कुछ साल पहले "हिंद युग्म" के "बाल उद्यान" भाग में "दीदी की पाती" नाम से एक सीरीज शुरू की थी । वह बहुत पसंद की गई। न केवल बच्चों ने उसको पसंद किया ,बड़े भी उस पाती का बहुत इंतजार करते थे। बच्चों के साथ रहना उनके लिए लिखना मुझे विशेष रूप से पसंद है। अब उनके लिए एक यू ट्यूब चैनल शुरू किया है । आप सब का सहयोग चाहिए । चूंकि अब दीदी भी दादी बन गई हैं तो इसका नाम भी बदल दिया। पर बातें कहानियां वही रोचक हैं। 😊 देखे सुने और लाइक सब्सक्राइब करें।
फ़िर से आई दादी की पाती ...नई मजेदार बात सुनाती :)
दादी की पाती
कैसे हैं आप सब ?.
इस बार "दादी की पाती "आपके लिए ले के आई है और नयी रोचक जानकारी
आप के पास साईकिल है ना ? ख़ूब चलाते होंगे आप..कितना मज़ा आता है
इसको चलाते हुए जब यह हवा से बातें करती है .बहुत अच्छा लगता है न..पर कभी आपने
सोचा है की यह साईकिल बनाई किसने ? चलो आज आपको इसके बनाने की मज़ेदार
कहानी सुनाते हैं ..
फ़्राँसे में मोशिए दे सिवरांक नाम का एक बालक था उसको चार पहियों वाला घोड़े का खिलौना बहुत पसंद था,,उस दिन उसका जन्म दिन था उसके पापा ने उसको शाम को एक डिब्बा दिया उसने झटपट उसको खोला तो वही घोड़े का खिलौना निकाला
उस में चार पहिए लगे थे वह इसको पा कर इतना ख़ुश हुआ की जैसे उसके अपने पैरों में मानो पहिए लग गये हो
कुछ ही दिनों में वह घोड़ा उसका सबसे प्यारा खिलोना बन गया वो उसके साथ तरह तरह के खेल खेलता और अपनी कल्पना में ही उस में बैठ के सवारी करता लेकिन वह घोड़ा इतना छोटा था की वो उस पर बैठ नही सकता था
जब उसके पापा ने उस को इस तरह उसको उस खिलौने के साथ खुश देखा तो उन्होने सोचा की वो उसको एक ऐसा लकड़ी का घोड़ा बना के देंगे जिस पर वो बैठ भी सके और एक दिन उन्होने उस को लकड़ी का घोड़ा बनवा के दिया उसको देख के तो मोशिये खुशी से झूम उठा और उस पर बैठ के उस के लगे पहियों के सहारे लुढकने लगा उस को यह खेल बहुत मजेदार लगा
अब मोशिए धीरे धीरे बड़ा होने लगा, वो उस खिलौने से खेलने की उम्र पार कर चुका था पर वह बड़ा हो कर भी अक्सर सोचता की कोई ऐसी सवारी बने जो घोड़े जैसी हो क्यों कि वो अब उस घोड़े की सवारी का मज़ा नही भुला था
आख़िर एक दिन मोशिए का यह सपना सच हो गया उसने उस घोड़े के खिलौने के आधार पर ही एक सवारी बनाई उस में केवल दो पहिए लगाए उस पर लकड़ी की एक सीट बनाई और अपने पैरों से उसको लुढकाता हुआ चल पड़ा जिसने भी देखा उसका दिल किया उस पर बैठने का !
कुछ ही दिनों में यह लोगो के मनोरंजन का खेल बन गयी इसका नाम रखा गया "वेलासिफे रोज" कुछ दिनों में यह कई वैज्ञानिकों की नज़र में आई जर्मन इंजीनियर '"बेनवान ड्रेस "'ने मोशिए के खिलोने के आधार पर एक ऐसी मशीन बनाई जिस में दो पहिए थे ,यह पहिए आज कल की साईकिल के बराबर थे डंडे पर एक छोटी सी गद्दी लगी थी यही साईकिल का पहला शुरूआती रूप था
चालीस साल बाद इंग्लेंड के मैकमिलन नामक एक लुहार ने" ड्रेस "जैसी साईकिल बनाई पर उस में उसने पैडल लगाए इन पैडल को डंडे के सहारे पिछले चाके के धुरे[पहिए] से मिला दिया ,इन्हे पैरों से चलना पड़ता इस साईकिल का अगला पहिया छोटा था और पीछे का बड़ा ,इस में बैठने के लिए एक गद्दी लगी थी
फिर धीरे धीरे साईकिल के सभी पुरजों में सुधार होता गया "रुशो "नामक एक आदमी ने इस में पतले पतले स्पोक यानी सलाइयां भी लगाई सबसे अधिक सुधार किया इस में ''जे. बी .डनलप"' ने उन्होने इसमें हवा वाले पहिए लगाए
अब तो कई तरह की साईकिल बनने लगी सर्कस की साईकिल ..रेस की साईकिल , मोटर साइकल आदि आदि
आज तो साईकिल सब जगह है क्या गांव ,क्या शहर यह सब जगह आसानी से चल जाती है बहुत से साहसी लोग तो इस पर पूरी दुनिया घूमने भी निकल पड़ते हैं
लेकिन आज की साईकिल देख के भला कौन सोच सकता है की यह एक बच्चे की खिलौने की कल्पना का फल है ..यदि उसने ना सोचा होता तो साईकिल इतनी जल्दी ना बनती ..है तो यह थी साईकिल बनने की मजेदार कहानी :) सोचो सोचो !!आप भी कुछ सोचो ,क्या पता कल आप भी मोशिए की तरह तरह कोई नया आविष्कार करें .और वह आविष्कार आपको महान बना दे
और इस पाती से शुरू करेंगे हम एक नई रोचक जानकारी :)...क्या आप जानते हैं की संसार की सबसे छोटी मोटर साइकिल किसने बनायी ,,? वो थे क्लाइव विलियम और साइमन टिम्परले यह दोनों इंजीन्यर थे इस मोटर साइकिल की सीट १०.१९ सेंटीमीटर और सीट के साथ ऊंचाई ४९ सेंटीमीटर है इसकी विशेष बात यह है की इस को बडे और बच्चे दोनों चला सकते हैं ..है न मजेदार बात :)
अब चलती हूँ लेकिन अपनी दादी को बताना ना भूलना की यह जानकारी आपको कैसी लगी
फिर मिलूंगी आपसे अपनी अगली पाती में एक और नयी रोचक जानकारी के साथ
बस आप इंतज़ार करें मेरी अगली पाती का और ध्यान रखें अपना ..अच्छा पढें और ऊँचा सोचें:)
बहुत बहुत शुभकामना और ढेर सारे प्यार के साथ आपकी दादी
3 comments:
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-9-22} को "हिन्दी है सबसे सरल"(चर्चा अंक 4551) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
खेल खेल में साइकल की खोज कैसे हुई बताना मनोरंजक लगा।
आप का शुक्रिया ज्योति जी , आप मेरे ब्लॉग की दस हजारी टिप्पणी देने वाली बनी 😊❤️
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