इजहार -इनकार
आज ज़िन्दगी की साँझ में
खुद से ही कर रही हूँ सवाल जवाब
कि जब बीते वक़्त में
रुकी हवा से इजहार किया
तो वह बाहों में सिमट आई
जब मुरझाते फूलों से
किया इक्क्रार तो
वह खिल उठे
जाते बादलों को
प्यार से पुचकारा मैंने
तो वह बरस गए
पर जब तुम्हे चाहा शिद्दत से तो
सब तरफ सन्नाटा क्यों गूंज उठा
ज़िन्दगी से पूछती हूँ आज
कि क्या हुआ ..
क्या यह रुका हुआ वक़्त था
जो आकर गुजर गया??
आज ज़िन्दगी की साँझ में
खुद से ही कर रही हूँ सवाल जवाब
कि जब बीते वक़्त में
रुकी हवा से इजहार किया
तो वह बाहों में सिमट आई
जब मुरझाते फूलों से
किया इक्क्रार तो
वह खिल उठे
जाते बादलों को
प्यार से पुचकारा मैंने
तो वह बरस गए
पर जब तुम्हे चाहा शिद्दत से तो
सब तरफ सन्नाटा क्यों गूंज उठा
ज़िन्दगी से पूछती हूँ आज
कि क्या हुआ ..
क्या यह रुका हुआ वक़्त था
जो आकर गुजर गया??
2 comments:
सुंदर भावपूर्ण रचना प्रस्तुति आभार
वक्त भी वहीं है पर शायद उनके प्रेम में वो सादगी नहीं थी .... इसलिए वो शिद्दत भी कम रही ...
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