रिकॉर्ड लेखक हयूगो के साथ बनना चाहते थे सो उन्होंने भी जवाब में लिखा ... :!


और इसी सवाल जवाब के साथ चलते हुए वर्णमाला में सबसे छोटे अक्सर बने जिन्हें "चिन्ह "कहा गया ...


सबसे मजेदार बात यह है कि सबसे लम्बे वाक्य लिखने का श्री भी हयूगो को ही जाता है वह वाक्य भी उनके उपन्यास का है जिस में ८२३ अक्षर ,९३ अल्प विराम चिन्ह ,५१ अर्ध विराम ,और ४ डेश आये थे .लगभग तीन पन्नो का था यह वाक्य

अंडर ग्राउंड अंग्रेजी भाषा का एक मात्र ऐसा शब्द है जिसका आरम्भ और अंत यूएनडी अक्षरों से होता है


टैक्सी शब्द का उच्चारण भारतीय ,अंग्रेज ,फ्रांसीसी ,जर्मन ,स्वीडिश ,पुर्तगाली और डच के लोग समान रूप से करते हैं ..



इस तरह यूँ शुरू हुआ अक्षरो का सफ़र और अपनी बात हर तक पहुंचाने का माध्यम बन गया ..आज इन्हों अक्षर की बदौलत हम न जाने कितनी नयी बाते सीख पाते हैं ,बोल पाते हैं दुनिया को जान पाते हैं ..रोचक है न यह जानकारी

आपको कैसी लगी यह बताये तो :)

#रंजू भाटिया ..............

Wednesday, August 21, 2019

ज़िन्दगी अभी बाकी है (भाग २ )

पिछले भाग में  एक सफ़र स्त्री मन का खुद से बात करते हुए पढ़ा ... अब पढ़िए इसका आगे का भाग ज़िन्दगी अभी बाकी है l



सही में अगर स्त्री मन को कोई समझ लेता तो वह जाना लेता कि सृष्टि ने जो सहज प्रेम भाव उसको दिया है वह अनमोल है ,अपने सपने को वह कलम के जरिये तो कह देती है ,पर उस लिखे को जीने के लिए उसका रोज़ का नया संघर्ष होता है ,खुद को समझाती हुई वह यही कहती है ज़िन्दगी अभी बाकी है .....

ज़िन्दगी अभी बाकी है ........


बंद आँखों में लिए ख्वाब कई
उम्र की हर सीमा से परे
वह भी अब जीना चाहती है
उस लड़की की तरह
जिसको वह छोड़ आई है
कहीं बहुत पीछे
पर आज भी कुछ अधूरा सा
खुद को पाती है
वह
उसी उम्र पर
वापस चाहती है लौट जाना
जहाँ उसको बाँध दिया था
उन बन्धनों में
जब वह समझ भी नहीं पाई थी
अपनी देह के साथ हो रहे
उन बदलाव को
जो कुदरत ने उसके साथ
कर दिए थे तय ....
सृष्टि को रचने के लिए
और जो समझती थी
सिर्फ होंठो का छूना भर ही
उसको भर देगा
एक मातर्त्व सुख से

वह उन लम्हों को
छोड़ कर खुद को देखती है
दर्पण के हर उस कोने से
जहाँ उसने जाना था
कि देह की भूख जगने पर
सिर्फ "दर्द "ही नहीं मिलता
मिलता है एक "वो सुख" भी
जिसको यह देह
हर पल आत्मस्त
कर लेती है
और महकती है फिर
अनजानी उस महक से
जिस में ज़िन्दगी को
जीने की  वजह
मिलती है
वह छुअन
जो एहसास करवाती है
"एडम  और इव" के उस
अनजाने फल सा
जो "वर्जानाओं" से परे
अनजाने में चख लिया जाता है

थम के रह गयी
उस उम्र से अब तक
बीते समय को
वह फिर से रोक  लेना चाहती है
और उसको रोक नहीं
पाती है फिर उम्र की कोई शिकन
जो झलकने लगी है
उसकी उन सफ़ेद होते बालों से
तनहा रातों
में  जागे रहने से
पड़े काले घेरों में
रुक गए हैं जो लम्हे
हाँ ---वह उन्हें फिर से
जी लेना चाहती है
सालों से दबा रखा है
अपने उन "फंतासी ख्यालों" को
जो बढती उम्र के साथ साथ
देखे हैं --रचे हैं
अपनी कल्पनाओं में
और उतार लेना चाहती है
अपने को उस अक्स में
जहाँ वह खुद से भी
खुद को नहीं समझ पाती है
बहार से शांत और गंभीर
स्त्री बन जीती हुई
वह अन्दर से
"उस लड़की" को तलाश लेना चाहती है
जो "जंगली जवानी "सी खुद
को कहलवाने  पर
हंसती मुस्कराती है
झूमना चाहती है वह
उस मस्ती में जहाँ
जो इस "सो काल्ड समाज "के
दायरे कानून में बांध कर
उसकी साँसों को तो
लय में जीना सीखा दिया है
पर
कैसे बाँध पाएंगे उस रूह को
जो आज़ाद तितली सी
इधर उधर अपनी ही रो में
बहना चाहती है ..........

शेष मन की बातें अगले भाग में ....

Monday, August 19, 2019

एक सफ़र स्त्री मन का खुद से बातें करते हुए ...


ज़िन्दगी जीने का नाम है एक सफ़र स्त्री मन का खुद से बातें करते हुए ; इस लेख की इस कड़ी में हम उस स्त्री मन की बात करेंगे जो वह अकेले में खुद से करती रहती है  ,उसका यह मन कभी ख़ुशी कभी उदास , कभी बच्चे सा उत्साहित हो उठता है  और तब वह उसको कविता , कहानी  या बोलते शब्दों में ढाल लेती है .. आज इस कड़ी का पहला भाग 



जब से यह संसार बना "आदम इव "के रूप में इसको चलाने के लिए  ईश्वर ने दोनों को समान अधिकार दिए .स्त्री में ममता ,प्रेम अधिक भर दिया क्यूंकि आगे सृष्टि को चलाने वाली वही थी ,और जब स्त्री प्रेम करती है तो खुद को सच्चे मन से सौंप  देती है ,वह उसकी अनन्त गहराई में उतर जाती है वैसे तो दोनों के लिए दिल से मोहब्बत एक जीने का दरवाज़ा होती है जहाँ से गुजर कर ही अपने आस पास के परिवेश को समझा जा सकता है ,यह प्रेम एक दूजे को एक नाम से  बाँध देता है पर उस नाम में कितने नाम मिले हुए होते हैं कोई नहीं जानता स्त्री का अपना वजूद प्रेम से मिल कर बस प्रेम रह जाता है ,हम सभी ईश्वर से प्रेम करते हैं और साथ ही यह भी चाहते हैं की ज्यादा से ज्यादा लोग उस ईश्वर से प्रेम करें पूजा करें वहाँ पर हम ईश्वर पर अपना अधिकार नही जताते !हम सब प्रेमी है और उसका प्यार चाहते हैं परन्तु जब यही प्रेम किसी इंसान के साथ हो जाता है तो बस उस पर अपना पूर्ण अधिकार चाहते हैं और फिर ना सिर्फ़ अधिकार चाहते हैं बल्कि आगे तक बढ जाते हैं और फिर पैदा होती है शंका ..अविश्वास ...और यह दोनो बाते फिर खत्म कर देती हैं प्रेम को ...फिर बात सिर्फ तन के साथ जुडी रह जाती है तब सहज शब्दों में बात यूँ निकलती है

जिन्दगी के सफर में चलते चलते तुम मिले
मिले तो थे तुम खुशबुओं के झोंको की तरह
लेकिन देह की परिभाषा पढ़ते पढ़ते
जाने कहाँ तुम गुम हो गए !
काश की इस रूह को छू पाते तुम
काश की इस रूह को महसूस कर पाते तुम
अगर छुआ होता तुमने रूह से रूह को
तो यह जीवन का मिलन कितना मधुर हो गया होता
पा जाता प्रेम भी अपनी सम्पूर्णता
यदि तुमने इसको सिर्फ़ दिल से रूह से महसूस किया होता !!""

पर पुरुष के लिए अधिकतर इस बात को समझना मुश्किल होता है ,एक वक़्त था जब नारी की बात को महत्व दिया जाता था उसकी इच्छाओं को भी मान्यता मिलती थी पर वह स्त्री जो वैदिक युग में देवी थी वह धीरे धीरे कहीं खोने लगी ,पुरुष स्त्री की सहनशक्ति ,ताकत से डरने लगा ,तब जंगली कानून बने ,हर जगह पुरुष को बेहतर बना कर उसको इतना कमजोर कर दिया की वह हर बात के लिए पुरुष पर निर्भर रहने लगी ,उसकी ज़िन्दगी अधूरी ख्वाइशों में घुटने लगी ..झूठी मुस्कान को ओढ़े वह अपने जीवन को वह जीने के नए ढंग देती जाती है और हर सामने वाली औरत के चेहरे की झूठी हंसी को देख कर मुस्कराती रही ,क्यूंकि यह हंसी का ,मुस्कान का राज़ एक स्त्री ही दूसरी स्त्री का आसानी से समझ सकती है 

मोनालिसा और मैं 

जब भी देखा है दीवार पर टंगी
मोनालीसा की तस्वीर को
देख के आईने में ख़ुद को भी निहारा है
तब जाना कि ..
दिखती है उसकी मुस्कान
उसकी आंखो में
जैसे कोई गुलाब
धीरे से मुस्कराता है
चाँद की किरण को
कोई हलका सा 'टच' दे आता है
घने अंधेरे में भी चमक जाती है
उसके गुलाबी भींचे होंठो की रंगत
जैसे कोई उदासी की परत तोड़ के
मन के सब भेद दिल में ओढ़ के
झूठ को सच और
सच को झूठ बतला जाती हैं
लगता है तब मुझे..
मोनालीसा में अब भी
छिपी है वही औरत
जो मुस्कारती रहती है
दर्द पा कर भी
अपनों पर ,परायों पर
और फ़िर
किसी दूसरी तस्वीर से मिलते ही
खोल देती है अपना मन
उड़ने लगती है हवा में
और कहीं की कहीं पहुँच जाती है

अपनी ही किसी कल्पना में
आंगन से आकाश तक की
सारी हदें पार कर आती है
वरना यूं कौन मुस्कराता है
उसके भीचे हुए होंठो में छिपा
यह मुस्कराहट का राज
कौन कहाँ समझ पाता है!!


सही में अगर स्त्री मन को कोई समझ लेता तो वह जाना लेता कि सृष्टि ने जो सहज प्रेम भाव उसको दिया है वह अनमोल है ,अपने सपने को वह कलम के जरिये तो कह देती है ,पर उस लिखे को जीने के लिए उसका रोज़ का नया संघर्ष होता है ,खुद को समझाती हुई वह यही कहती है ज़िन्दगी अभी बाकी है .....

ज़िन्दगी अभी बाकी है ........शेष अगले अंक में 

Monday, December 22, 2014

आँखे बोलती है


आँखे मन का दर्पण है !इन्हे एक प्रकार का 'लाइडिटेक्टर "माना जाता है .जो बिना जुबान हिलाए ही दिल की बात और भाव को पल भर में कह जाती है ...एक घटना है इस से जुड़ी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के जीवन के शुरू के संघर्ष के दिनों की बात है यह ....गंगाधर जी की शादी होने वाली थी ,रिश्ता तय हो गया था कि एक दिन उनकी चाची ने कहा कि 'गंगधार लड़की वालों के यहाँ जाना उनसे कहना कि हम यह रिश्ता नही कर पायेंगे आप किसी अन्य जगह बात करे .."

लड़की के घर जब गंगाधरपहुंचे तो संयोग वश उसके पिता जी बाहर गए हुए थे अंत विवश हो कर दोनों पहली बार तीन पग के फासले पर बैठ गए ...अब गंगाधर कैसे कहे कि तुम्हारे पिता जी दहेज़ नही दे सकते अतः .........!कुछ वाक्य कहने से पहले ही वह कांप गए कि यह सुन के एक गरीब पिता और पुत्री पर आखिर क्या गुजरेगी ! इतने में लड़की के पिता आ गए उनके विस्फरित नेत्रों से उनकी चिंता और घबराहट साफ दिख रही थी और इस बीच गंगाधर अपने मन में मचे द्वंद से उभर चुके थे संघर्ष में जीत आदर्श की हुई वह बोले कि " हमे लड़की पसन्द है "-मारे खुशी के लड़की के पिता के आंखो में आंसू आगये ....जाते समय गंगधार ने उनकी आंखो में देखा तो स्नेह के हज़ार हज़ार भाव झलक रहे थे ...आंखो के प्रकट हुए उन भीने भावों ने गंगाधर का काया कल्प कर दिया और ज़िंदगी को एक नई दिशा मिली !

आंखोकी भाषा कि तरह शरीर के विभिन्न अंगों के अपने अपने संकेत होते हैं ..जो कई बार व्यक्त कि गई बात को झुठला देते हैं सुप्रसिद्ध विज्ञान वेता डॉ जे . फास्ट ने बाडी लेन्गिविज नामक पुस्तक में विज्ञान कि इस शाखा को काइनेसिक्स नाम दिया है .... मानसिक और भावनात्मक क्रियाओं के आंखो से अभिव्यक्त होने के कारण का उन्होंने इस में विस्तार से वर्णन किया है आंखो में झाँकने का मतलब है मस्तिष्क में होने वाली क्रियाओं को स्पष्ट रूप से देखना इस में उन्होंने बताया है कि जब हम किसी रसप्रद वस्तु या व्यक्ति को देखते हैं तो हमारी आंखो की पुतलियाँ चौडी हो जाती है और जब हम किसी नीरस वयक्ति या वस्तु को देखते हैं तो पुतलियाँ सिकुड़ जाती हैं इस तरह आँखे वह है जो मनुष्य के आन्तरिक दिल का हाल बता देती है अपनी ही मूक भाषा में यह कितनी बातें कह जाती है ..आँखे बोलती है :)

Sunday, December 07, 2014

हम कितने सभ्य हो गये हैं

हम कितने सभ्य हो गये हैं ..आज हमे आज़ाद हुए कितने बरस बीत गये हैं और हमारे सभ्यता के कारनामो से तो आज के पेपर भरे रहते हैं नमूना देखिए बस में बाज़ार में किसी की जेब कट गयी है मामूली बात पर कहसुनी हो गयी .सड़क दुर्घटना का कोई शिकार हो गया जिसे तुरंत हस्पिटल पहूचाना है पर हम लोग देखा अनदेखा कर के निकल जाते हैं .क्या करे कैसे करें दफ़्तर के लिए देर हो रही है ..कौन पुलिसे के चक्कर में पड़े आदि आदि ..यही सोचते हुए हम वहाँ से आँख चुरा के भाग जाते हैं ..सच में कितने सभ्य हो गये हैं ना

Tuesday, January 08, 2013

एन्जॉय चाय की चाह ..........:)

ठण्ड के मौसम में चाय की चाहत के बिना चैन कहाँ ..पर यह चाय कहाँ से कैसी आई ...?जानिये तो सही जरा ... चाय के सम्राट शेनतुंग ने खोजी चाय २७३७ इसवी पूर्व चीन का सम्राट था शेनतुंग ..वह अक्सर बीमार रहता एक दिन उसके वेद्ध ने कहा पानी उबाली ठंडा करके पीते रहो बादशाह ने वैसा ही किया ..बहुत दिनों तक यही चलता रहा एक दिन राजमहल के रसोईघर में पानी उबाला जा रहा था हवा चली ,कुछ पत्तियां उड़ती हुई आई उबलते पानी में गिर गयीं इसी पानी को सम्राट ने पी लिया उसको पानी का स्वाद कुछ बदला बदला सा लगा और पसंद भी आया बस फ़िर क्या था राजा ने वैसी ही पत्तियां मंगवाई और उबाल कर पीता रहा ...यह कर्म जारी रहा इसको देख कर अन्य लोगों ने भी इसको इस तरह से पीना शुरु कर दिया । चीनी लोगी ने इसको ""चाह"" कहना शुरू कर दिया वही ""चाह"" बाद में "चाय" कहलाई जैसे जैसे यह अन्य देशों में गई वहां अलग अलग नाम दे दिए गए जैसे भारत में इसको "चाय "कहा और अंग्रजी में यह "टी "कहलाई सबने इसको अपने स्वाद में ढाला और खूब इसका स्वागत किया इस समय विश्व में प्रति चाय की खपत के हिसाब से आयरलैंड प्रथम ब्रिटेन दूसरे तथा कुवेत तीसरे स्थान पर आते हैं इस तरह सम्राट के इस उबले पानी ने हमें चाय से परिचित करवा दिया ..एक बार बहुत पहले चाय पर लिखी थी कुछ पंक्तियाँ मैंने कि .. काश ........ उसका दिल एक चाय की केतली सा होता जिसको बार बार गर्माना न पड़ता पर उसका दिल तो कम्बखत बर्फ सा निकला जो सर्द आहों से भी पिघल नहीं पाता है नज़रों से करे चाहे इशारे कितने वह नासमझ इस चाह को समझ न पाता है :):) चलिए जी चाह की चाहत को समझे न समझे कोई ..पर चाय की चाह सबको इस सर्द मौसम में राहत दे जाती है :) एन्जॉय चाय की चाह ..........:)

Thursday, August 21, 2008

गहने शक्ति के भी प्रतीक

गहने बहुत प्राचीन समय से मनुष्य को आकर्षित करते रहे हैं | आदि काल से जब उसने खाना पहना ,घर बनाना सीखा तब ही साथ गहने भी बनाए पत्थर के और ख़ुद को उनसे सजाया | वक्त के साथ साथ गहनों का सफर भी चलता रहा और यह अपने नए प्रकार के घातु में ढल कर स्त्री पुरूष दोनों के व्यक्तित्व की शोभा बढाते रहे | इनको पहनना सिर्फ़ शिंगार की दृष्टि से ही नही था बलिक शरीर के उन महत्वपूर्ण जगह पर दबाब देने से भी भी था जो मनुष्य को स्वस्थ रखते हैं | यह बात विज्ञान ने भी सिद्ध की है |

इसी सिलसले में आज आपसे कश्मीरी गहनों के बारे में बात करते हैं |जम्मू कश्मीर में बहुत समय तक रहने के कारण कश्मीरी लड़कियों के पहने हुए गहनों से बहुत प्रभावित रही हूँ मैं | हर प्रांत हर जगह की अपनी एक ख़ास पहचान होती है | और कोई न कोई बात उसके पहनावे ,गहनों और रीति रिवाजो से जुड़ी होती है |उनके बारे में जानना बहुत ही दिलचस्प लगता है | कानों से लटकती लाल डोरी ..गुलाबी चेहरों का नूर और उस पर डाला हुआ फेरन जैसे एक जादू सा करता है | कई कश्मीरी सहेलियां थी जिनसे उनके पहने जाने वाले गहनों के बारे में जाना |

.कश्मीर में हर लड़की की शादी से पहले लौगाक्ष गृह सूत्र " की रस्म अदा की जाती है जिस में लड़की के सामने सारे रहस्य खोले जाते हैं | लौगाक्ष एक ऋषि हुआ था जिस ने तन ,मन और आत्मा की चेतना के कुछ सूत्र लिखे थे ,वही सूत्र पढ़े जाते हैं और उनकी व्याख्या की जाती है |

गुणस..मटमैले रंग के एक जहरीले पहाडी सांप को गुणस कहते हैं और जो सर्प मुखी सोने का कंगन बनाया जाता है उसको भी गुणस कहते हैं | इस आभूषण को जब मंत्रित कर के लड़की की दोनों कलाई यों में पहनाया जाता है तो मान लिया जाता है की इस की शक्ति उसकी रगों में उतर जायेगी और वह अपनी रक्षा कर सकेगी |

कन वाजि- कर्ण फूल वाजि गोल कुंडल को कहते हैं और कान का कुंडल यह फूल के आकार में बना सोने का आभूषण है जिसको पहनाने से यह माना जाता है की दोनों कानो में पहनाने से इडा और पिंगला दोनों नाडीयों को जगा देंगे इडा नाडी खुलने से चन्द्र शक्ति और दायें तरफ़ पहनाने से पिंगला नाडी खुलेगी जिस से सूरज शक्ति जग जायेगी |

ड्याजी -होर काया विज्ञान की बुनियाद पर सोने का एक आभूषण पहनाया जाता है जो योनी मुद्रा आकार का होता है यह प्रतीक हैं दो शक्तियों ने अब एक होना है | ड्याजी शब्द मूल द्विज से आया है जिसका अर्थ है दो और होर का मतलब जुड़ना | इस में तीन पतियाँ बनायी जाती है जो तीन बुनयादी गुण है .इच्छा ,ज्ञान ,और क्रिया | यह सोने का तिल्ले के तीन फूलों के रूप में होती है |

तल राज तल रज इस आभूषण के दोनों सिरों पर जो लाल डोरियाँ बाँधी जाती है ,उनको तल रज कहते हैं |रज का अर्थ है --धागा और ताल से मतलब है सिर के तालू की वह जगह ,जहाँ पूरी काया में बसे हुए चक्रों का आखरी चक्र होता है सहस्त्रार | आर का अर्थ है धुरी और वह धुरी जिसके इर्द गिर्द कई चक्र बनते हैं | काया विज्ञान को जानने वाले रोगियों के अनुसार इस सहस्त्रार में कुंडलिनी जागृत होती है ,परम चेतना जागृत होती है | यह आभूषण दोनों कानों के मध्य में पहना जाता है .उस नाडी को छेद कर के जिसका संबंध सिर के तालू के साथ जुडा होता है ,और माना जाता है की इस आभूषण के पहनने से सहस्त्रार के साथ जुड़ी हुई नाडियाँ तरंगित हो जायेंगी |

कल वल्युन कलपोश---कल खोपडी को कहते हैं और पोश पहनने को | यह सिर पर ढकने वाली एक टोपी सी होती है -जो सुनहरी रंग के कपड़े को आठ टुकडों में काट कर बनायी जाती है | यह उन का सुनहरी रंग का कपड़ा सा होता है और जिस पर यदि तिल्ले की कढाई की जाए तो उसको जरबाफ कहते हैं | यह आठ टुकड़े आठ सिद्धियों के प्रतीक हैं इस एक लाल रंग की पट्टी राजस गुन की प्रतीक है और सफ़ेद रंग के जो फेर दिए जाते हैं वह सात्विक रूचि को दर्शाते हैं | इस आठ डोरियों को दोनों और से एक एक सुई के साथ जोड़ दिया जाता है जिस पर काले रंग का बटन लगा होता है | यह बटन तामसिक शक्तियों से रक्षा करेगा इस बात को बताता है |

वोजिज डूर-लाल डोरी --वोजिज लफ्ज़ उज्जवल लफ्ज़ से आया है और डूर का अर्थ है डोरी | इसको दोनों कानो में ड्याजी -- होर जो आभूषण है वह दोनी कानो में इसके साथ बाँधा जाता है | उनका लाल रंग शक्ति का प्रतीक है और बाएँ कान में स्त्री अपने लिए पहनती है और दायें कान में अपने पति के लिए पहनती है इसका अर्थ यह है की दोनों ने आपने अपने तीन गुन इच्छा ज्ञान और क्रिया अब एक कर लिए हैं |

तरंग कालपोश को सफ़ेद सूती कपड़े में लपेटा जाता है -जो सिर से ले कर पीठ की और से होता हुआ कमर तक लटका होता है |मूलाधार चक्र तक और इस तरह सब छः चक्र उस कपड़े की लपेट में आ जाते हैं इसका सफ़ेद रंग तन मन और आत्मा की पाकीजगी का चिन्ह है |

स्त्री शक्ति कश्मीर में शक्तिवाद सबसे अधिक सम्मानित हुआ है |इस लिए स्त्री की पहचान एक शक्ति के रूप में होती है और इस लिए उसके पहरन में दो रंग जरुर होते हैं सफ़ेद सत्व गुण का प्रतीक और लाल राजस गुन का प्रतीक | काले रंग का उस के पहरन में कोई स्थान नही क्यूंकि वह तामस गुण का प्रतीक होता है |

फेरन --यह सर्दियों में पश्मीने का होता है और गर्मियों में सूती कपड़े का | यह भी काले रंग का कभी नही होता है | इसकी कटाई योनी मुद्रा में की जाती है जिस पर लाल रंग की पट्टी जरुर लगाई जाती है | इसको दोनों तरफ़ से चाक नही किया जाता इसका अर्थ यह होता है की शक्ति बिखरेगी नही |इसके बायीं तरफ़ जेब होती है जो स्त्री की अपनी तरफ़ है | उस तरफ़ की जेब लक्ष्मी का प्रतीक है और इस में भी लाल पट्टी जरुर लगाई जाती है | इसका अर्थ यह है की लक्ष्मी स्त्री के पास रहेगी और वह इसकी रक्षा अपने तमस गुण से करेगी |

पौंछ---यह फेरन के अन्दर पहने जाने वाला कपड़ा होता है और यह अक्सर सफ़ेद रंग का ही होता है -यानी सात्विक शक्ति स्त्री के शरीर के साथ रहेगी जिस के ऊपर लाल रंग का फेरन होगा रजस शक्ति का प्रतीक |

इसकी बाहों की लम्बाई कभी भी अधिक लम्बी कलाई तक नही होती है और इस के आख़िर में में भी लाल पट्टी लगा दी जाती है |

लुंगी --यह कई रंगों का एक पटका सा होता है जिसको फेरन के साथ कमर पर बाँध लिया जाता है और इसकी गाँठ को एक ख़ास तरकीब से बाँधा जाता है जो पटके की पहले लगी दो गांठो को लपेट लेती है जो की एक स्त्री शक्ति का प्रतीक है और एक पुरूष शक्ति का प्रतीक है और एक गाँठ में बाँधने का मतलब है की अब वह दोनों एक हैं |

पुलहोर--कुशा ग्रास को सुनहरी धागों में बुन कर स्त्री के पैरों के लिए जो जूती बनायी जाती है उसको पुलहोर कहते हैं | माना जाता है कि कुशा ग्रास की शक्ति के सामने असुरी शक्ति शक्तिहीन हो जाती हैं और ज़िन्दगी की मुश्किल राहों पर स्त्री आसानी से आगे बढ़ सकेंगी और साबुत कदम रख सकेगी |

इस प्रकार यह गहने शक्ति के भी प्रतीक बन जाते हैं और हर लड़की खुशी खुशी इनको धारण करती है | यह कोई बंधन नही एक परम्परा है जिस का सम्मान और उस से प्यार हर लड़की को ख़ुद बा ख़ुद हो जाता है |

Monday, August 18, 2008

देवताओं का नगर--रॉक गार्डन


उस बनाने वाले ने रॉक गार्डन
हर दिल में एक नयी चाहत जगा दी है
एक एहसास जीने का देकर
जीने की एक नयी राह दिखा दी है !!

चंडीगढ़ शहर और उस में बसा यह ,"देवताओं का नगर रॉक गार्डन "और सुखना झील मेरे पंसदीदा जगह में से एक है | रॉक गार्डन यानी देवताओं की नगरी ,जो इश्क की इन्तहा है ,जहाँ इश्क की इबादत करने को जी चाहता है | यह जनून जरुर किसी देवता ने ही नेकचंद के दिलो दिमाग में डाला होगा , वह कहते हैं कि जब वह छोटे थे तो जंगल और वीरानियों से पत्थर और अजीब सी शक्ल वाली टेढी मेढ़ी टहनियां चुनते रहते थे |पर कोई जमीन पास न होने के कारण वह उनको वहीँ निर्जन स्थान पर रख आते थे |फ़िर जब बड़े हो कर वह पी .डब्लू .डी में रोड इंस्पेक्टर बन गए तो चंडीगढ़ की इस निर्जन जगह पर एक स्टोर दफ्तर का बना लिया और यहाँ सब एक साथ रखता गए |
यहाँ इसी वीराने में उन्होंने इस नगरी की नीवं रख तो दी ,पर एक डर हमेशा रहता किसी सरकारी अफसर ने कभी कोई एतराज़ कर दिया तो फ़िर क्या करूँगा ? उस हालत में उन्होंने सोच रखा था कि फ़िर वही वही पर बनी गहरी खाई के हवाले कर देंगे| कितनी हैरानी की बात है कि गुरदास जिले के बेरियाँ कलां गांव के जन्मे इस अनोखे कलाकार को न ड्राइंग आती है न कभी उन्होंने की |पर जैसे देवताओं ने हाथ पकड़ कर उनसे यह सब बनवा लिया |

इस के पीछे हुई मेहनत साफ़ नज़र आती है | शाम होने पर वह दरजी की दुकानों पर जा कर लीरें इक्ट्ठी करते जहाँ कहीं मेला लगता वहां से टूटी चूडियाँ के टुकड़े बोरी में भर कर ले आते ,होटलों और ढाबों से टूटे प्याले प्लेटों के टुकड़े जमा करते ,साथ ही जमा करते बिजली की जली हुई ट्यूब और जले हुए कोयले के टुकड़े भी | और इस सब सामान को जोड़ने आकृति देने के लिए सीमेंट , जहाँ सीमेंट के पाइप बनते और जो छींटों के साथ साथ सीमेंट उड़ता उसको इकठ्ठा कर के ले आते | इस तरह पंजाब की मिटटी पर बना यह इस कलाकार का वह सपना है जो पूरी दुनिया ने इसको बन कर खुली आंखों से देखा है |
१२ साल तक यह कलाकार छिप कर यह नगरी बसाता रहा , डरता रहा कि कहीं कोई सरकारी हुक्म इसको मिटटी में न मिला दे पर जब एम् .एस .रंधावा ने यह नगरी देखी तो उनका साथ दिया फ़िर नए चीफ कमिशनर टी .एन चतुर्वेदी ने इन्हे पाँच हजार रूपये भी दिए और सीमेंट भी दिया और दिए मदद के लिए कुछ सरकारी कारीगर |काम अभी खूब अच्छे से होने लगा था तभी उनकी ट्रांसफर यहाँ से हो गई और नए कमिशनर ने आ कर यह काम यह कह कर बंद करवा दिया कि , फालतू का काम है | तीन साल तक यह काम बंद रहा | उसके बाद आए नए चीफ कमिशनर ने काम दुबारा शुरू करवाया और इन्हे जमीन भी दी | तब से या देवताओं की नगरी आबाद है और नित्य नए बने तजुरबो से गुलजार है |

यहाँ चूडियों के टूटे टुकड़े से बनी गुडिया जैसे बोलने लगती है ,पहाडी प्रपात का महोल अपने में समोह लेता है और तब लगता है की यह पत्थर हमसे कुछ बातें करते हैं .बस जरुरत इन्हे ध्यान से सुनने की है |

कभी रॉक गार्डन पर पर लिखी एक कविता पढ़ी थी जिसका मूल भाव यह था कि जिस तरह एक कलाकार ने टूटी फूटी चीज़ो से एक नयी दुनिया बसा दी है क्या कोई मेरे एहसासो को इसी तरह से सज़ा के नये आकार में दुनिया के सामने ला सकता है ?दिल तो मेरा है "रॉक" है , क्या उस पर अहसास का गार्डन बना सकता है? ...... उसको सोच कर यह नीचे लिखी कविता मैंने लिखी ..पता नही यह उस कलाकार के अंश मात्र भाव को भी छू सकी है यह नही ,पर एक कोशिश कि है मैंने .....

बना तो सकते हैं हम
अपनी चाहतों से तेरे
रॉक हुए दिल को
प्यार के महकते हुए
एहसासों का गुलिस्तान
पर क्या तुम भी
उन टूटी फूटी चीजों की तरह
अपने सोये हुए एहसासों को
जगा पाओगे ?
जिस तरह सौंप दिया था
टूटे हुए प्यालों चूडियों ने
अपना टूटा हुआ अस्तित्व
अनोखे बाजीगर को .
क्या तुम उस तरह
अपना अस्तित्व मुझे
सौंप पाओगे ??
क्या तुम में भी है ..
सहनशीलता उन जैसी
जो उन्होने नये आकार
बन पाने तक सही थी..
क्या तुम भी उन की तरह तप कर
फिर से उनकी तरह सँवर पाओगे ????

अगर मंज़ूर हैं तुम्हे यह सब
तो दे दो मुझे ..
अपने उन टूटे हुए एहसासो को
मैं तुम्हारे इस रॉक हुए दिल को
फिर से महका दूँगी ,सज़ा दूँगी
खिल जाएगा मेरे प्यार के रंगो से
यह वीरान सा कोना तेरी दुनिया का
पूरी दुनिया को मैं यह दिखा दूँगी !!

रंजू


Friday, June 06, 2008

अचानक आ गई हो वक्त को मौत जैसे.मीना कुमारी के डायरी के पन्नों से

मीनाकुमारी ने जीते जी अपनी डायरी के बिखरे पन्ने प्रसिद्ध लेखक गीतकार गुलजार जी को सौंप दिए थे । सिर्फ़ इसी आशा से कि सारी फिल्मी दुनिया में वही एक ऐसा शख्स है ,जिसने मन में प्यार और लेखन के प्रति आदर भाव थे ।मीना जी को यह पूरा विश्वास था कि गुलजार ही सिर्फ़ ऐसे इन्सान है जो उनके लिखे से बेहद प्यार करते हैं ...उनके लिखे को समझते हैं सो वही उनकी डायरी के सही हकदार हैं जो उनके जाने के बाद भी उनके लिखे को जिंदा रखेंगे और उनका विश्वास झूठा नही निकला उन्ही की डायरी से लिखे कुछ पन्ने यहाँ समेटने की कोशिश कर रही हूँ ...कुछ यह बिखरे हुए से हैं .पर पढ़ कर लगा कि वह ख़ुद से कितनी बातें करती थी ..न जाने क्या क्या उनके दिलो दिमाग में चलता रहता था ।
४ -११ -६४

सच मैं भी कितनी पागल हूँ ,सुबह -सुबह मोटर में बैठ गई और फ़िर कहीं चल भी दी लेकिन तब इस पहाड़ के बस नीचे तक गई थी ऊपर, तीन मील तक तब तो पैदल चलना पड़ता था ।अब सड़क बनी है कच्ची तो है पर मोटर जा सकती है प्रतापगढ़--भवानी का मन्दिरअफजल और बन्दे शाह का मकबरा फ़िर ५०० सीढियाँ ... यह बर्था कहती थी सुबह चलना चाहिए...चलना चाहिए पर इसके लिए दुबले भी तो होना चाहिए इसलिए इतना बहुत सा चला आज ।
फ़िर वही नहाई नहाई सी सुबह ...वही बादल दूर दूर तक घूमती फिरती वादी भी उसी शक्ल में घूमते फिरते थे
ठहरे हुए से कितनी चिडियां देखी कितने कितने सारे फूल, पत्ते चुने पत्थर भी
******

रात को नींद ठीक से नही आई वही जो होता है जहाँ जगता रहा इन्तजार करता रहा
लेकिन सच यूं जगाना अच्छा है जबरदस्ती ख़ुद को बेहवास कर देना
यहाँ तो जरुरी नही यहाँ तो खामोशी है चैन है ,सुबह है दोपहर है शाम है
आह .....!!!!
कल सुबह उठ नही सकी थी तो बड़ी शर्म आरही थी सच दरवाज़े के बाहर वह सारी कुदरत वह सारी खूबसूरती खामोशी अकेलापन ..सबको मैं दरवाज़े से बहार कर के ख़ुद जबरदस्ती सोयी रही । क्यों ? क्यों किया ऐसा मैंने
तो रात को जगाना बहुत अच्छा लगता है सर्दी बहुत थी नही तो वह दिन को उठा कर बहार ले जाती कई बार दरवाज़े तक जा कर लौट आई सुबह के करीब आँख लगी इसलिए सुबह जल्दी नही उठ पायी ।

५ -११- ६४

रात भी हवाओं की आंधी दरवाज़े खिड़कियाँ सब पार कर जान चाहती थी शायद इस लिए कल भी मैं जाग गई और सुबह वही शोर हैं फ़िर से । सच में बिल्कुल दिल नही कर रहा है कि यहाँ से जाऊं । यही दिन अगर बम्बई में गुजरते तो बहुत भारी होते और यहाँ हलांकि ज्यादा वक्त होटल में रहे हैं फ़िर भी सच इतनी जल्दी वक्त गुजर गया है कई आज आ गया ।इतनी जल्दी प्यारे से दिन सच जैसे याद ही नही रहा की कल क्या होगा ?

जनवरी -१ -१९६९

रात बारह बजे और गिरजे के मजवर ने आईना घुमा दिया ।कितनी अजीब रस्म है यह फूल और सुखी हुई पत्तियों को चुन चुन कर एक टीकों खाका बनाया
सदियों में हर नुक्ते को
रंगीन बनाना होगा ,
हर खवाब को संगीत बनाना होगा
यह अजम है या कसम मालूम नही

जनवरी -२ -१९६९

आज कुछ नही लिखा सोचा था अब डायरी नही लिखूंगी लेकिन सहेली से इतनी देर नाराज़ भी नही रहा जा सकता न ।आह ....!!!आहिस्ता आहिस्ता सब कह डालो ..आज धीरे धीरे कभी तो इस से जी भरेगा आज नही तो कल....

अप्रैल - २१ -१९६९

अल्लाह मेरा बदन मुझसे ले ले और मेरी रूह उस तक पहुँचा दे चौबीस घंटे हो गए हैं जगाते जागते ....अब कल की तारिख में क्या लिखूं शोर है भीड़ है सब तरफ़ और दर्द --उफ़ यह दर्द

मई- २ -१९६९

तारीखों ने बदलना छोड़ दिया है अब क्या कहूँ अब ?

मई -३ -१९६९

कब सुबह हुई कब शाम कब रात सबका रंग एक जैसा हो गया है तारीखे क्यों बनायी हैं लोगो ने ?
मई -४ -१९६९
यादों के नुकीले पत्थर
लहू लुहान यह मेरे पांव
हवा है जैसे उसकी साँसे
सुलग रही धूप और छावं

उनकी डायरी के यह बिखरे पन्ने जैसे उनकी दास्तान ख़ुद ही बयान कर रहे हैं और कह रहे हैं

अचानक आ गई हो वक्त को मौत जैसे
मुझे ज़िंदगी से हमेशा झूठ ही क्यों मिला ?
क्या मैं किसी सच के काबिल नही थी !""

वह जब तक जिंदा रही धड़कते दिल की तरह जिंदा रही और जब गुजरी तो ऐसा लगा की मानो वक्त को भी मौत आ गई हो उनकी मौत के बाद जैसे दर्द भी अनाथ हो गया क्यूंकि उस को अपनाने वाली मीना जी कहीं नही थी ..

आप सब ने इन कडियों को पढ़ा और पसंद किया .मुझे होंसला मिलता रहा और उनके बारे में लिखने का ..पर उनकी डायरी के यह बिखरे पन्नों ने जैसे मुझसे कहा की कितना लिखूंगी इस बेहतरीन अदाकारा के बारे में यह तो वह शख्ससियत हैं जिसके बारे में जितना लिखो ,पढो उतना ही कम है ..अभी के लिए बस इतना ही .

Wednesday, May 07, 2008

दुनिया के महान आश्चर्य में से एक हैं मिस्त्र के पिरामिड


दुनिया के सात महान आश्चर्य में मिस्त्र के पिरामिड भी एक अदभुत आश्चर्य हैं ...और यह मुझे हमेशा से ही अपनी तरफ़ आकर्षित करते हैं इनेक बारे में जितना पढो हर बार नया सा लगता है .भारत की तरह ही मिस्त्र की सभ्यता भी बहुत पुरानी है कभी यह देश विश्व सभ्यता का अनुपम उदाहरण माना जाता था पर समय के फेर ने इस देश को पतन की और धकेल दिया अज यह अपनी कई जरूरतों के लिए अनेक मुल्कों का मोहताज है ..पर आज भी वहाँ बचे हुए अवशेष वहाँ की गौरव गाथा कहते हैं जिन्हें देख के आज के वैज्ञानिक , कला पारखी और इंजिनियर भी दांतों तले उंगुली दबा लेते हैं

पिरामिड एक तरह के स्तम्भ को कहते हैं जिनके नीचे का हिस्सा चौडा होता है और ज्यूँ ज्यूँ यह ऊपर की और बढता जाता है पतला होता जाता है ..अधिकतर पिरामिड चकौर होते हैं और मिस्त्र में इस तरह के हजारों छोटे बड़े पिरामिड हैं इतिहास के लेखकों का मत है कि पुराने जमाने में राजा अपने लिए मृत्यु से पहले ही अपनी कब्र बना लेते थे और इन्ही कब्रों को पिरामिड कहते हैं वैसे तो यहाँ कई पिरामिड हैं पर गिजा के पिरामिड बहुत ही विशाल और सुंदर बने हुए हैं पहाड़ के आकार के समान दिखायी देने वाले यह पिरामिड कैसे बनाए गए होंगे यह आज भी एक हैरानी का विषय है यहाँ चारों तरफ़ सिर्फ़ बालू ही बालू रेत ही रेत है कैसे कहाँ से इतने बड़े विशाल पत्थर ला कर यह बनाए गए होंगे यह सवाल भी हैरान कर देने वाला है कैसे इसको किन्होने बनया होगा .क्या इसको बनाने वाले मानव ही थे ? कितने जीवट वाले वह इंसान रहे होंगे ? पहले इन्हे मानव द्वारा नही बना हुआ माना गया था पर बाद में धीरे धीरे मनाना पड़ा कि यह मानव का ही काम है अब से हजारों वर्ष पूर्व भी मानव की बुद्धि बल कार्यकुशलता किसी से कम नही थी ..कहते हैं की इन पिरामिडों में इतने वजनी पत्थर लगे हैं कि आज के बड़ी बड़ी पत्थर ढोने वाली मशीने भी क्रेन भी इसको नही उठा सकती हैं ..

आखिर इतने रेतीले रेगिस्तान में यह बड़े बड़े पत्थरकैसे पहुँचाये गए होंगे सोचने की बात है यह आज से लगभग चार हज़ार वर्ष पूर्व बने हुए हैं पर हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी यह आज भी अपनी उसी चमक के साथ खड़े हैं मानों हाला में ही बने हों इन में ऐसी कारीगरी की गई है कि आज भी यह वैसे ही चमक रहे हैं ..इनके बारे में जो कहनियाँ परचलित है वह सब जानते हैं कि राजा के मरने पर इस में उसको समान और उसके नौकरों के साथ अन्दर बने खंडो में बंद कर दिया जाता था इस मान्यता के साथ कि मरने के बाद भी जीवन है और उस मरने वाले को वहाँ भी इन चीजों की जरूरत होगी ..जो कई वैज्ञानिक इसके अन्दर गए हैं और वहाँ जो मृत शव मिले हैं उन्हें देखने से पता चलता है की जैसे यह अभी हीकुछ समय पहले रखे गए हैं ..और यह भी पता चला है कि उस समय भी मानव का औसत कद काठी आज के मनुष्य जैसी ही थी उनके आकार प्रकार में कोई खास अन्तर नही था .इसके बारे में एक इतिहास कार ने लिखा है कि सबसे बड़ा पिरामिड मिस्त्र देश के राजा चिआप्स का है अपनी कब्र केलिए बनवाया था इसका निर्माण काल इस्वी सं ९०० वर्ष पूर्व किया गया था एक लाख मजदूरों ने प्रतिदिन काम करके इस पिरामिड को बनाया था इसको बनाने वाले बादशाह का शव पिरामिड के नीचे के कमरे में रखा गया है इस कमरे के चारों और एक सुरंग भी है और इसी सुँरंग से हो कर नील नदी का पानी पिरामिड का पानी नीचे नीचे से बहा करता है .इस इतिहास कार ने वहां के पुजारी से पूछा था कि यह बड़े पत्थर कैसे एक दूसरे के ऊपर जमाये गए हैं ,उसने जवाब दिया की तब लकड़ी की मशीने होती थी इसी मशीन की सहयता से पहला चबूतरा बने गया फ़िर इसके ऊपर दूसरे चबूतरे के पत्थर जमाये गए ..जिस काम को आज को आज कि इतनी बड़ी बड़ी लोहे की मशीने नही कर पाती उस वक्त कैसे कर पाती होंगी .इनकी जुडाई इतनी कुशलता से की गई है की कहीं भी नोक भर अन्तर देखने को नही मिलाता कंही भी कोई गलती नही देखने को मिलती .जिन लोगों ने अन्दर घुस के इन कमरों का पता लगया है वहाँ कई लेख भी मिले हैं ..जो कही अरबी और कहीं रोमन में लिखे हुए हैं ..इनसे पता चलता है की पुराने जमाने में रोम और अरब के निवासी इन में प्रवेश कर चुके थे ..इनका रहस्य पता लगाने में कितने लोगो ने अपनी जान दी है सिर्फ़ यह पता लगाने के लिए इनके अन्दर ऐसा क्या रहस्य है तभी यह दुनिया के सामने आए हैं ..एक इतिहास कार ने लिखा है की इनको बनाने में अनेक बड़े बड़े कारीगर और कला कौशल जाने वालों के अतिरिक्त एक लाख मजदूरों ने वर्षों तक काम किया है प्रत्येक तीन वर्ष पर आदमी बदल दिए जाते थे और नए आदमी रखे जाते थे भीतर लिखे लिखों से पता चलता है की इनको बनाने वाले मजदूरों को हर रोज़ रोटी और प्याज बँटा जाता था इस प्रकार एक दिन में कई हज़ार दीरम अरब देश का सिक्का खर्च हो जाता था काम करने वाले मजदूरों को कोई मजदूरी नही दी जाती थी उनसे बेगार ली जाती थी और कोई बादशाह को काम करने से मना नही कर सकता था मना करने पर कोडे बरसाए जाते थे मिस्त्र के बादशाहों की यह क़ब्रे आज पूरी दुनिया के लिए हैरानी का विषय है और मानव श्रम का एक अदभुत नमूना है मेरी विश लिस्ट कोई बहुत बड़ी नही है :) पर कभी वक्त ने मौका दिया तो उस लिस्ट में सबसे पहले मुझे इनको देखना है ..

Saturday, May 03, 2008

छोटी छोटी बातें

किताबे पढ़ना मेरा जनून है :) और इसी के चलते कई बार ऐसी बातें पढने में आती है जो सबके साथ शेयर करने का दिल होता है साथ ही यह विचार आता है की कई बार छोटी छोटी घटनाये भी कैसे सुंदर संदेश दे जाती हैं ...हम जाने अनजाने में जिन बातों को सरलता से समझ नही पाते हैं वह कई बार एक छोटी सी पढी हुई घटना या सामने घटी घटना हमे सिखा जाती है ... .इस छोटे से किस्से में बताया गया था कि जापानी कितने मेहनती होते हैं और कैसे देशभक्त होते हैं इस किस्से को लिखने वाला लेखक अपने परिवार अपनी पत्नी और दो साल की बेटी के साथ घूमने गया ..रास्ते में एक रेस्टोरेंट में खाने के लिए रुके ..वहाँ पर एक जापानी पर्यटक अपने कुछ साथियों के साथ नाश्ता कर रहा था .लेखक ने कुछ चिप्स और बिस्कुट खा के उसके रैपर वही फेंक दिए ..तभी वहाँ बैठे जापानी पर्यटक में से एक बुजुर्ग पर्यटक उठा और वह खाली रैपर उठा लिए और
अपने बेग में से केँची निकाल कर उसके कई छोटे छोटे टुकडे कर डाले जब तक इस किस्से को लिखने वाला लेखक कुछ समझ पाता उस जापानी से उन टुकडों से एक खूबसूरत ग्रीटिंग कार्ड तैयार कर के इन लेखक महाशय को दिया और टूटी फूटी अंग्रेजी में कहा की किसी भी वस्तु को कभी भी बेकार मत समझो जब तक वह सच में काम की न रहे यही सफलता का मूल मन्त्र है और इसी से आगे बढ़ा जा सकता है ..बात बहुत छोटी सी है पर हम कहाँ आसानी से यह बात समझ पाते हैं हम में से कितने लोग इस तरह बेकार चीजों का उपयोग कर पाते हैं ..हाँ इनको इधर उधर फेंक के अपने पर्यावरण को और बिगाड़ कर रहे हैं ...

Wednesday, April 30, 2008

यह भी एक सच है .

यह भी एक सच है ..

आज की जनरेशन कितनी तेजी से आगे बढ़ रही है वह एक आंकलन पढ़ कर सामने आया ..जिस तेजी से देश तरक्की कर रहा है उस के साथ ही हमारी संस्कृति और सभ्यता किस क़द्र कहाँ जा रही है इसको जानने के लिए एक नज़र जरा इन बातो पर डालिए

हमारी आज की मोबाइल यंग जनरेशन शराब पीने के लिए बे इन्तहा पैसा खर्च करती है इसका साबुत है पिछले कुछ सालों में पी गई है २२० मिलियन लीटर वाइन दिल्ली मुम्बई कोलकाता पुणे और बेंगलूर जैसे शहरों में पानी की तरह पी जाती है यह चलन अब छोटे शहरों तक भी पहुँच रहा है और अनुमान है की २०१० तक घरेलू वाइन उपभोग नो मिलियन लीटर तक पहुँच जायेगा

भारत की सिलिकान वैली को अब देश की बियर कैपिटल या पब सिटी के नाम से भी जाना जाता है देश की सबसे जायदा पब वाले इस शहर में नाईट क्लब म्यूजिक और ड्रिंक की मस्ती में लोग डूबे रहते हैं


दिल्ली मुम्बई और बेंगलूर में नाईट क्लब में आने वाले युवा १०.००० रुपये तक एंट्री फीस देते हैं

ज्यादातर युवा सिर्फ़ सिगरेट पर ही २,००० रुपया महीना खर्च कर देते हैं

फाइव स्तर होटल्स में हर महीने ९० से १०० पार्टी आयोजित की जाती हैं और एक \व्यक्ति का यहाँ पर खर्च ३.००० से १०.००० रुपये तक आता है

भारत का लाटरी बाज़ार २५० रूपये है जिस में ५ % सिर्फ़ ऑनलाइन खाते में आता है हर रोज़ २ मिलियन से भी ज्यादा पेपर या ऑनलाइन टिकेट खरीदे जातेहैं वही यदि अनोपचारिक रूप से देखे तो जुए का बाज़ार ५०० रुपए अरब का है

नालेज कंपनी की एक रिपोर्ट के अनुसार ४५.00, 000 रुपए की वार्षिक आय वाला प्रत्येक परिवार हर साल कम से कम ४ .००.०००० रुपये अपने एशो आराम से जुड़ी चीजो पर आराम पर खर्च करता है जिस से यह बाज़ार ६४.००० करोड़ का बन चुका है

एक औसत भारतीय जोडा विदेश घूमने और छुट्टियां मनाने में १ .४१ लाख रुपया खर्च कर देता है

१६ से २५ साल की उम्र अवधि में लगभग ८ से १० मोबाइल बदल लिए जाते हैं

एक भारतीय शहरी युवा २००० रुपये अपने हेयर कट और ५००० रुपये अपने जूतों पर खर्च कर देता है

२५० से ३०० मिलियन मध्यम वर्गी परिवार अपनी कमी का १६.१% हिस्सा अपनी लाइफ स्टाइल प्रोडक्ट पर खर्च कर देते हैं ..
यह जानकारी आज के भारत के सोजन्य से :) है न हम तरक्की पर कितने :) क्या कहते हैं आप इसको पढ़ के :)

Tuesday, April 29, 2008

दिल में हो बुलंद होंसले तो हर मुश्किल आसान है

यदि दिल में होंसले बुलंद हो और जीने कि लौ दिल में जलती रहे तो हर ज़िंदगी की हर मुश्किल आसान लगने लगती है ..इसी दुनिया में रहने वाले कुछ लोग हमे वह राह दिखा देते हैं की लगता है अपना दुःख बहुत कम है और जीने के लिए जिस साहस की जरुरत है वह तो अपने दिल में ही कहीं छिपा है बस जरुरत है उसको जगाने की और उस होंसले से ज़िंदगी जीने की ..कौन भूल सकता है वह २६ सितम्बर २००६ का दिन जब सुनामी ने सब तहस नहस कर दिया था ..कितने लोग न जाने मौत की गर्त में अचानक से समां गए ..कितने गंभीर रूप से घायल हो गए ..हम तो सिर्फ़ अखबार या न्यूज़ में देखते पढ़ते रहे ..पर वही देख के दिल कांप गया जिन्होंने यह देखा और झेला है .उनका हाल क्या हुआ होगा यह अच्छे से समझा जा सकता है .एक ऐसे ही जीवट दिल की कहानी है यह ..नाम है इस का अजारी वह डॉ बनना चाहता है वह कहता है कि मैं जरुरत मंद लोगों के काम आना चाहता हूँ .पर अजारी पहले डॉ नही बनाना चाहता था उसके सारे सपने उसके प्रिय खेल फुटबाल के लिए ही थे .वह एक बहुत बड़ा फुटबॉलर बनाना चाहता था पर २६ सितम्बर को आए सुनामी ने उसके जीवन कि दिशा मोड़ दी ...उसने उस तूफ़ान में अपने माँ बाप भाई बहन सबको खो दिया और साथ ही उसका सपना भी उन तूफानी लहरों के साथ टूट गया इन लहरों ने उसका एक पैर भी उस से छीन लिया पर कुछ लोग यूं जीने में भी एक आशा का दीप जलाये रखते हैं और अजारी उन्ही में एक है ..परिवार में उसके सिर्फ़ दादा जी बचे हैं इतनी मुसीबतों के बाद भी अजारी ने हिम्मत नही हारी है ....रेड क्रॉस की सहायता से उसने एक बार फ़िर से अपने अन्दर जीने का विश्वास पैदा किया वह आज भी उसी जोश के साथ फुटबाल खेलता है .वह कहता है कि मैं जानता हूँ मैं अब फ़ुटबालर नही बन सकता ,लेकिन ज़िंदगी में इस से जायदा जरुरी और भी बहुत कुछ है मैंने अब अपनी नई मंजिल तलाश कर ली है मैं अब डॉ बनूँगा और लोगों की सेवा करूँगा उसका यह होंसला जगाने में रेडक्रॉस के साइकोलाजिकल सपोर्ट ने अजारी को ज़िंदगी जीने नया विश्वास दिया है और एक नई जीने की प्रेरणा ...

Wednesday, April 23, 2008

ज़िंदगी जीने का नाम है ...

जीने की जिजीविषा ..मुश्किलों से लड़ने की हिम्मत हो तो कोई काम मुश्किल नही होता है और मेरा मनाना है कि यदि ज़िंदगी आसान हो तो जीने का मज़ा ही क्या ? कुछ मुश्किल आएगी तो ही हमे जीने की प्रेरणा मिलेगी ..यही मुश्किलें हमे रास्ता दिखाती है आगे बढ़ने का .अब कोई इसको हंस के निभा लेता है कोई रो के ..और वक्त अपनी चाल चलता रहता है ...सबका अपना अपना तरीका है इस से निपटने का :) ....मेरे सामने जब कोई मुश्किल आती है तो मैं पहले एक बार तो परेशान जरुर हो जाती हूँ ..इंसान हूँ आखिर कोई एलियन तो नही.....फ़िर सोचती हूँ कि बेटा रंजू इसको सोच समझ के हंस के ही हल करना पड़ेगा नही तो सामने वाला आपको और कमजोर करेगा ...अपने आस पास देखे तो अपने से ज्यादा दुःख नज़र आते हैं ..मैं अपनी इसी श्रृंखला में आपको एक घटना बताती हूँ जो मैंने अभी हाल में ही एक न्यूज़ में पढी ...घटना आकलैंड की है लोग एक ताल के सामने हैरान से खड़े थे , बात ही कुछ ऐसी थी क्यूंकि सामने जो तैर रही थी वह जलपरी थी ..सब लोग हैरान परेशान से आँखे फाड़े उसको देख रहे थे ..दरअसल वह कोई जलपरी नही थी वहाँ की रहने वाली एक लड़की थी नाम था उसका नादिया .....अपने जीवन के पचास वर्ष पूरे कर चुकी नादिया को बचपन से ही तैरने का शौक रहा है लेकिन एक दुर्घटना में वह अपने दोनों पैर खो बैठी ..उन्होंने अपना पहला पैर सात साल की उम्र में ही खो दिया था जबकि दूसरा पैर सोलह वर्ष की उमर में खो दिया वह कुछ ऐसा काम करना चाहती थी जो कुछ चुनौती से भरा हुआ हो इतना कुछ होने पर भी उन्होंने अपनी हिम्मत नही खोयी ..और ही ख़ुद को कमजोर साबित होने दिया उन्होंने अपने बचपन के सपने को पूरा करने का निश्चय किया उन्होंने अपने दिल में ठान लिया की वह तेरेंगी ..बिना पांव के यह होना केवल मुश्किल था बलिक नामुमकिन भी था पर जहाँ चाह वहाँ राह तभी एक संस्था जिसने हालीवुड में फ़िल्म लार्ड आफ थे रिंग्स में स्पेशल इफेक्ट दिए थे वह उनकी सहायता के लिए तैयार हो गई उनके लिए उन्होंने एक जलपरी की संकल्पना तैयार की एक ख़ास तरह की पूंछ तैयार करवाई गई और इसकी सहायता से उन्होंने इस काम को अंजाम दिया नादिया ने तैरते वक्त अपनी खुशी का इजहार किया और कहा की मैं इस वक्त ख़ुद को जलपरी सा महसूस कर रही हूँ मेरे लिए यह अनुभव कभी भूलने वाला है .. ऐसे जीने वाले दिल दूसरो के लिए एक प्रेरणा बन जाते हैं ..और बता देते हैं अपने कामों से कि ज़िंदगी जीने का नाम है ...

रंजू भाटिया

Tuesday, April 08, 2008

ब्लाग्स की दुनिया में एक और मुकाम



अहमदाबाद टाइम्स की दीपिका साहू की नज़र से आज की ब्लॉगर महिला







http://epaper.timesofindia.com/Repository/ml.asp?Ref=VE9JQS8yMDA4LzA0LzA4I0FyMDI1MDM=&Mode=HTML&Locale=english-skin-custom




(B)Log in It’s time to revel in an addiction called blogging. And women of India can’t just have enough of it. AT checks out DEEPIKA SAHU Times News Network

From heartbreaks, travel joys, motherhood anxieties to recipes — the blogsphere seems to be the perfect place for the Indian women now to create, share and bond. The virtual world has become the latest meeting place for venting out one’s innermost feelings. And age is no bar in this ‘blogging business’.

Ask 45-year-old Ranjana Bhatia about her initiation into blogging, and she says with a laugh, “It’s my daughter who introduced me to blogging. I was always interested in writing but it was only meant for me. Through blogs, I discovered a whole new world and today I have five blogsites.” Interestingly, Bhatia has marked out different days in the week for different blogs and proudly claims that she can now “teach her daughter a thing or two about blogging”.

For many, it as a celebration of their own space and freedom. As says Frenchita R, a US-based medico, “It’s a celebration of I, me, myself. I cherish the freedom to write on any topic and find the interaction with fellow bloggers enriching.”

In the virtual world, there are no rules, no repressive social structures with fixed guidelines within which one can operate. There’s complete freedom to express one’s inner self. Move over lock and key diaries, blogsites are now becoming the urban woman’s new companion!

According to a survey, a phenomenally high number of women in India (51 per cent) use blogs to express their pent-up feelings. Whether sharing a photograph of your garden or granny’s favourite recipe, many women in India are now discovering new forms of companionship through their blog.

As says Tanushri Podder,

a self-confessed addictive blogger, “From travel writing to short stories, blogging comes across as a wide canvas. I also write on issues that angers me and I have developed a bonding with my fellow bloggers. Many young bloggers also ask for guidance from seniors like me.”

Tea exporter Sunita Chotiya today finds blogging more exciting than her business. As she says, “Every day I spend four to five hours on blogging. Even in my office, my mind wavers to the thought of my writing. It gives me a high expressing my thoughts through writing.”

And if you think that blogging is only limited to the Queen’s language, then you are wrong. In recent times, even regional languages are seeing an increase in the number of women bloggers. Ahmedabad-based media services company has been promoting blogging in Hindi and Gujarati.

As says Sanjay Bengani of the same company, “Our main aim was to provide a multi-lingual forum. Our Hindi bloggers have been very actively involved. The Non-Resident Gujaratis (NRGs) are having their share of connection to their roots through blogging in Gujarati.”

Money might be slow to come through blogging in India, but many of these women are getting their share of fame and recognition. As says Bhatia, who has also won an award in 2007 for her blogs, “I have gained confidence and constant feedback from readers have added an element of maturity to my writing. And we had a stall in the book fair at Pragati Maidan and I couldn’t believe myself when people actually asked me to give autographs.”

So, it’s time for some net gain!

deepika.sahu@timesgroup.com

Wednesday, March 19, 2008

प्रेम में स्वतंत्रता

आरकुट में कविता जी ने अमृता प्रीतम के प्रेम के बारे में विचारों को पढ़ा और यह सवाल मुझसे पूछा ..तो मुझे लगा की इस विषय पर कुछ विचार यहाँ लिखूं ..आप सब का भी स्वागत है इस विषय पर अपने विचार जरुर दे ..
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अभी अभी आपके अमृता प्रीतम वाले पार्ट को पढ़ा ...उसमें एक बात है कि अमृता जी ने कहा है कि वो और इमरोज़ एक दूसरे में लीन नही ..वरना प्यार करने वाला कौन रहेगा ...इस बारे मेरी ऑरकुट पर बहुत लोगों से चर्चा करने की कोशिश की..किसी ने ख़ास इंटेरेस्ट नही लिया आप बताएं..प्रेम में स्वतंत्रता ...इस बारे में आप क्या सोचती हैं ??एक प्रेम मीरा का था ...जहाँ 'तू' ही था मीरा समाप्त हो गयी थी ...कहते हैं ना प्रेम गली आती सांकरी ता में दो ना समाए..??...किंतु स्वतंत्रता की बात करें तो उसकी सीमा क्या होगी...सोचियेगा और बताइयेगा ...फिर मैं बताऊँगी कि मुझे क्या लगता है??


कविता जी सबसे पहले आपने इसको इतने ध्यान से पढ़ा और समझा उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया ...बहुत ही अच्छा सवाल है जो आपके जहन में आया है ..प्रेम में स्वतंत्रता ...बहुत जरुरी है क्यूंकि प्रेम बन्धन या बंधने का नाम नही है .प्रेम वही है जो एक दूसरे को समझे उसको वैचारिक आजादी दे ..प्रेम के बारे में इस से पहले मैं इसी ब्लॉग में ढाई आखर प्रेम के लिख चुकी हूँ ..अमृता जी यदि यह कहती है प्रेम में लीन नही इसका मतलब सिर्फ़ इस बात से है कि प्रेम किसी को अपने बन्धन में बांधने की कोशिश नही है ,यह तो एक दूसरे को समझने और जानने और उनके विचारों को भी उतनी ही आजादी देने का नाम है जितनी की अपनी .अमृता ने इमरोज़ को .वैचारिक .आजादी अपनी सोच की आजादी दी और इमरोज़ ने उन्हें ..दोनों ने कभी एक दूसरे के ऊपर ख़ुद को थोपा नही कभी ....शायद तभी .शायद अमृता जी की यही प्रेम की कशिश थी आजादी थी जो मैंने इमरोज़ जी की आंखो में उनके जाने के बाद भी देखी ....

पर आज कल कौन इस बात को समझ पाता है समय ही ऐसा आ गया है कि लोग प्रेम को सिर्फ़ अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करते हैं स्वार्थ वश दोस्ती करेंगे और मतलब के लिए प्यार केवल अपने लिए सोचेंगे और अपना मतलब पूरा होते ही गिरगिट की तरह रंग बदल लेंगे ,,

अब आती है मीरा के प्यार की बात ..प्यार के लिए सबका अपना अपना नजरिया है कोई इस में डूब के पार लगता है तो उस में बह के ...फर्क सिर्फ़ समझने का है ..यहाँ न अमृता के प्यार को कम आँका जा सकता है न मीरा के ..दोनों ने अपने अपने तरीके से प्यार के हल पल को जीया और भरपूर जीया ....

मेरी नज़र में प्यार वही है जो देहिक संबंधों से ऊपर उठ कर हो .प्रेम देह से ऊपर अध्यात्मिक धरातल पर ले जाता है और प्रेम की इस हालत में इंसान कई प्रकार के रूप लिए हुए भी समान धरातल में जीता है ..प्रेम की चरम सीमा वह है जब दो अलग अलग शरीर होते हुए भी सम्प्दनों का एक ही संगीत गूंजने लगता है और फ़िर इसका अंत जरुरी नही की विवाह ही हो ..प्रेम हर हालात में साथ रहता है .मीरा के प्रेम की सिथ्ती अध्यात्मिक थी वह उस परमात्मा का अंश बन गई थी उसी का रूप बन गई थी जहाँ कोई भेद नही ...कोई छुपाव नही ...


यह मेरे अपने विचार है ..प्रेम क्या है इस के बारे में सबके मत अपने अपने हो सकते हैं ..कविता जी मुझे आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा ..शुक्रिया

Saturday, February 16, 2008

पुस्तक मेला और हिंद युग्म ..की कामयाबी

२ फरवरी जब यह पुस्तक मेरा शुरू हुआ तो एक जोश था इस बार इस मेले का ...मैं दिल्ली पुस्तक मेला हो या यह विश्व पुस्तक मेला जरुर जाती हूँ और जब तक लगा रहता है कई बार जाती हूँ ...किताबो की जादू नगरी लगती है मुझे जहाँ बेसुध हो के पुस्तक संसार में खोया जा सकता है ...पर इस बार इस मेले में मैं सिर्फ़ इस बार मैं सिर्फ़ पुस्तके देखने नही गई थी बलिक इस मेले में शिरकत करने वाला हिंद युग्म से जुड़ी हुई थी ..जोश हम सब में भरपूर है और जनून है हिन्दी भाषा को हिन्दी साहित्य से लोगो को जोड़ना ..और ३ फरवरी को विमोचन के बाद लोग हमे तलाशते हुए हमारे स्टैंड तक आए ...कोई उम्र की सीमा से नही बंधा हुआ ..यदि आज की युवा पीढ़ी हिन्दी से जुड़ना चाहती थी तो उम्र दराज़ लोग भी पीछे नही थे .सबसे अच्छा लगा जब कई जाने माने लेखक उदय प्रकाश जी ने हमारे इस प्रयास को सराहा और हमारे होंसले को बढाया .मीडिया वालो ने हमारी इस कोशिश को जन जन तक पहुचाने में अहम् भूमिका निभाई हम जिस उद्देश्य को ले कर यहाँ सब आए थे आखरी दिन पर उसकी कामयाबी की खुशी हम सब के चेहरे पर थी ..