Friday, December 18, 2015

आस का दीप

आस का दीप 

दिन चाहे ढल गया है
पर विश्वास बाक़ी है
आस का दीप मत बुझा
अभी कुछ उम्मीद बाक़ी है

दुख की छाया जो कभी पड़े
तो वो जीवन का अंत नहीं
दिल में रहे जज़्बात बाक़ी
तो ज़िंदगी की धड़कन बाक़ी है
आस का दीप मत बुझा
अभी कुछ उम्मीद बाक़ी है

होंठ चुप हैं नयन चुप हैं
स्वर चाहे तेरा उदास है
हवा में बह रहा राग-रंग
भी कुछ सहमा-सा आज है
पर फ़िज़ा में फैली झंकार बाक़ी है
दिल को बाँध सके अभी वो राग बाक़ी है
आस का दीप मत बुझा
अभी कुछ उम्मीद बाक़ी है

बिखरे हो जीवन के रंग सारे
छाए हों राहों पर आँधियारे
पतझड़-सा चाहे यह जीवन लगे
पर अभी कुछ मधुमास बाक़ी है
उम्मीद का दामन मत छुड़ा
कि अभी आस बाक़ी है !! 

7 comments:

Kailash Sharma said...

उम्मीद पर ही जीवन कायम है..बहुत ख़ूबसूरत और सार्थक अहसासों की प्रभावी अभिव्यक्ति...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-12-2015) को "जीवन घट रीत चला" (चर्चा अंक-2196) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar said...

कमाल की कविता

जसवंत लोधी said...

लाजवाब कविता है ।
seetamni. blogspot. in

Unknown said...

So True.. So Touching!

Unknown said...

उम्मीद का दामन मत चढ़ाओ अभी आप बाकि है बहुत खूब लिखा है धन्यवाद

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

उम्मीदों से भरी रचना ....ये आस बनी रहे .