कंपकपाती सर्दी और सामने जलते अलाव सकून देजाते हैं न ? बहुत पुरानी बात तो
नहीं लगती जब घर के बाहर १३ जनवरी आते ही रात को कुर्सियां ,चारपाइयां लग
जाती थी सब एक साथ इकट्ठे हो जाते और लोहड़ी गीत गाये जाते और खूब रौनक लग
जाती पर अब वह सब बीते समय की बात हुई
अब यह परंपरा शहरों के साथ-साथ गांवों में भी समाप्त हो गई है। न तो लोहड़ी मांगने का रिवाज रहा है व न ही मिलकर लोहड़ी
जलाने का। अब तो पिछले कुछ वर्षो से घर घर के आगे परिवार के ही सदस्य इस
रस्म को अदा कर लेते हैं।लोहड़ी शब्द के अर्थ भी सर्च करने पर अलग अलग पढ़ने को मिले कहीं पढ़ा ,
,लोहड़ी शब्द तिल + रोड़ी शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर तिलोड़ी और बाद में लोहड़ी हो गया। कई जगह इसे लोही या लोई भी कहा जाता है। और दूसरी जगह इसका अर्थ पढ़ा लोहड़ी का मतलब है कि आज के बाद से सर्दी लुढ़कनी शुरू हो जाती है यानि खत्म होनी शुरू हो जाती है। लोहड़ी शब्द लोही से बना है, जिसका अभिप्राय है वर्षा होना, फसलों का फूटना।
यह मुख्यत: पंजाब का पर्व है, यह शब्द लोहड़ी की पूजा के समय इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं का प्रतीक लगता है , जिसमें ल (लकड़ी), ओह (गोहा = सूखे उपले), ड़ी (रेवड़ी)= 'लोहड़ी' के अर्थ को बताते हैं,पंजाब में विशेष रूप से नवविवाहित जोड़े व बच्चे की पहली लोहड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। लोहड़ी के अवसर पर बेटियों को विशेष रूप से याद किया जाता है और उनके घर भी लोहड़ी भेजी जाती है। रात को आग में तिल डालते हुए 'ईश्वर आए दलिदर जाए, दलिदर दी जड चुल्हे पाए' बोलते हुए अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं।
,लोहड़ी शब्द तिल + रोड़ी शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर तिलोड़ी और बाद में लोहड़ी हो गया। कई जगह इसे लोही या लोई भी कहा जाता है। और दूसरी जगह इसका अर्थ पढ़ा लोहड़ी का मतलब है कि आज के बाद से सर्दी लुढ़कनी शुरू हो जाती है यानि खत्म होनी शुरू हो जाती है। लोहड़ी शब्द लोही से बना है, जिसका अभिप्राय है वर्षा होना, फसलों का फूटना।
यह मुख्यत: पंजाब का पर्व है, यह शब्द लोहड़ी की पूजा के समय इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं का प्रतीक लगता है , जिसमें ल (लकड़ी), ओह (गोहा = सूखे उपले), ड़ी (रेवड़ी)= 'लोहड़ी' के अर्थ को बताते हैं,पंजाब में विशेष रूप से नवविवाहित जोड़े व बच्चे की पहली लोहड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। लोहड़ी के अवसर पर बेटियों को विशेष रूप से याद किया जाता है और उनके घर भी लोहड़ी भेजी जाती है। रात को आग में तिल डालते हुए 'ईश्वर आए दलिदर जाए, दलिदर दी जड चुल्हे पाए' बोलते हुए अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं।
वक़्त के साथ अब सब अर्थ गुम होते जा रहे हैं
बेचारा दूल्हा भट्टी भी अब मुश्किल से याद आता है चलिए मिल कर इसी वाल पर लोहड़ी मनाये लोहड़ी के असली गीत गा कर
सुंदर मुंदरिये
तेरा कौन बेचारा,
दुल्ला भट्टी वाला,
दुल्ले घी व्याही,
सेर शक्कर आई,
कुड़ी दे बाझे पाई,
कुड़ी दा लाल पटारा,
कुड़ी दा सालू पाटा
सुंदर मुंदरिये
तेरा कौन बेचारा,
दुल्ला भट्टी वाला,
दुल्ले घी व्याही,
सेर शक्कर आई,
कुड़ी दे बाझे पाई,
कुड़ी दा लाल पटारा,
कुड़ी दा सालू पाटा
सालू कौन समेटे
चाचा चुर्री कुट्टी
जमींदारा लुट्टी
ज़मींदार सुधाये
वड़े भोले आये
वड़े भोले आये
एक भोला रह गया
सिपाई फड़ के ले गया
सिपाई फड़ के ले गया
दे माई लोहड़ी, तेरी जीवे
जोड़ी' , 'दे माई पाथी तेरा पुत्त चढ़ेगा हाथी
Top Picks for Lohri Evening in Delhi
हुल्ले नी माइ हुल्ले
दो बेरी पत्ता झुल्ले
दो झुल्ल पयीं खजूर्राँ
खजूराँ सुट्ट्या मेवा
एस मुंडे कर मगेवा
मुंडे दी वोटी निक्कदी
ओ खान्दी चूरी कुटदी
कुट कुट भरया थाल
वोटी बावे ननदना नाल
वोटी बावे ननदना नाल
एक और गीत जो अब सुनने को नहीं मिलता
असी गंगा चल्ले - शावा !
असी गंगा चल्ले - शावा !
सस सौरा चल्ले - शावा !
जेठ जेठाणी चल्ले - शावा !
देयोर दराणी चल्ले - शावा !
पियारी शौक़ण चल्ली - शावा !
असी गंगा न्हाते - शावा !
सस सौरा न्हाते - शावा !
जेठ जठाणी न्हाते - शावा !
देयोर दराणी न्हाते - शावा !
पियारी शौक़ण न्हाती - शावा !
शौक़ण पैली पौड़ी - शावा !
शौक़ण दूजी पौड़ी - शावा !
शौक़ण तीजी पौड़ी - शावा !
मैं ते धिक्का दित्ता - शावा !
शौक़ण विच्चे रूड़ गई - शावा !
सस सौरा रोण - शावा !
जेठ जठाणी रोण - शावा !
हैप्पी लोहड़ी और मकर संक्राति सभी को !!दूल्हा भट्टी की भी जय बोले और नयी पीढ़ी को इनकी कहानी भी सुना दे लोहड़ी की सभी
गानों को दुल्ला भट्टी से ही जुड़ा ,लोहड़ी के
गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी को ही बनाया जाता हैं। दुल्ला भट्टी
मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उसे पंजाब के नायक की उपाधि
से सम्मानित किया गया था! उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को गुलामी
के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था जिसे दुल्ला भट्टी ने एक योजना
के तहत लड़कियों को न की मुक्त ही करवाया बल्कि उनकी शादी की हिन्दू लडको
से करवाई और उनके शादी के सभी व्यवस्था भी करवाई। दुल्ला भट्टी एक विद्रोही
था और जिसकी वंशवली भट्टी राजपूत थे। उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक
थे जो की संदल बार में था अब संदल बार पकिस्तान में स्थित हैं ,नेक काम जग में नाम
देयोर दराणी रोण - शावा !
पियारा ओ वी रोवे - शावा !
मैं क्या तुस्सी क्यूँ रोंदे
त्वाडे जोगी मैं बथेरी
मैंनू द्यो वधाइयां
त्वाडे जोगी मैं बथेरी - शावा शावा !
जम्मू में डोगरी भाषा में यह पंक्तियाँ बोली जाती है
हिरणा-हिरणा शाली दे,
सुते दे बिजाली दे
हिरणे मारी लते दी,
चूड़ पजी खटे दी|
हरण आया समोती दा, खोलो जंदरा कोठी दा
जम्मू में डोगरी भाषा में यह पंक्तियाँ बोली जाती है
हिरणा-हिरणा शाली दे,
सुते दे बिजाली दे
हिरणे मारी लते दी,
चूड़ पजी खटे दी|
हरण आया समोती दा, खोलो जंदरा कोठी दा
1 comment:
लोहड़ी के असल आनद की यादें ताज़ा कर दी आपने ...
बधाई इस पर्व की ...
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