सुदूर कहीं
गहरे नीले आसमान में
लहरा उठती है
"ढेरों पतंगे "
और नीचे धरती पर
झूमती आँखों में
चमक जाते हैं " कई सूरज "
धीरे धीरे धूमती रहती है
धरती अपनी धुरी पर यूँ ही
और साथ ही घूमते रहते हैं
नक्षत्र अपनी गति से
और इन सबके बीच में
झुक आती है फिर संध्या
किसी आँचल के छाँव सी
उड़ते रहते है
न जाने कितने पाखी मन के
होले से उन कटी पतंगों की छांव में
फिर फिर बुनते रह जातें सपने
कुछ अनदेखे,अनकहे से
गहरे नीले आसमान में
लहरा उठती है
"ढेरों पतंगे "
और नीचे धरती पर
झूमती आँखों में
चमक जाते हैं " कई सूरज "
धीरे धीरे धूमती रहती है
धरती अपनी धुरी पर यूँ ही
और साथ ही घूमते रहते हैं
नक्षत्र अपनी गति से
और इन सबके बीच में
झुक आती है फिर संध्या
किसी आँचल के छाँव सी
उड़ते रहते है
न जाने कितने पाखी मन के
होले से उन कटी पतंगों की छांव में
फिर फिर बुनते रह जातें सपने
कुछ अनदेखे,अनकहे से
रात की बीतती वेला में
अधखुली आँखों के
पतंगों के पेच से
शोर करते मन में देते हुए शब्द
वो काटा !! वो काटा
फिर से एक नए चमकते सूरज की आशा में # रंजू भाटिया ...कुछ यूँ ही अभी अभी दिल में उगता हुए से लफ्ज़ ..."कुछ मेरी कलम से" कहने की कोशिश में :)
अधखुली आँखों के
पतंगों के पेच से
शोर करते मन में देते हुए शब्द
वो काटा !! वो काटा
फिर से एक नए चमकते सूरज की आशा में # रंजू भाटिया ...कुछ यूँ ही अभी अभी दिल में उगता हुए से लफ्ज़ ..."कुछ मेरी कलम से" कहने की कोशिश में :)