Friday, August 16, 2013

बस एक बार

ए !!मेरे प्यार के  हमराही ......
मुझे अपनी पलको में बिठा के वहाँ ले चल
जहाँ खिलते हैं
मोहब्बत के फूल
गीतो से
तू अपनी नज़रो में 
बसा कर  वहाँ ले चल

जो महक रहा है तेरा दामन
 जिन पलो की ख़ुश्बू से
उन पलो में 
एक बार फिर डुबो कर मुझे वहाँ ले चल.........
जहाँ देखे थे 
हमने दो  जहान मिलते हुए
उस साँझ के आँचल तले
 एक आस का दीप जला कर
बस एक बार मुझे वहाँ ले चल................ जय श्री कृष्णा

5 comments:

Arvind Mishra said...

भावपूर्ण

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...



ए !!मेरे प्यार के हमराही ......
मुझे अपनी पलकों में बिठा के वहां ले चल ,
जहां खिलते हैं मोहब्बत के फूल
गीतो से
तू अपनी नज़रो में बसा कर वहाँ ले चल

हम्म्...

आदरणीया रंजना जी
कितनी ख़ूबसूरत कविता लिखी है आपने...
वाह ! वाऽह ! वाऽहऽऽ…!
:)
प्रणाम है...

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एक ख़ूबसूरत गीत याद हो आया...
गुनगुना रहा हूं , सुनिएगा -
:)
आ चल कॅ तुझे , मैं ले के चलूं
इक ऐसे गगन के तले
जहां ग़म भी न हो, आंसू भी न हो
बस प्यार ही प्यार पले ......

सूरज की पहली किरण से, आशा का सवेरा जागे
चंदा की किरण से धुल कर, घनघोर अंधेरा भागे
कभी धूप खिले, कभी छांव मिले
लम्बी सी डगर न खले
जहां ग़म भी न हो, आंसू भी न हो
बस प्यार ही प्यार पले ......

जहां दूर नज़र दौड़ आए, आज़ाद गगन लहराए
जहां रंग-बिरंगे पंछी, आशा का संदेशा लाएं
सपनो मे पली हंसती हो कली
जहां शाम सुहानी ढले
जहां ग़म भी न हो, आंसू भी न हो
बस प्यार ही प्यार पले ......

सपनों के ऐसे जहां में जहां प्यार ही प्यार खिला हो
हम जाके वहां खो जाएं, शिकवा ना कोई गिला हो
कहीं बैर न हो, कोई ग़ैर न हो
सब मिलके यूं चलते चलें
जहां ग़म भी न हो, आंसू भी न हो
बस प्यार ही प्यार पले ......

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हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रेम जहाँ, बस वहीं ठिकाना,
प्रभु, जीवन में तुम आ जाना।

विभूति" said...

भावो को संजोये रचना......

दिगम्बर नासवा said...

प्रेम का मधुर एहसास लिए ... प्रेम को पाने की उन्मुक्त चाह लिए ...