Wednesday, April 24, 2013

कुछ एहसास

कुछ एहसास
है बस ख़ास
जो यह याद दिलाते हैं
कि नही ओढ़  सकते अब हम
एक दूजे को लिहाफ की तरह
पर एक दूजे का हाथ थाम
 सहारा तो दे सकते हैं
इस तरह चलने में भी
क्या पता सुलग उठे कोई चिनगारी
और ...........
एक वजह फ़िर से जीने की मिले??

14 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

वास्तविक अनुभूति !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post बे-शरम दरिंदें !
latest post सजा कैसा हो ?

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... वजह तो जीने को ढूंढनी है ...
कोई लौ तो होनी चाहिए जिन्दा रखने के लिए ... गहरे भाव लिए ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

एहसास बना रहे ....

प्रवीण पाण्डेय said...

जब तक साथ रहे, चलना हो,
जीवन में जीवन पलना हो।

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर....
जीने की कोई वजह तो खोजना ही होगी....या क्यूँ न जिए यूँ ही...बेवजह???

सस्नेह
अनु

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....

Arvind Mishra said...

आशावाद की चिंगारी

Jyoti khare said...

सुंदर सार्थक अहसास
उत्कृष्ट प्रस्तुति

आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर एहसास,आपका आभार.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

khubsurat ahsaas..

Anju (Anu) Chaudhary said...

जीने के लिए किसी वजह की नहीं ....एक आस की जरुरत होती है

Suresh sahani said...

सुन्दर,भावपूर्ण!!!!!!

सदा said...

एक वज़ह फिर से जीने को मिले ............... सच
भावमय करते शब्‍द
.....
सादर

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर एहसास