Saturday, September 10, 2022

एक सच

 


एक सच ..ज़िन्दगी के रंग का ..


कहा उन्होंने चाँद तो ,

चांदनी बन मैं मुस्कराई

उनकी ज़िन्दगी में ....


कहा कभी उन्होंने सूरज तो

रोशनी सी उनकी ज़िन्दगी में

जगमगा कर छाई मैं ...


कभी कहा मुझे उन्होंने

अमृत की बहती धारा

तो बन के बरखा

जीवन को उनके भर आई मैं


पर जब मैंने माँगा

उनसे एक पल अपना

जिस में बुने ख़्वाबों को जी सकूँ मैं

तो जैसे सब कहीं थम के रुक गया ..

तब जाना....

मैंने कि ,

मेरे ईश्वर माने जाने वाले

ख़ुद कितने बेबस थे

जो जी नही सकते थे

कुछ पल सिर्फ़ अपने

अपनी ज़िन्दगी के लिए!!


धूप का टुकड़ा



9 comments:

विश्वमोहन said...

बहुत सुंदर!!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी लिखी रचना सोमवार 12 सितम्बर ,2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी लिखी रचना सोमवार 12 सितम्बर ,2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१२-०९ -२०२२ ) को 'अम्माँ का नेह '(चर्चा अंक -४५५०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

Amrita Tanmay said...

परजीवी देना क्या जाने।

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

बेवश नहीं अकिंचन जो आपसे सब मनचाहा पाकर भी देने के लिये कुछ पास नहीं

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

बहुत सुन्दर कविता

Sweta sinha said...

सचमुच ऐसे लोग बेबस ही होते हैं।
बेहतरीन मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति।

Sudha Devrani said...

इतने बेबस ईश्वर कैसे ह़ो सकते हैं ....ये मानने वाले की भूल है ।
फिर भी माना जाता है
लाजवाब सृजन।