Thursday, March 10, 2016

एक सवाल

दे कर मेरी ज़िंदगी को कुछ लम्हे खुशी के 
ना जाने वो शख्स  फिर  कहाँ चला  गया 

जो भी मिला मुझे  मोहब्बत के सफ़र में 
वो ही मुझे तन्हा और उदास कर गया 

मांगी थी कुछ रौशनी अपने अंधेरों के लिए 
जो गया और स्याह रंग से इसको भर गया 


यूं ही खेला एक नया खेल मेरे मासूम दिल से 
प्यार के झूठे बोलों से जीने की आस कर गया

खामोश रह कर हम सुनते रहे उनके सारे शिकवे 
 पल में वो मेरी ज़िंदगी को एक सवाल कर गया 

तलाशा था शायद हमने  पानी को सहरा में 
मेरी अनबुझी प्यास में और तृष्णा  भर गया 

8 comments:

Rajendra kumar said...

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.03.2016) को "एक फौजी की होली " (चर्चा अंक-2278)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

दिगम्बर नासवा said...

प्रेम और जुदाई के लम्हों को छूते हुए गुज़रती है ये रचना ...

kavita verma said...

sundar rachna

jr... said...

खामोश रह कर हम सुनते रहे उनके सारे शिकवे
पल में वो मेरी ज़िंदगी को एक सवाल कर गया ....

good lines

आशु said...

दे कर मेरी ज़िंदगी को कुछ लम्हे खुशी के
ना जाने वो शख्स फिर कहाँ चला गया

जो भी मिला मुझे मोहब्बत के सफ़र में
वो ही मुझे तन्हा और उदास कर गया ..

बहुत ही सुन्दर रचना रंजना जी ..दिल को छू गयी बस!!

-आशु

Asha Joglekar said...

इतनी उदासी भरी कविता की उदासी दूर कर रहा है ये साथ का चित्र।

Unknown said...

wah bahot achha laga padh kar

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ये तलाश और प्यास कितना उदास कर देती है ...