Saturday, February 07, 2015

बिन तेरे

बिन तुम्हारे
मैं और मेरा जीवन रीता
हर युग से यह
प्रेम हमारा
जैसे पावन गीता
सतयुग में
तुम लक्ष्मी थी मेरी
द्वापर में राधा बन आई पास मेरे
त्रेता मैं बनी तुम मेरी सीता
पर एक बात पुछू में तुमसे
कलयुग क्यों बिन तेरे जाए बीता ?

2 comments:

Onkar said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही भावपूर्ण ... युग युग के साथी कलयुग में भी क्यों न मिलें ...
सुन्दर कल्पना ...