एक सच ..ज़िन्दगी के रंग का ..
कहा उन्होंने चाँद तो ,
चांदनी बन मैं मुस्कराई
उनकी ज़िन्दगी में ....
कहा कभी उन्होंने सूरज तो
रोशनी सी उनकी ज़िन्दगी में
जगमगा कर छाई मैं ...
कभी कहा मुझे उन्होंने
अमृत की बहती धारा
तो बन के बरखा
जीवन को उनके भर आई मैं
पर जब मैंने माँगा
उनसे एक पल अपना
जिस में बुने ख़्वाबों को जी सकूँ मैं
तो जैसे सब कहीं थम के रुक गया ..
तब जाना....
मैंने कि ,
मेरे ईश्वर माने जाने वाले
ख़ुद कितने बेबस थे
जो जी नही सकते थे
कुछ पल सिर्फ़ अपने
अपनी ज़िन्दगी के लिए!!
9 comments:
बहुत सुंदर!!!
आपकी लिखी रचना सोमवार 12 सितम्बर ,2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
आपकी लिखी रचना सोमवार 12 सितम्बर ,2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१२-०९ -२०२२ ) को 'अम्माँ का नेह '(चर्चा अंक -४५५०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
परजीवी देना क्या जाने।
बेवश नहीं अकिंचन जो आपसे सब मनचाहा पाकर भी देने के लिये कुछ पास नहीं
बहुत सुन्दर कविता
सचमुच ऐसे लोग बेबस ही होते हैं।
बेहतरीन मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति।
इतने बेबस ईश्वर कैसे ह़ो सकते हैं ....ये मानने वाले की भूल है ।
फिर भी माना जाता है
लाजवाब सृजन।
Post a Comment