Thursday, March 07, 2013

कुछ दोस्तों की कलम से (५ )

कुछ दोस्तों की कलम से (५ )

ब्लॉग की दुनिया के  शुरूआती दिनों में बहुत से मित्र बने .जिनसे लगातार कुछ सीखने को नया मिलता रहा और यह साथ फिर अब तक यूँ ही अनवरत चल रहा है ..मोहिन्दर जी उन में से एक हैं।।बहुत हक से मैंने इनको "कुछ मेरी कलम से संग्रह "लेने को कहा और उतने ही हक और प्यार से इन्होने इस संग्रह के बारे में लिखा ....
हम में से प्रत्येक व्यक्ति जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में से गुजरता है। स्वयं द्वारा जीये गए उन पलों को अथवा अपने आस पास घटित होते किसी प्रकरण को शब्दों का जामा पहनाना कोई सहज कार्य नहीं है। किसी रचनकार की सर्जनता का विश्लेषण उसकी रचनाओं को मन से समाहित कर एंव दृश्या पूर्ण चित्रित कर ही किया जा सकता है।
रंजना जी ने अपने कविता संग्रह "कुछ मेरी कलम से" में जीवन के विभिन्न पलों को जीवंत रूप से चित्रित किया है।
पहली कविता "कहा-सुना " प्रेम संवाद के रूप में दर्शाता है कि कही हुई बात और सुनी हुई बात में अंतर हो सकता है जो कि सुनने वाले की मनोस्थिति पर निर्भर करता है। "तस्वीर" जीवन में ओढे मुखोटे, "गुजरती ट्रेन" मन की उलझन को दर्शाते हैं। प्रतीक्षा, विरह और मिलन के रंगों को चाँद के प्रतीकों के रूप में उकेरा गया है। जीवन में वार्तालाप, अंतरंगता की आवश्यकता को "आस" "अहसास" में उतारा है "आईना" दिखाता है कि यह दुनिया कितनी छद्म भेषी है। "तेरा आना" प्रेमिका द्वारा मिलन की आस और प्रसन्नता का अक्स लिए है। "मुस्कान", "कविता", "विरह के दो रंग", "बुढापा" जीवन को इनकी परिभाषाओं से जोडने का प्रयास है। "अंतर्मन" जहां प्रेमी की निष्ठुरता को उजागर करता है वहीं "पनीली आंखें" मन में उठते हुए द्वन्द और उलझन को चित्रित करते हैं। स्वप्नों, विरह, रिश्तों, घुटन, अकेलेपन, यादों और मौन को भी क्षणिकाओं के रूप में खूबसूरती से इस संकलन में जिया गया है। 'जिंदगी से सवाल" में कवित्री जिन्दगी को कटघरे में खडा कर अपने प्रश्नों के उत्तर चाहती है। "फूल पलाश के", "तेरे मेरे बीच का फासला", "फ़ैंटेसी" प्रेयसी के मन में उठते प्यार के ज्वार , अतृप्त कामनाओं, स्त्री सुलभ संकोच और विद्रोह के भावों का सम्प्रेषण है। "कामना" और "अनकहा चांद" समर्पण, प्रेम की फुहार में भीगने और पूर्ण तृप्ति की कामना का द्योतक हैं। रंजना जी ने नारी होने के नाते नारी सुलभ सभी भावों और संवेदनाओं के सम्प्रेषण में पूर्ण रूप से न्याय किया है और जीवन की बारीकियों को भी शब्दों में सफलता से पिरोया है। यह संकलन पाठकों के लिए पठनीय रुचिकर बन पडा है। ईश्वर से कामना है कि वह उनकी कलम को इसी प्रकार अनवरत रूप से लेखन की शक्ति प्रदान करें मोहिन्दर कुमार

मेरे पास अब कुछ कहने को रहा ही नहीं सिर्फ इतना ...........बहुत बहुत शुक्रिया मोहिन्दर जी :आपका .. :)

7 comments:

vandana gupta said...

बहुत बधाई आप दोनो को

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर समीक्षा..

Anju (Anu) Chaudhary said...

बहुत खूब

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत२ बधाई,,,

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प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ...

दिगम्बर नासवा said...

बहुत बहुत बधाई ... अच्छा लगता है यूं हक ज़माना ...