आवारा ख्याल कुछ यूँ ही
डर नहीं।।।
इस दिल को
कि वो अब भी मेरी यादो में है
पर अक्सर न जाने क्यों
इक ख्याल से बज उठती है
धडकन की सरगम
कि कहीं अब भी उसके
किन्ही ख्यालों में तो हम नहीं !!
***
लिखना फिर मिटाना
फिर काट के लिख जाना
अक्सर
यह दिल कर ही जाता है
लिखते हुए ख़त उनको
और फिर
डर के सहम जाता है
कि
कहीं समझ के उलझ न जाए
इन अनकही ख़त की बातो में !!
10 comments:
khyalon ka kya...
wo to awen kuchh bhi kar jata hai :)
behtareen !!
अनकहा भी इतने प्यारे तरीके से कह ही दिया ..... बहुत अच्छा लगा :)
अनकहा कहने में, मन को जो तृप्ति मिलती हो, वह कहाँ है भला।
कहीं समझ के उलझ न जाए
इन अनकही ख़त की बातो में !!
बहुत ही लाजवाब रचना.
रामराम.
डर नहीं।।।
इस दिल को
कि वो अब भी मेरी यादो में है
पर अक्सर न जाने क्यों
इक ख्याल से बज उठती है
धडकन की सरगम
कि कहीं अब भी उसके
किन्ही ख्यालों में तो हम नहीं !!
क्या बात...
अमृता प्रीतम की फैन आप ऐसे ही थोड़े हैं !
ये आवारा ख़याल घर कर गए दिल में...
:-)
सस्नेह
अनु
कहीं समझ के उलझ न जाये इस खत की अनकही बातों में ।
वाह क्या बात कही है ।
वाह बहुत खूब
एहसास लिए ... मन की घुमावदार बात को कहने का अच्छा अंदाज़ ...
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