Friday, July 01, 2022

अंत में होंगे हम दोनो ही ( लास्ट एपिसोड किस्से घुमक्कड़ी के )

 

किस्से घुमक्कड़ी के


मध्यप्रदेश का मांडू गुजरे वक्त की यादों को ताज़ा करने की कोशिश



जीवन चलते रहने का नाम है। जब शादी हुई तो घूमना पतिदेव के साथ ही होता था, कुछ साल तक यही सिलसिला रहा ,कुछ यात्राएं सास ससुर के साथ हुई । फिर बराबर के सब बच्चे बहनों के भी थे तो बहनों और बेटियों के साथ घूमना सहज आसान लगने लगा। काफ़ी यात्राएं छोटी बड़ी हमने की। और हर यात्रा को खूब एंजॉय किया। 

 मध्यप्रदेश मांडू और इंदौर देखने का बहुत मन था पर उस वक्त कुछ चांस ऐसा बना कि सिर्फ हम दोनो का प्रोग्राम बना ,अब इतने टाइम से जो बड़े ग्रुप में घूमने की आदत बन गई थी वो मुझे कुछ असहज सी कर रही थी , कि या तो इस बन्दे के साथ चुपचाप जाओ तो फिर उसमे कोई हंसी मजाक शरारत नहीं होगी  । इतने सालों में जो साथ ना घूमने की  जो आदत बन गई थी वो भी दिल दिमाग पर हावी थी। पर बस यह लग रहा था कि  वो जगह सही से एक्सप्लोर हो जायेगी भले ही वो बच्चों के साथ वाली मस्ती नहीं होगी। 


 सो इस तरह फिर से कई सालों बाद यह हम दोनो का ट्रिप बना। और वो जैसे मेरा मेरे साथ ही ट्रिप था ,खुद से ही खुद को घुमाने का अच्छा अनुभव , यह अब  मेरे यादगार ट्रिप में से एक बन गया है। ऐसे ट्रिप हम तभी एंजॉय कर सकते हैं जब जो भी उम्मीद खुशी हो खुद से हो साथ चलने वाले पार्टनर से नहीं। पर साथ वाले बंदे की आपके ट्रेवल में इतनी प्रेजेंस होनी जरूरी है कि आपको सुरक्षा का एहसास बना रहे । वही  इस ट्रिप की मुख्य बात है । नहीं तो या तो पार्टनर बिलकुल ही चुप है या ओवर एक्सटाइटेड है तो ट्रिप भी सहमा सा मूडी ही रहता है। 


इस ट्रिप का जो एक बहुत बढ़िया हिस्सा जो मेरी  याद में रह गया कि  महेश्वर में हमारी बुकिंग नर्मदा नदी के पास रिजॉर्ट में थी, रात के खाने के बाद वहां कुछ देर किनारे पर जो रिजॉर्ट ने कुछ नदी के पास वाला एरिया कवर कर रखा था वहां बैठ गए। कुछ देर में वहां का मैनेजर भी वहां आया ,चूंकि हम दोनो ही उस वक्त वहां अकेले बैठे थे तो शायद वो भी कुछ बातें करने के मूड में था ,उसने बोला भी कि वो कुछ वक्त से अपनी फैमिली और बच्चों से दूर यहां ड्यूटी पर है ,उनको मिस कर रहा है, तो बातों का सिलसिला चल पड़ा । 


वो वहीं मध्यप्रदेश से था तो उसने हमें वहां की और जगह की जानकारी दी । मध्यप्रदेश बहुत बड़ा है आप एक बार में उसको कवर नहीं कर सकते तो उन्होंने हमें गाइड किया कि अपने अगले ट्रिप में कैसे कौन सी जगह ले कर इस को घूम सकते हैं। और भी बहुत सी जानकारी मिली। कहां रुकने का सही रहेगा , ओरछा के साथ झांसी ,ग्वालियर ले सकते हैं । और भी कई इस प्रदेश से जुड़ी रोचक कहानियां जो सिर्फ वहां के लोकल बाशिंदे ही बता सकते हैं बताई । इस तरह की बातें करते सुनते हमें  रात के तीन बजे तक बैठे रहे ,टाइम का पता ही नहीं चला। वो वक्त वाकई बहुत बढ़िया था ,ठंडी हवा ,नर्मदा का किनारा और हल्की चांद की रोशनी और अजीब सी बेफक्री यादों में रह गई। 

अब यदि मैं सोलो ट्रिप या सिर्फ लेडीज ट्रिप जो हम अक्सर बनाते हैं या मान लो  परिवार के सदस्यों के साथ होती तब तो इतनी देर हम न बैठते , क्यूंकि जब आप फैमिली के अन्य सदस्यों के साथ होते हैं तो सबको देखना पड़ता है , और मेरे ख्याल से यूं हर सदस्य को अंजान इंसान से इतनी बातें करना पसंद न हो। तो इस ट्रिप का यही प्लस पॉइंट रहा कि आपका पार्टनर बेशक यूं घूमने में सहज न रहा हो ,की उसको बहुत चुपचाप से ट्रेवलिंग पसंद हो पर इस तरह से बहुत बढ़िया रहा । 

आप जब बाहर निकलते हैं तो बेहतर ढंग से बातों को समझ पाते हैं और यदि अधिक बोलने वाले नहीं भी है तो आप के साथ सुरक्षा तो है और आप खुद के साथ उस ट्रिप को एंजॉय भी कर लेते हैं। और वो कई जाले जो अनजाने में ही रिश्ते के   बीच में आ जाते हैं वो भी दूर हो जाते हैं।  आप आसानी से एक दूसरे के साथ कनेक्ट हो जाते हैं। शायद जो अक्सर साथ घूमने वाले जाते हों वह मेरी बात से सहमत न हो पर कुछ तो मेरे जैसे भी होंगे ।🙂

 खैर इस ट्रिप के बाद अब हम सहज ढंग से वापिस साथ घूम सकते हैं ,यही इस ट्रिप की यादगार देन है। तो यह थी मेरी कुछ यात्राओं की खट्टी मीठी यादें किस्से । यात्रा तो अनवरत चलती रहती है ज़िंदगी की भी और उसके बीतते पलों में यादों की भी। वक्त भी हर पल बदलता है। जीवन का सफर यूं ही यात्रा की तरह उतार चढ़ाव लिए होता है। इस यात्रा में साथी मिलते हैं सहज होते हैं घूमते हैं और फिर अगले ही किसी ट्रिप में वही दूरी भी बना लेते हैं। और तब यहीं समझ आता है कि पिछले सफर के साथी अब अपनी जिंदगी में बिजी रहेंगे और अपने हिसाब से अब यात्राएं प्लान करेंगे ,जिसमें कोई होगा और कोई नहीं रहेगा । और अपने अब आगे की यात्राओं के लिए एक किसी अज्ञात की लिखी कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं जो अभी इसी सीरीज को यहीं रोकने के लिए कहती हुई बहुत सुंदर संदेश देती लग रही है 



अन्त    ही 

11 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-07-2022) को चर्चा मंच     "उतर गया है ताज"    (चर्चा अंक-4478)     पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुकून भारी यात्राओं का खूबसूरती से वर्णन किया है । किसी के चुप रहने को भी बड़ा पॉज़िटिव लिया है ।
यात्राएँ चलती रहनी चाहिएँ ।

रंजू भाटिया said...

धन्यवाद संगीता जी ,आपका साथ इस पूरे सफर में मेरा होंसला बढ़ाता रहा ।

Anonymous said...

हमारा भी वही हाल है । घुमने का प्लान बनाने से लेकर बुकिंग करना वो जगह घुमाना और सब मजे करने की जिम्मेदारी भी मेरी ही होती है । कई षालो से सोलो ट्रिप का सोच रहे है बन ही नही रहा । Anshumala

Onkar said...

बहुत सुंदर

सु-मन (Suman Kapoor) said...

सुंदर यात्रा वृतांत

मन की वीणा said...

बहुत सुंदर संस्मरण।
एक अलग सा पर केयरिंग साथ भी सुंदर अहसास देता है।

रंजू भाटिया said...

😊🙏

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया

रंजू भाटिया said...

धन्यवाद

anshumala said...
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