दे कर मेरी ज़िंदगी को कुछ लम्हे खुशी के
ना जाने वो शख्स फिर कहाँ चला गया
जो भी मिला मुझे मोहब्बत के सफ़र में
वो ही मुझे तन्हा और उदास कर गया
मांगी थी कुछ रौशनी अपने अंधेरों के लिए
जो गया और स्याह रंग से इसको भर गया
यूं ही खेला एक नया खेल मेरे मासूम दिल से
प्यार के झूठे बोलों से जीने की आस कर गया
खामोश रह कर हम सुनते रहे उनके सारे शिकवे
पल में वो मेरी ज़िंदगी को एक सवाल कर गया
तलाशा था शायद हमने पानी को सहरा में
मेरी अनबुझी प्यास में और तृष्णा भर गया
ना जाने वो शख्स फिर कहाँ चला गया
जो भी मिला मुझे मोहब्बत के सफ़र में
वो ही मुझे तन्हा और उदास कर गया
मांगी थी कुछ रौशनी अपने अंधेरों के लिए
जो गया और स्याह रंग से इसको भर गया
यूं ही खेला एक नया खेल मेरे मासूम दिल से
प्यार के झूठे बोलों से जीने की आस कर गया
खामोश रह कर हम सुनते रहे उनके सारे शिकवे
पल में वो मेरी ज़िंदगी को एक सवाल कर गया
तलाशा था शायद हमने पानी को सहरा में
मेरी अनबुझी प्यास में और तृष्णा भर गया
8 comments:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.03.2016) को "एक फौजी की होली " (चर्चा अंक-2278)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
प्रेम और जुदाई के लम्हों को छूते हुए गुज़रती है ये रचना ...
sundar rachna
खामोश रह कर हम सुनते रहे उनके सारे शिकवे
पल में वो मेरी ज़िंदगी को एक सवाल कर गया ....
good lines
दे कर मेरी ज़िंदगी को कुछ लम्हे खुशी के
ना जाने वो शख्स फिर कहाँ चला गया
जो भी मिला मुझे मोहब्बत के सफ़र में
वो ही मुझे तन्हा और उदास कर गया ..
बहुत ही सुन्दर रचना रंजना जी ..दिल को छू गयी बस!!
-आशु
इतनी उदासी भरी कविता की उदासी दूर कर रहा है ये साथ का चित्र।
wah bahot achha laga padh kar
ये तलाश और प्यास कितना उदास कर देती है ...
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