मेरे दिल की ज़मीन को
सपनो का आकाश चाहिए,
उड़ सकूँ या नही ,
किंतु पँखो के होने का अहसास चाहिए......
मौसम दर मौसम बीत रही है यह जिंदगानी ,
मेरी अनबुझी प्यास को
बस एक "मधुमास" चाहिए.
लेकर तेरा हाथ, हाथो में काट सके
बाक़ी ज़िंदगी का सफ़र.
मेरे डग-मग करते क़दमो को बस तेरा विश्वास चाहिए.
साँझ होते ही
तन्हा उदास हो जाती है मेरी ज़िंदगी,
अब उन्ही तन्हा रातो को तेरे प्यार की बरसात चाहिए.
कट चुका है अब तो मेरा" बनवास" बहुत
मेरे बनवास को
अब "अयोध्या का वास" चाहिए. !!
डायरी के पुराने पन्नो से ..रंजू भाटिया
8 comments:
bahut badhia ....aapki bhi kavita padne lagi hoon.
सच है,
चाह अधिक है,
कुछ अपना सा,
जी लूँ मैं भी।
आज की ब्लॉग बुलेटिन चाणक्य के देश में कूटनीतिक विफलता - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
वाह प्रेम की सुंदर अनुभूति
बधाई
बहुत सुन्दर प्रेम की अनुभूति
latest post सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार
latest postऋण उतार!
वाह ... बनवास को अयोध्या का वास ...
पीया मिलन का आधार चाहिए ... बहुत खूब ...
हर दिल की यही चाहत....
सपनों का एक अनंत आकाश.....
सुन्दर रचना रंजू.
सस्नेह
अनु
अंतर्मन की आकांक्षा का बहुत भावपूर्ण चित्रण...
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