नहीं खरीद पाती
बीतती रातों से
अब कोई ख्वाब
यह आँखे
उफ़ !!!
यह
नींद भी
अब कितनी
महंगी है .........
**********************
क्यों आज कल
हर पल रहती है
मेरी आँखे
नींद से बोझिल
क्या कोई ख्वाब
मेरी आँखों में भी
समां गया ?
*******************
कह गये थे
तुम ख्वाबो को
चुपके से चले आना
आँखो में
पर
निगोड़ी नींद भी
तेरे जाते ही यह मुझसे बेवफ़ा हो गई
कह गये थे
तुम ख्वाबो को
चुपके से चले आना
आँखो में
पर
निगोड़ी नींद भी
तेरे जाते ही यह मुझसे बेवफ़ा हो गई
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आ जाएगी नींद तो
सो जायेंगे
तेरी बाहों के घेरे में
हम सकून से
पर ..
तुझे भी तो
कभी इस तरह
शिद्दत से
मेरी याद आये
सो जायेंगे
तेरी बाहों के घेरे में
हम सकून से
पर ..
तुझे भी तो
कभी इस तरह
शिद्दत से
मेरी याद आये
***************************
कम्पोज़ की गोली
वह बिचोलिया है
जो अक्सर
मेरी नींद
और मेरे सपनो का मेल
करवा ही देती है ....
कम्पोज़ की गोली
वह बिचोलिया है
जो अक्सर
मेरी नींद
और मेरे सपनो का मेल
करवा ही देती है ....
24 comments:
रंजू एक अरसे बाद तुम्हे पढ़ पा रही हूँ ///यार ये नींद से शिकायत मत करो इसको मनाते-मनाते एक उम्र गुजर जायेगी नींद आखिर बेवफा हमसफर है काम्पोस को दोस्त कहो जो तुम्हारे सपनों को नींद से मिलवाती है अक्सर बहुत अच्छा सोच तुमने
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
आपकी कविताओं का षायद यह आलम है
नींद से गुफ्तगू ख्वाब से गुफ्तगू,
तू ही तू हर तरफ़ हर जगह तू ही तू।
बहुत ही बढिया।
नहीं खरीद पाती
बीतती रातों से
अब कोई ख्वाब
यह आँखे
उफ़ !!!
यह
नींद भी
अब कितनी
महंगी है .........
....लाज़वाब ! बहुत प्रभावी और सशक्त अभिव्यक्ति ..
नींद सपने और ख्वाब
नींद के आगोश मे दफ़न
जैसे कुछ अबूझे जवाब
Behtareen aur prabhaavshaali.. bahut hi badhiya...
कम्पोज़ की गोली
वह बिचोलिया है
जो अक्सर
मेरी नींद
और मेरे सपनो का मेल
करवा ही देती है ....
वाह क्या बात है ... अनोखा बिम्ब .. पर सहज ही लिख दी मन की बात ... सभी अनमोल क्षणिकाएं ...
एक युगीन बोध लिए यथार्थवादी कविता -कम्पोज ही अब कम्पोज रख पायेगा मानवता को !
नहीं खरीद पाती
बीतती रातों से
अब कोई ख्वाब
यह आँखे ....खुबसूरत रचना...
बहुत ही बढ़िया रचना ...
अच्छी प्रस्तुति .... ख्वाब खुली आँखों से देखो तो नींद से शिकायत नहीं रहेगी
♥
नऽऽ… ना ना ऽऽ… ! यह कम्पोज की गोली का बिचोलियापन तो ठीक नहीं !
मैंने बचपन में कहीं पढ़ा था कि नींद न आए तो
कुछ ऐसा काम करने बैठ जाना चाहिए जो हमें अरुचिकर लगे ,
या जिससे बोरियत महसूस होती हो ।
मसलन विद्यार्थी पढ़ाई की किताब ले'कर बैठ जाए …
अपनी नापसंद का संगीत सुनने बैठ जाया जाए …
मसलन पल्ले न पड़ने वाले
विलंबित खयाल वाले हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्लासिकल वोकल सीडी/कैसेट बजा कर उन्हें ध्यान से सुनने का उपक्रम किया जाए …
बहुत हिम्मत का काम है निस्संदेह !
नींद के लिए एक सर्वकालीन सर्वजन हिताय अचूक उपाय गीता , रामायण की किताबों का अध्ययन पाया गया है …
धर्मग्रंथों के पठन-पाठन के शुरू होते ही जम्हाइयां आना लाज़मी है …
प्रिय रंजना 'रंजू'भाटिया जी
सस्नेहाभिवादन !
आपकी कविताओं की तरीफ़ के लिए अल्फ़ाज़ नहीं हैं मेरे पास …
पहली कविता के लिए सलाम !
नहीं खरीद पाती
बीतती रातों से
अब कोई ख्वाब
यह आँखे
उफ़ !!!
यह
नींद भी
अब कितनी
महंगी है ....
वाह वाऽऽह… !
हार्दिक शुभकामनाएं !
मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
☺☺☺
कम्पोज़ की गोली ...........ही आज की नींद और सपनो के बीच का सेतू हैं ....सच हैं जी
नहीं खरीद पाती
बीतती रातों से
अब कोई ख्वाब
यह आँखे
उफ़ !!!
यह
नींद भी
अब कितनी
महंगी है .........
बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
नींद रह रह भागने लगती है, जब भी हम सपनों को जगाने का प्रयास करते हैं।
ज़िंदगी,सपने और ख़्वाब इन पर तो सभी लिखा करते हैं मगर नींद पर कुछ अलग हटकर लिखा है आपने बहुत बढ़िया....
sunder bimbo ka prayog. badhiya prastuti.
badhiyaa prastuti!
वैसे तो सारी कवितायेँ प्रभावपूर्ण एवं सुन्दर हैं पर यह मेरी स्थिति से मेल खाता है :-)
क्यों आज कल
हर पल रहती है
मेरी आँखे
नींद से बोझिल
क्या कोई ख्वाब
मेरी आँखों में भी
समां गया ?
आभार
Fani Raj
har ek alfaz me gaharayeeeeee hai. dub kar padhna padta hai.
बहुत बढ़िया
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-05-2017) को
"लजाती भोर" (चर्चा अंक-2631)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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