Sunday, July 26, 2015

आँखों में उतरे सावन

जी में आता है
दिल में भरे दर्द की
बस एक" चिलम" सुलगाऊं
एक तेज" कश भर कर"
गोल छल्लों. में उडाऊं
रीते मन की व्यथा
धुएं में खो जाए
आँखों में उतरे सावन से
एक घटा बरस जाए
और सुलगे हुए लम्हों को
कहीं ठंडक मिल पाए
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3 comments:

वन्दना अवस्थी दुबे said...

कमाल की धुआं धुआं कविता है रंजू...

वन्दना अवस्थी दुबे said...

कमाल की धुआं धुआं कविता है रंजू...

Asha Joglekar said...

आँखों में उतरे सावन से
एक घटा बरस जाए
और सुलगे हुए लम्हों को
कहीं ठंडक मिल पाए

वाह बहुत ही बढिया।