संदेशे तब और अब ......डाकिया डाक लाया
यूँ ही बैठे बैठे
याद आए कुछ बीते पल
और कुछ ....
भूले बिसरे किस्से सुहाने
क्या दिन थे वो भी जब ....
छोटी छोटी बातों के पल
दे जाते थे सुख कई अनजाने
दरवाज़े पर बैठ कर
वो घंटो गपियाना
डाकिये की साईकल की ट्रिन ट्रिन सुन
बैचेन दिल का बेताब हो जाना
इन्तजार करते कितने चेहरों के
रंग पढ़ते ही खत को बदल जाते थे
किसी का जन्म किसी की शादी
तो किसी के आने का संदेशा
वो "काग़ज़ के टुकड़े" दे जाते थे
पढ़ कर खतों की इबारतें
कई सपनों को सजाया जाता जाता था
सुख हो या दुख के पल
सब को सांझा अपनाया जाता था
कभी छिपा कर उसको किताबों में
कभी कोने में लटकती तार की कुण्डी से
अटकाया जाता था
जब भी उदास होता दिल
वो पुराने खत
महका लहका जाते थे
डाकिये को आते ही
सब अपने खत की पुकार लगाते थे
पर अब ....
डाकिया ,बना एक कहानी
रिश्तों पर भी पड़ा ठंडा पानी
अब हर सुख दुख का संदेशा
घर पर लगा फोन बता जाता है
रिश्तों में जम गयी बर्फ को
हर पल और सर्द सा कर जाता है
अब ना दिल भागता है
लफ़्ज़ों के सुंदर जहान में
बस "हाय ! हेलो ! की रस्म निभा कर
लगा जाता है अपने काम में ...
9 comments:
आपकी लिखी रचना सोमवार 10, अक्टूबर 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
स्मार्ट फोन के युग में खतोकिताबत की बात कौन करता है, पर जो कुछ भी हो चिट्ठियों का वो स्वर्णिम युग बहुत याद आता है ।
बहुत सुंदर सराहनीय रचना ।
स्मृतियों के पन्ने पर लिखी इबारतें जीवंत हो उठीं।
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
सादर।
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-10-22} को "डाकिया डाक लाया"(चर्चा अंक-4578) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
सचमुच कहानी बन गयी चिट्ठी पत्री
बहुत सुन्दर स्मृतियों का ताना बाना।
बहुत ही बढ़िया पुराने दिनों की याद दिला दी
बहुत सुन्दर
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
चिट्ठी लिखना भी एक कला थी । डाकिए का शायद सबसे ज्यादा इंतज़ार हुआ करता था । अब तो सब भूली बिसरी बात हो गयी ।
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