Tuesday, October 16, 2012

दिल का दर्पण .

दिल का दर्पण



काव्य संग्रह
मूल्य- रु 150
प्रकाशक- हिंद युग्म,
1, जिया सराय,
हौज़ खास, नई दिल्ली-110016
(मोबाइल: 9873734046) 







दिल का दर्पण ...दिल का आईना जो अपने में समेटे हुए है हर अक्स को ........ दिल के आईने के बारे में लिखते हुए कभी लिखा था कि
झांक के कभी न देखते
 उसकी आँखों में
हम यूँ डूब कर
अगर पता होता
कि वो आईना है ...यही हाल हुआ मोहेंदर जी के इस संग्रह को पढ़ते हुए | अपने साथ बीते हर लम्हे का अक्स दिखा उनके लिखे इस दिल के दर्पण में | मैं उनके लिखे से बहुत समय पहले से परिचित हूँ और लिखे हुए से प्रभावित भी ..इस लिए उन रचनाओं को जिन्हें ब्लॉग में पढ़ा था हाथ में पुस्तक के रूप में देख कर बहुत ही ख़ुशी हुई और अच्छा लगा | दिल के रंग में सजी लाल संतरी रंग की आभा लिए यह किताब आपको अपने अक्स में मोहित कर लेती है ...खुद मोहिन्दर  जी के लफ़्ज़ों में कहे तो ..कविता हो या कहानी रचनाकार की आँखों में समाज ,आस पास की घटनाओं ,अपने व्यक्तित्व अनुभवों तथा कल्पनाओं का प्रतिबिम्ब होती हैं| चूँकि अनुभूतियाँ ,अनुभव व कल्पनाएँ अलग रंगों से रंगी होती हैं ,कविता व कहानियाँ भी बहुरंगी लिबास से सजी होती है| कभी चटक शोख व कभी धुंधलके में लिपटी हुईं ...सही बिलकुल मोहिन्दर जी तभी तो वह  दिल का आईना कहलाती है |
  दिल का दर्पण अपनी एक ख़ास विशेषता लिए हुए है .शुरू से आखिर तक ...सबसे पहले इसके अनुक्रम में ही देखे तो इस दिल के अक्स का अलग अलग एक टुकड़ा है जो अपने में हर विषय को समेटे हुए है जैसे सामाजिक सरोकार .जीवन दर्शन .अंतर मंथन ,श्रृंगार प्रणय मिलन विरह .प्रतीक्षा ,अनुनय ,नवीन प्रयोग ,गीत ,क्षणिकाएँ,हाइकु ...पढने वाला पाठक अपने मूड के हिसाब से अपनी पसंद से जो पढना चाहे पढ़ ले ...यह बहुत ही बेहतरीन प्रयोग लगा मुझे इस संग्रह में ..
 सामाजिक सरोकार में ..उनकी उलेखनीय रचनाओं में कोमल बेल या मोढ़ा....बेटी के कन्यादान से जुडी प्रथा पर गहरा प्रहार करती है |बेटी का विवाह हमारे समाज में आज भी एक बोझ है ...जो इन लफ़्ज़ों में ब्यान हुआ है .
बेटी ब्याही ,तो समझो गंगा नहाये
सुन कर लगा था कभी
जैसे कोई पाप पानी में बहा आये .....आज भी यह कितना कड़वा सच है ..जो जाने अनजाने हमारे कथन में शामिल है ...बेटी के विवाह के बाद यह एक लोक विश्वास है कि गंगा नहाने जाना  चाहिए यानी की एक बहुत बड़े काम से मुक्ति मिली..और इसी के अंत में एक सवाल ...
देखे आज का दूल्हा कल क्या कहता है
मुक्त रहता है ,या गंगा नहाता है ??
समाज के सरोकार से जुडी एक और रचना आदमी सड़क और आसमान ...एक बहुत बड़े सच से रूबरू करवाती है .कहने को दुनिया इतनी बड़ी और उस में रहने वाला ननकू ..जिसको मिला सिर्फ एक वह टुकड़ा रहने को जहाँ वह बेबस एक गाडी के अपने पैर के ऊपर से गुजर  जाने की वजह से गालियों पर जी रहा है एक बड़े से पुल के नीचे ..तरपाल के उस टुकड़े के साए तले..
जो कहने को तो एक छत है
किन्तु स्वयं में बेबस है
आंधी तूफ़ान बारिश
रोक नहीं पाता है
ननकू रात में लेटे लेटे
अक्सर सोचता है
काश वो गाडी उसके
पांव के ऊपर से नहीं उसके
पांव के ऊपर से नहीं
उसके सिर के ऊपर से गुजरी होती
शायद फिर उसे
न इस सडक ,न इस आसमान
और न किसी आदमी से कोई शिकायत होती !!
अब यह पंक्तियाँ ही पूरी कविता का मर्म समझा रही है ..मैं अपने लिखे शब्दों में क्या कह सकती हूँ .कितनी बेबसी है इन में ..और यह बेबसी और भी उभर जाती है जब उनकी लिखी एक और रचना आज़ादी से क्या बदला है की यह पंक्तियाँ पढ़ते हैं ..
केवल अंग्रेज कर गए कूच यहाँ से
और इस देश में क्या बदला है ?
झूठ का है अब तक बोलबाला
सच अब भी यहाँ लंगड़ा है ...हमारे देश के आज के सच पर प्रहार करती एक सच्ची रचना है यह ........और फिर यह हालत देख कर सिर्फ आक्रोश ही पैदा होगा दिल में और वह चीत्कार उठेगा
सोने की चिड़िया का ,पहले
विदेशी गिद्धों ने सुनहरे पंख थे नोचे
देसी कौए अब ,देह से मांस कचोट रहे हैं ..दोषी कौन ..है इसका ..इसका विश्लेष्ण तो खुद का आत्म निरीक्षण कर के ही पाया जा सकता है ..
मोहिन्दर जी की यह रचनाएँ समाज की जागरूक चेतना से जुडी हुई है है ,वह यूँ ही बिना पंखों के कल्पना के आकाश में नहीं उडी हैं .
अंतर अगम है बीच का स्वर्ग रसातल
जीवन अपना सत्य का ठोस धरातल
हास्य की पूंजी पास नहीं है
है मन का मर्म उपहास नहीं हैं |
 इनके संग्रह का दूसरा भाग जीवन दर्शन के सच से जुड़ा हुआ है ...जो मोहिन्दर  जी के लिखे लफ़्ज़ों से हमें खुद से बातचीत करने का मौका देता है ...मिथ्याबोध , जीवन का गणित जय पराजय , और एक नदिया इस में बहुत ही अच्छी रचनाएं कही जा सकती है ....
जीवन का कोई गणित नहीं है
न ही मनुष्य कोई आकृति
यहाँ समीकरण स्थापित सूत्रों से नहीं ,अपितु
समय की मांग के अनुसार सुलझाये जाते हैं ....सच से परिचय करवाती यह पंक्तियाँ जय पराजय से स्वतः  ही जुड़ जाती है ..
सौरमंडल में मात्र बिंदु भर यह धरा
प्रत्येक अंश किसी महाअंश से बौना है
सिंह भी धूल चाटते हैं जीवन द्वंद में
जय परिभाषित हो सकती एक छंद में
पराजय का कण कण से नाता है ......
               आत्म मंथन की श्रृंखला में भी रचनाएँ बहुत मुखर हो कर अपनी बात कह रही है ...आत्म चिन्तन ..जब व्यक्ति निरंतर सोचता रहता है तब उसका चिंतन उसके आकुल .व्याकुल मन का प्रतिबिम्ब होता है ,किन्तु जब वह अपने अस्तित्व की पूर्ण प्राप्ति कर लेता है तो तब वह अपने मनोमंथन की सभी अवस्थाओं को पार कर जाता है और कवि की लिखी यह रचनाएं इसी तरह का बोध करवाती है ...नव जीवन का उदगम समय सब कुछ बदल देता है
पर मिटती पहचान निरंतर परिवर्तन
ही किंचित
नवजीवन का उदगम है .......और जब इस बात को मनुष्य पहचान ले तो अंतर्मन के द्वार खोलने की कोशिश में लगा या कह उठता है
किस तरह उतराऊं इस अंधकूप में
किस तरह बहार आऊं धूप में
या चीत्कार करूँ भीतर बाहर
क्या कोई सुन पायेगा  ?
पर एकांत मन की भाषा को सहज ही समझ जाता है और खुद से कह उठता है
मैं चाहता हूँ
एक नितान्त एकांत
कोई न हो जहाँ ..इस भाग में आने वाला समय से भी शिकायत है बिंधे हुए पंखो से उड़ न पाने की और मृगतृष्णा में उलझे हुए प्रश्न की भी कौन हूँ मैं ?यह सवाल हर पढने वाला पाठक ही खुद से करेगा इस रचना को पढने के बाद ..
काल चक्र के गूढ़ मंथन से
जो भी उपजा पाया है
वो अमृत है या तीव्र हाला
इसका निर्णय कौन करे
भीतर अपनी उपजी कुंठाओं का
अब तक विश्लेषण न हो पाया
कौन सा परिचय दूँ मैं अपना ?
अब बात करते हैं उनके लिखे हुए श्रृंगार रस पर लिखे प्रेम पर लिखी रचनाओं की ..बात ढाई आखर की है ,चाहे उसको प्रेम कहें ,या इश्क .इसी में मिलन है इसी में विरह का ताप भी है जो छलका है अपनी लिखी इन रचनाओं से कर्णफूल सा मैं ..रूमानी एहसास की भाव पूर्ण अभिव्यक्ति है
कर्णफूल सा
मैं संग तुम्हारे
दर्पण में ही
होता प्रतिबिम्ब
और अभिव्यक्त होता मन के उदगारों से जिन्हें पढ़ लेती तुम  और कहती जो बीत गया उसको बिसरा कर समेट लो खुशियाँ आँचल में ...क्यों की प्यार का रंग बदला नहीं करता है
किस तरह अलग हो
प्यार बिना जीवन बंजर
बिना धार ज्यों हो खंजर
मान्यताओं के मौसम बदले हैं
मगर प्यार का रंग न बदला ...........प्यार की परिभाषा और प्यार के मौसम एक अनुभूति से संग रहते हैं ..
प्रेम एक अनुभूति जो कभी शांत और कभी प्रज्वलित हो कर दिल को भिगो जाती है ...तब कामनाओं का अमलतास खिल उठता है पर यह तो स्वप्न से है तभी कवि विरह में डूबा कह उठता है ....
मृगतृष्णा के आभास से
निद्रा से जब नयन खुले
अश्रुओं से भीगी थी पलकें
होंठ सूखे हुए थे प्यास से
झाँक कर देखा जो खिड़की से बाहर
धरा सुनहरी फूलों से अटी पड़ी थी
धीरे धीरे दल झर रहे थे
मेरी कामना के खिलते हुए
अमलतास से !
पर दिल तो दिल है ...प्यार की रंग में पगा हुआ भरा हुआ ..बसंत सा ..मौसम है यह मन का ...
मौसम चाहे कोई भी हो
सीधा रिश्ता दिल से है
मन के बारूदी फ़ितनों को बना पटाखा
अपनी रात दिवाली कर लेना
एक और रचना कंगन लिए फिरता हूँ ..बहुत ही रोचक लगती है जब यह पंक्तियाँ पढने में आती है
सब ढूढ़ते फिरते हैं
चेहरों में तबस्सुम
मैं दिलों में बसी सफाई तलाशता हूँ
कंगन लिए फिरता हूँ
कलाई तलाशता हूँ
प्यास लिए होंठो पर
सुराही तलाशता हूँ .......
तलाश खत्म हुई तो सवाल कई उभरे जो रुकने का समझने का और अपनी बात कहने का यूँ ढंग तलाश कर लेते हैं
अभी अभी मिले हो मुझसे
नाम केवल मेरा जाना है
हाथो से बस हाथ मिले हैं
मुझे अभी तक कहाँ पहचाना है ...और यह पहचान फिर दिल के उन रिश्तों में ढलने लगती है जो अनाम होते हैं ..
कुछ रिश्ते अनाम होते हैं
होंठो तक आ गए जो
वो "बोल "तो आम होते हैं  |
नवीन प्रयोग में इनकी रचनाओं में बाबुल बिटको ..बहुत ही सुन्दर रचना है ...
बाबुल देहरी ,लाँघी आई
हाथों मेहँदी ,पावों अलताई
अंगूठी बिछुए ,पैजन छनकाई
मायका सूना,ससुराल बधाई
बाबुल बिटको हुई पराई ...........बेटियाँ बाबुल के घर कब रह पायीं ....बहुत ही दिल को एक कसक में डुबो देने वालीं रचना है |यह दर्द वही महसूस कर सकता है ..जो बेटियों के घर में होने से रौनक समझता है ...
शब्दों का सब खेल है ,परछाई ,हम तुम चाँद अकेला इस संग्रह की उम्दा रचनाएँ कही जा सकती है
एक बार मुड कर देख ले में प्यार भरी मनुहार बहुत ही मीठी है
इक बार मुड कर देख ले
ख़्वाबों को पलकों में लिए
टिमटिमा रहे हैं कुछ दिए
बेकाबू हुई दिल की धड़कने
बसा के आरजू बेशुमार ये
इक बार मुड के देख ले
क्षणिकाओं में जो बेहतरीन कही जा सकती है ..वह हैं ,,,
उम्र भर संभाले कांच से रिश्ते
बस और किया क्या है
सुलझाते रहे बेतरतीब उलझने
जीने को जीया क्या है ?
रिश्तों का एहसास इस से अधिक कम पंक्तियों में और क्या होगा ?
टूटे नग कौन गहनों में बिठाता है
अब कोई ख्वाब नहीं
आँखे सूनी है ......आँखे और नग बिम्ब जीवन के एक सच को ब्यान कर देते हैं ...........यह बहुत कम है इस संग्रह में ..
हाइकु में अपनी बात है ..सहज ही अपनी बात यह कम लफ़्ज़ों में कहे जाने वाले इस संग्रह में संख्या में भी बहुत कम है ..पर जोरदार है
नम नयन
होंठो पर कंपन
कथित मौन
कविता मन को बांधती है  और मन को खोलती भी है वह यूँ इन कम लफ़्ज़ों में भी अपनी बात कह जाती है
छुआ उसने
न जाने क्या सोच
पुलकित मैं !
कविता संग्रह में रचनाये हीरे की कनी की तरह अलग अलग कोणों से अलग अलग किरणें बिखेरती नजर आती है वही बात मोहिन्दर  जी की रचनाओं में देखने को मिलती है |कविता हृदय की गहरी अनुभूतियों की झंकृति होती है .कवि मन की भावों की गूंज होती है और कविता लिखना हर एक के बस की बात नहीं है पर हर संवदनशील व्यक्ति का दिल कवि होता है और एक कवि के लेखन में वह भाव होना चहिये जो पढने वाला भी महसूस कर सके ..मोहिन्दर  जी का लेखन इस बात पर बहुत हद तक सही रहा है ..कहीं कहीं भटकाव की हालत लगी है ..पर फिर भी लिए गए विषयों में उन्होंने अपने लेखन से न्याय किया है | पर पढ़ते हुए कुछ विचार भी आये इस संग्रह को शायद वो या तो मेरे पहले पढ़े हुए से प्रभावित हो सकते हैं ..जैसा कि मैंने पहले कहा की बहुत समय से मैं मोहिन्दर जी का लिखा हुआ पढ़ रही हूँ .मुझे उस में उस जादू की थोड़ी सी कमी लगी जो बाँध लेती है ..गजल वो बहुत बढ़िया लिखते हैं ..उसकी कमी इस संग्रह में अखरी| और कहीं कहीं ऐसा लगा की जैसे लिखने वाले का मन कहीं बंधा हुआ है ..खुलापन  स्पष्टरूप से किसी किसी रचना में बहुत ही कंजूसी से लिखा हुआ महसूस हुआ |प्रेम विषय भी इस से अछूते नहीं रहे ...पर जहाँ मुखरित हुए हैं वहां अपनी बात कह गए हैं विरह का रंग बखूबी उकेरा है उन्होंने अपनी कलम से ..शायर मखमूर के लिखे शब्द याद आते हैं इस तरह की रचनाएँ पढ़ कर ...मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मखसूस होते हैं ,यह वह नगमा है जो हर साज पर गाया नहीं जाता | मोहिन्दर जी के लिखे में भी प्रेम को खोने पाने का सुन्दर चित्र उभर का आया है |हर विषय को खुद में समेटे हुए यह संग्रह पढने लायक है और संजोने लायक है .मोहिन्दर जी का लिखा बहुत बेहतरीन है और हो भी क्यों न क्यों कि कृतित्व हमेशा लिखने वाले का दर्पण ही तो है ......मोहिन्दर  जी के लिखे की यह संग्रह के रूप में अभी प्रथम सीढ़ी है .आगे उनसे और भी बेहतर संग्रह का इन्तजार हर पढने वाले को रहेगा .उन्ही के लिखे शब्दों की परिभाषा में ..
शब्दों का सब खेल है
शब्द प्राण है
शब्द बाण है
कुछ सहलाते
कुछ गहरे गड जाते
शब्दों का सब खेल है .....
यह शब्द दिल के दर्पण में जब झांकते हैं तो एक झंझाहट पैदा कर देते हैं आपको अपने अक्स से मिलवा देते हैं |

14 comments:

सदा said...

शब्दों का सब खेल है
शब्द प्राण है
शब्द बाण है
कुछ सहलाते
कुछ गहरे गड जाते
शब्दों का सब खेल है .....
इनका तो हर अपने-बेगाने से होता अद्भुत मेल है ..
बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

vandana gupta said...

आपने तो बहुत सुन्दर समीक्षा की है जिसे पढने के बाद किताब पढने का दिल हो गया वैसे मोहिन्दर जी की रचनायें तो हमेशा से पसन्द आती हैं।

Mohinder56 said...

रँजना जी,

मैँ आपका दिल से आभारी हूँ कि आपने अपना बहुमुल्य समय देकर मेरा कविता सँग्रह गहराई मेँ जा कर पढा और इतनी आकर्षक समीक्षा लिखी. आपने सही लिखा है मैंने अनुक्रम को अलग अलग श्रेणियो मेँ इसी कारण से रखा ताकि पाठक अपने मूड के अनुसार रकनायेँ पढ पायेँ और अचानक ही विषय बदलने से तन्मयता भँग ना हो. वैसे तो लेखक को अपनी सभी रचनायेँ अच्छी लगती हैँ परन्तु अंतिम निर्णय सदा पाठक का ही होता है. आपने अपनी पारखी नजर से मेरी पसन्दीदा रचनाओँ को बखुबी छाँट लिया है.

आपने लिखा है कि मैँ गजल अच्छी लिखा लेता हूँ परन्तु इस सँग्रह मेँ कहीँ उनका समावेश नहीँ है. मैँने गजलेँ लिखी तो जरूर पर इस विधा मेँ प्राँगत लोगोँ का मानना है कि वह गजल के पेरामीटर पर 100प्रतिशत खरी नहीँ हैँ. मैँ उनको एक बार फिर से सँवार रहा हूँ और अगला प्रयास एक गजल सँग्रह प्रकाशिता करने का ही होगा. उसकी समीक्षा लिखने की आप अभी से तैयारी कर लीजिये. बस इंतजार है कि इस कविता सँग्रह को पाठकोँ का कितना स्नेह मिलता है.

जहाँ तक कविता सँग्रह मेँ कमी की बात है वह इसलिये नजर आती है क्योँकि विषय तो गिनेचुने होते हैँ और उन पर हम से अच्छे कवि पहले लिख चुके होते हैँ और तुलनात्मक रूप से कुछ रचनायेँ कमजोर पड जाती हैँ.

मुझे अन्य पाठकोँ की प्रतिक्रियाओँ की भी प्रतीक्षा रहेगी.

रँजना जी इस समीक्षा को पाठकोँ तक पहुँचाने के लिये एक बार फिर से हार्दिका आभार



संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुंदर पुस्तक परिचय

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर समीक्षा की है..बधाई..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

.मोहिन्दर जी का लिखा काव्य संग्रह "दिल का दर्पण" की बेहद इमानदारी से सुन्दर समीक्षा के लिये
आपको बधाई,,,

नवरात्रि की शुभकामनाएं,,,,

RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही बेहतरीन समीक्षा..
बधाई..
:-)

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर समीक्षा रंजू......मोहिंदर जी..गज़ल संग्रह का इन्तेज़ार है..
शुभकामनाएं..

अनु

Darshan Darvesh said...

कोशिश करूंगा किताब कहीं से मिले, इसे पढूं और अनुदित कर सकूं .....

rashmi ravija said...

बहुत ही पसंद आये मोहिंदर जी की कविताओं के अंश, पूरी कविता पढने की रूचि जाग गयी है।
बहुत ही सुन्दर पुस्तक परिचय

मुकेश कुमार सिन्हा said...

pyare shabd... ek behtareen book ke liye... shubhkamnayen..

vin said...

बहुत सुन्दर..

vin said...

बहुत सुन्दर.. बधाई..

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर समीक्षा..