Tuesday, August 27, 2019

कुछ बीते लम्हों की याद स्त्री मन के साथ ( भाग 3)

एक स्त्री मन से खुद की बात करते हुए ,में बात थी स्त्री के अंदर एक "मोनालिसा" छिपी रहती है ,जो अकेले में खुद से अपने दर्द को बांटती है। फिर कुछ मायूस ,कुछ खुशी का इजहार करते हुए कहती है कि ज़िन्दगी अभी बाकी है । और फिर उन्ही बाकी पलों को जीने के लिए
बीते हुए लम्हों को याद करती है । आज के इस भाग 3 में इन्ही बीते लम्हों से उस स्त्री मन को बाते करते हुए जानेंगे ।
       कुछ नियम समाज के ठेकदारों ने और पुरहितों ने मिल कर बनाए जिस में पुरूष को देवता औरत का ईश्वर बता कर उसको भाग्य का लेखा "ईश्वर की " इच्छा,  विधि का विधान "आदि नाम दे दिए .उसी प्रकार के शलोक भी बना दिए  इसी समाज ने कहा कि स्त्री का पति ईश्वर का स्वरुप है ", उसके पांव छुओ उसकी झूठन खाओ और अपनी इच्छा इच्छाओं के सारे साधन जुटा कर नारी को दिया सरंक्षण । ..नारी दया माया ममता सेवा गुणों से संपन होते हुए भी एक पदार्थ बन कर रह गई वह अपनी ज़िन्दगी में उस हर पल को जीने की कामना करने लगी जिसमे वह दिल से हंस सके ,खिलखिला सके 

बहुत दिन हुए ...

एक लम्हा दिल फिर से
उन गलियों में चाहता है घूमना
जहाँ धूल से अटे
बिन बात के खिलखिलाते हुए
कई बरस बिताये थे हमने ..
बहुत दिन हुए ...........
फिर से हंसी कि बरसात का
बेमौसम वो सावन नहीं देखा ...

बनानी है एक किश्ती
 कापी के पिछले पन्ने से
और पुराने अखबार के टुकडों से
जिन्हें बरसात के पानी में
किसी का नाम लिख कर
तैरा दिया करते थे ...
बहुत दिन हुए .....
गलियों में वो छपाक करते हुए
दिल ने वो भीगना नहीं देखा .....

एक बार फिर से बनानी है
टूटी  हुई चूडियों कि वो लडियां
धूमती हुई वह गोल फिरकियाँ
और रंगने हैं होंठ फिर..
रंगीन बर्फ के गोलों
और गाल अपने
गुलाबी बुढ़िया के बालों से
जिनको देखते ही
मन  मचल मचल जाता था
बहुत दिन हुए ..
यूँ बचपने को .....
फिर से जी के नहीं देखा
और एक बार मिलना है
उन कपडों कि गुडिया से
जिनको ब्याह दिया था
सामने वाले खिड़की के गुड्डे से
बहुत दिन हुए ..
किसी से यूँ मिल कर
दिल ने बतियाना नहीं देखा ..

बस एक ख़त लिखना है मुझे
उन बीते हुए लम्हों को
वापस लाने के लिए
बहुत दिन हुए ..
यूँ  दिल ने
पुराने लम्हों को जी के नहीं देखा ....

1 comment:

रंजू भाटिया said...

धन्यवाद जी