Monday, June 03, 2013

आवारा ख्याल कुछ यूँ ही


 आवारा ख्याल कुछ यूँ ही


डर नहीं।।।
इस   दिल को
कि वो अब भी मेरी यादो में है
पर अक्सर न जाने क्यों
इक  ख्याल से बज उठती है
धडकन की सरगम
कि कहीं अब भी उसके
किन्ही ख्यालों में तो हम नहीं !!

***
लिखना फिर मिटाना
फिर काट के लिख जाना
अक्सर
यह दिल कर ही जाता है
लिखते हुए ख़त उनको
और फिर
डर के सहम जाता है
कि
कहीं समझ के उलझ न जाए
इन अनकही ख़त की बातो में !!

10 comments:

मुकेश कुमार सिन्हा said...

khyalon ka kya...
wo to awen kuchh bhi kar jata hai :)
behtareen !!

निवेदिता श्रीवास्तव said...

अनकहा भी इतने प्यारे तरीके से कह ही दिया ..... बहुत अच्छा लगा :)

प्रवीण पाण्डेय said...

अनकहा कहने में, मन को जो तृप्ति मिलती हो, वह कहाँ है भला।

ताऊ रामपुरिया said...

कहीं समझ के उलझ न जाए
इन अनकही ख़त की बातो में !!

बहुत ही लाजवाब रचना.

रामराम.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

डर नहीं।।।
इस दिल को
कि वो अब भी मेरी यादो में है
पर अक्सर न जाने क्यों
इक ख्याल से बज उठती है
धडकन की सरगम
कि कहीं अब भी उसके
किन्ही ख्यालों में तो हम नहीं !!
क्या बात...

Arvind Mishra said...

अमृता प्रीतम की फैन आप ऐसे ही थोड़े हैं !

ANULATA RAJ NAIR said...

ये आवारा ख़याल घर कर गए दिल में...
:-)

सस्नेह
अनु

Asha Joglekar said...

कहीं समझ के उलझ न जाये इस खत की अनकही बातों में ।

वाह क्या बात कही है ।

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह बहुत खूब

दिगम्बर नासवा said...

एहसास लिए ... मन की घुमावदार बात को कहने का अच्छा अंदाज़ ...