कुछ भीगे से एहसास
एक टुकडा धूप का
चाहती हूँ मिल जाए
छुए मेरे अंतर्मन को
और जमते सर्द भावों को
गुदगुदा के जगा जाए
गुजरे रात हौले धीरे
वह एहसास जो जीने की चाहत दे जाए
डूबती साँसों के इन लम्हों में
अब तो यह धुंधलका छट जाए
उदय हो अब तो वह सुबह
जो शून्य से धड़कन बन जाए
बस एक टुकडा नर्म धूप के एहसासों का
एक बार तो ज़िन्दगी में मेरी आए !
एक टुकडा धूप का
चाहती हूँ मिल जाए
छुए मेरे अंतर्मन को
और जमते सर्द भावों को
गुदगुदा के जगा जाए
गुजरे रात हौले धीरे
वह एहसास जो जीने की चाहत दे जाए
डूबती साँसों के इन लम्हों में
अब तो यह धुंधलका छट जाए
उदय हो अब तो वह सुबह
जो शून्य से धड़कन बन जाए
बस एक टुकडा नर्म धूप के एहसासों का
एक बार तो ज़िन्दगी में मेरी आए !
15 comments:
नर्म धूप का हिस्सा ज़रूर है एहसास में... तभी न धूप नर्म लग रही है ... सुंदर अभिव्यक्ति
अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्यक्ति में
बेहतरीन प्रस्तुति
सर्दी में धूप की कविता
बहुत ही सुन्दर और कोमल भाव लिए रचना...
:-)
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
आपके द्वारा लिखी गई हर पंक्तियाँ बेहद खूबसूरत होती हैं....... आपकी समस्त रचनाओं को लिये आपको नमन .....
कृ्पा कर एक बार यहाँ भी आएं ......
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वाह ,,, बहुत उम्दा,लाजबाब अहसास ....
recent post: रूप संवारा नहीं,,,
वाह ,,, बहुत उम्दा,लाजबाब अहसास ....
recent post: रूप संवारा नहीं,,,
एक टुकड़ा धूप, न जाने कब से ढूँढ़ रहे हैं हम।
उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
excellent....
वह एहसास जो जीने की चाहत दे जाए
नर्म धूप का एहसास ... मन को दासी से उभार लेता है ...
बहुत लाजवाब शेब्द ...
behad narm narm si bhavnaye!
andar tak bhigo gayi!
badhai!
behtareen
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