Tuesday, March 31, 2015

आगाज़ तॊ होता है अंजाम नहीं होता ,जब मेरी कहानी में वॊ नाम नहीं होता

 आगाज़ तॊ होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वॊ नाम नहीं होता

जब ज़ुल्फ़ की कालिख़ में घुल जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं हॊता



अभिनय की हर बारीकी से सम्पन्न मीना  कुमारी एक अभिनेत्री  के रूप में ३२ साल तक भारतीय  सिने जगत पर छाई रहीं फ़िल्म परिणीता की शांत अल्हड़ नवयौवना ,बैजू बावरा की चंचल हसीन  प्रेमिका साहब बीबी और गुलाम की की सामंती अत्याचार व रुदिवादी परम्परा  की निष्ठुर यातनाएं झेलने वाली बहू और शारदा की ममतामयी माँ और सबसे बेहतरीन पाकीजा की "साहब जान, इन मीना कुमारी को कौन नही जानता

१ अगस्त १९३२ को जन्मी और गरीबी में पली इस अभिनेत्री  का बचपन भी बहुत  अच्छा नही गुजरा मात्र ८ साल की उम्र में यह फिल्मों में आ गई पहले यह गाने गाया करती थी कई गजल और गीत उन्होंने अपनों दर्द भरी आवाज़ में गाए हैं उपनाम "नाज" से वह लिखा भी करती थी ..कुछ कहानियाँ  भी लिखी थी इन्होने ..यदि यह अभिनेत्री न होती तो एक बहुत अच्छी शायरा होतीं ....सन १९४७ में बनी "पिया घर आजा" के सभी गीत मीना जी ने गाए थे इन में देश पराए जाने वाले .नयन डोर में बाँध लिया आदि गीत बहुत लोक प्रिय भी हुए थे ...सन १९52 में बेजू बावरा बहुत हिट साबित हुई  और इन्हे फ़िल्म फेयर  अवार्ड भी मिला। जैसे जैसे यह शोहरत की बुलन्दी पर पहुंचती  गई उतनी ही अपनी ज़िंदगी में तन्हा   होती गई हर वक्त खोयी खोयी उदासियों   में जीने वाली मीना के अभिनय भी वह दर्द छलकता    ही रहा।
 सन १९७१ में बनी पाकीजा में जैसे उन्होंने अपनी सच्ची पीडा को ही फ़िल्म में उतार दिया उस फ़िल्म का एक संवाद भूले नही भूलता "हम तो वह लाश है जिसकी कब्र खुली पड़ी रहती हैं "इस को बोलते हुए उन्हें कोई अभिनय नही करना पड़ा क्यूंकि उनकी  ज़िंदगी की सारी पीड़ा जैसे उस में सिमट के रह गई थी ...

हर दर्द को यूं जीती थी जैसे यह उसके ऊपर बीता हो ..और हर भूमिका को एक यादगार जीती जाती भूमिका बना  देती थी

उस जैसी भावुक अदाकारा को बन्धन में बंधाना बहुत कठिन था तभी तो डॉ के मना करने के बावजूद वह पान जर्दा और शराब नही छोड़ पाती थी और न ही उन्होंने कभी दौलत की परवाह की जितनी दौलत थी सब लुटा दी ..धीरे धीरे मीना की सिर्फ़ रूह रह गई ...और उनको याद करते हुए जहन में रह गया पाकीजा का वह गाना "इन्ही लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा ..सच में जिसके हाथ जो लगा वह उनसे वह लुट के ले गया फ़िर भी उन्होंने कभी किसी को दोष नही दिया ..

उन्होंने बालपन से ही फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था सन् १९४2 में बाल कलाकार के रूप में काम करती रही और सन् १९६ में १४ साल की आयु में महजबी मीना कुमारी का असली नाम में पहली बार बच्चो का खेल में नायिका बनी और यहीं से मीना कुमारी कहलाने लगी ..मीना कुमारी बनने के कुछ ही दिनों बाद माँ की मौत ने उन्हें एकांत में ला कर खड़ा कर दिया ..फ़िर बड़ी बहन खुर्शीद और छोटी बहन माधुरी ने भी विवाह कर लिया वह बिल्कुल तनहा रह गई ..
फ़िर १950 में अनार कली  बनने की  बात हुई और इसी सिलसिले में उनकी मुलाक़ात कमाल अमरोही से हुई इसी फ़िल्म की बात चीत के बीच एक बार पुणे से आते हुए मीना कुमारी की कार का एक्सीडेंट हो गया वहाँ सब मीना से मिलने पहुंचे उन में कमाल अमरोही भी थे वह उनके पास वही हॉस्पिटल में काफ़ी देर बैठे रहे ..दोनों में कोई कुछ नही बोल रहा था तभी मीना  की नज़र उठी कमाल अमरोही की तरफ़ नही ,बलिक मौसमी के उस गिलास की तरफ़ जिसे वह कमजोरी के कारण उठा के पी नही पा रही थी .तब कमाल ने अपने हाथो से वह मौसमी का रस उन्हें पिलाया और यह मुलाकाते फ़िर बढ़ती  गई, यही पर कमाल ने मीना के सामने शादी का प्रस्ताव रखा  मीना भी यही चाहती थी फ़िर २४ मई १९५२ को मीना ने कमाल से शादी कर ली चुपके से ..कमाल अमरोही ने उन्हें एक छोटा सा नाम दिया मंजू और मीना ने उन्हें नाम दिया चन्दन ...  अनार कली तो बन नही सकी पर उसके बाद कई फिल्म बनी और वह कामयाब रही मीना कुमारी ने कमाल अमरोही से बेपनाह मोहब्बत की थी पर वह विवाह के सिर्फ़ दो वर्षों को ही जन्नत कहा करती थी ..कमाल साहब ख़ुद बहुत बड़े फिल्मकार थे पर मीना के नाम के बगैर उनका परिचय पूरा नही होता था ..यही कमाल के दुःख का बहुत बड़ा कारण था और यही उनके विवाह के टूटने का कारण भी बना ..वह मीना को बहुत पीटते थे आंसू उनके गालों पर रहते थे और ढलते सूरज की रौशनी उन्हें दहशत में डाल देती थी
पति के प्यार से महरूम मीना ने बाहर   प्यार तलाश करना शुरू किया एक रिश्ते की चाहत ने कई लोग उनकी ज़िंदगी में आए सबने उन्हें  धोखा दिया उन्हें मिला तो सिर्फ़ दुःख और दर्द हर रिश्ते से ..मीना जी के कराबी लोगो में आज भी कई लोग मौजूद  हैं जो आज मीना जी की वजह से कामयाब जाने जाते हैं ..

बच्चो से मीना जो को बहुत लगाव था उन्होंने कई अनाथ बच्चों की मदद की कहते हैं कि कई बार  वह सारा सारा दिन उन बच्चो के साथ बिता देती थी ..पर तकदीर ने उन्हें औलाद  का सुख नही दिया परदे पर माँ की   ममता रूप जीने वाली सदा माँ  बनने के लिए तरसती रहीं .अन्तिम दिनों में सावन कुमार टाक उनके साथ रहे उन्होंने मीना जी की सेवा मैं कभी कोई कमी नही आने दी उन्होंने उनका  दिल रखने के लिए उनकी फ़िल्म गोमती के किनारे में भी काम किया उन्होंने पूरी ज़िंदगी में कभी किसी को निराश नही किया लेकिन कोई उनका नही हो सका तब उन्होंने शराब को उन्होंने साथी बना लिया सिर्फ़ ४० साल की छोटी सी उम्र में उन्होंने इस बेदर्द दुनिया से रुखसत ली यह कहते हुए

ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा

मीना कुमारी का ही लिखा हुआ है

चाँद तन्हा है आसमं तन्हा
दिल मिला हैं कहाँ कहाँ तनहा
ज़िंदगी  क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है जां तन्हा

6 comments:

Anonymous said...

Vaah

Kmmo

दिगम्बर नासवा said...

मीना जी की शायरी और एक्टिंग दोनों का जवाब नहीं है ...
एक और लाजवाब पोस्ट मीना जी की यादों के साथ ..

dinesh gautam said...

Meena kumari me Jo lajwab abhinay kiya hai wah sadiyon tak yad kiya jata rahega unhe meri vinamra shraddhanjali.

Onkar said...

मीना कुमारी पर अच्छा पोस्ट

Ankur Jain said...

मीना जी से जुड़े कई अहम् तथ्यों से अवगत कराने के लिये आभार। सुंदर प्रस्तुति।

Shubham Srivastava said...

behatreen..!!!