रंग चैत्र के ...
चैत्र का महीना बदलाव का महीना है , नए रंग में कुदरत जैसे खुद से मिला कर सम्मोहित करती है।
अमृता ने इसी महीने से जुड़ा बहुत कुछ लिखा जो अद्भुत है। मुझे भी यह महीना बहुत ही आकर्षित करता है ।
चैत्र...
अमृता प्रीतम की रचनाओं में चैत्र बहुत खूबसूरती से रचा बसा है। इस चैत्र का महत्व उनकी कविता में क्यों और कैसे है। इस संबंध में अमृता ने लिखा है__
"साहिर को मिलने से पहले मेरे जीवन में सिर्फ रिक्तता थी।रिक्तता को किसी तिथि या ऋतु से नहीं जोड़ा जा सकता,पर साहिर से जब मुलाकात हुई वह चैत्र का महीना था। पहली बार भी और आगे एक चमत्कार की तरह ,कई बार ।"
जब वह पहली बार मिला मेरी उम्र बीस या इक्कीस वर्ष की थी। दीवानगी का आलम तब भी देखा था, पर जब मेरी मोहब्बत ने दीवानगी के शिखर को छू लिया,वह 1953 के चैत्र में घटित हुआ।उसका मिलन था।इस मिलन में से मैने " सुनहेडे" संग्रह की सभी कविताएं लिखी। केवल एक कविता को छोड़ कर । जबकि यह पुस्तक 1955 में प्रकाशित हुई पर उसके आरंभिक पेज पर 1953 के नाम पर " लिखा है।
कई चैत्र ऐसे भी आए,जब उससे मिलन नहीं हुआ,पर ऐसे जैसे चैत्र के महीने में चैत्र न आया हो। कविताएं हर चैत्र में लिखीं और फिर लिखने का प्रत्येक समय मेरे लिए चैत्र हो गया। इसी कारण आज उन सभी कविताओं को जिनमें मेरी मोहब्बत की दीवानगी है, चैत्र नामा भी कह सकती हूं।( मैं जमा तू)
इस तरह अमृता की कविता में चैत्र एक प्रतीक की तरह फैलता है और उसकी सम्पूर्ण कविता की प्रतीकात्मक योजना में विशेष महत्व का बन जाता है।
जैसे ....
1
चैत्र ने पासा मोड़िआ
रंग दे मेले वास्ते फुल्ला ने रेशम जोड़ियां
तू नहीं आइया...
हिंदी अनुवाद
चैत्र ने करवट बदली
रंगों के मेले के लिए
फूलों ने रेशम जोड़ा
तू नहीं आया।
2) चैत्र दा वंजारा आइआ
बुचकी मोढ़े चाई वे।
असी विहाझी पिआर कथुरी
वेहंदी रही _ लुकाई वे।
हिंदी अनुवाद
चैत्र का बंजारा आया
गठरी कंधे पर उठाए
हमने खरीदी प्यार कस्तूरी
देखता रहा ,पूरा लोक।
3/
पंजा उत्ते है वीह सौ पंज समंत
चढ़िआ चैत्र महीने ते होई नावी
हत्थी आपणी लिखे सुनेहडे मैं _
हत्थी आपणी आप वसूल पावीं।
हिंदी अनुवाद
पांच ऊपर है बीस सौ पांच सम्वत
चढ़ा चैत्र का महीना हुई नौवीं
अपने हाथ से लिखे संदेश मैने
अपने ही हाथों से उन्हें वसूल पाना।
4)
चैत्र ने बूहा खड़काइआ
अज्ज दा गीत इस तरा बणिआ।
चैत्र ने द्वार खटखटाया
आज का गीत इस तरह बना।
5)
वहीआं लै के चैत्र आइआ
सज्जी अक्ख जिमी दी फरकी।
बही खाते को लेकर चैत्र आया
दाईं आंख जमीं की फड़की।
6
एक चैत्र दी पुनिआं सी
कि चिट्टा दुध मेरे इश्क दा घोड़ा
देशा ते बदेशां नू गाहण तुरिया ( चैत्र नामा)
एक चैत्र की पूर्णिमा थी
कि सफेद दूध सा मेरे इश्क का घोड़ा
देश विदेश को नापने चला।
अमृता ने प्रेम से जुड़ी अपनी सभी कविताओं को " चेतरनामा"कहा।इसी कारण चैत्र का प्रतीक इन कविताओं का स्थाई हिस्सा बना।
यह प्रतीक कविता में फैलते हैं और अर्थ की बहु दिशाओं की ओर संकेत करतें हैं।अमृता का काव्य शिल्प इन प्रतीकों के सामर्थ्य और उसके विश्वास के साथ जुड़ा हुआ है। यह प्रतीक विधान उसका संदेश बनता है।वह कहती है__
नवीं रूत्त दा कोई संदेश देवां
ऐस कानी दी लाज नूं पालणा वे। ( सुनेहड़े)
( नई ऋतु का कोई संदेश दूं/ इस कलम की लाज को पालना है।)
तो इस संदेश में प्रतिकात्मक दृष्टि से रात से लेकर प्रभात के सूर्य तक सपनों से निकलते हुए एक यात्रा है। इसलिए कई बार वह इस प्रतीक विधान के उस संदेश से जुड़ते हुए कहती है__
रात है काली बड़ी
उम्रां किसे ने बालीआं
चन सूरज कहे दीवे
अजे वी बलदे नहीं।
रात है काली बड़ी
उम्र किसी ने जलाई
चांद सूरज कैसे हैं दीपक
अभी भी जलते नहीं।
इसी के साथ अमृता के लिए सशक्त कविता की शक्ति आज़ादी का एहसास देने में है।उन्होंने रसीदी टिकट में लिखा
आग की बात है, तूने ही यही बात कही थी। लिख कर ऐसा लगा जैसे चौदह वर्ष का वनवास भोग कर स्वतंत्र हूं।
5 comments:
चैत्र ने करवट बदली
रंगों के मेले के लिए
फूलों ने रेशम जोड़ा
तू नहीं आया।
अमृता प्रीतम को प्रेम का पर्याय ही कहा जा सकता है, उनकी इतनी प्यारी रचनाओं को पढ़वाने के लिए शुक्रिया रंजू जी!
बहुत सुंदर रचनाएं है । आदरणीय ।
बहुत ही सुंदर
मनोरम, पठनीय अभिव्यक्तियाँ ।
Hello mate nicee post
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