दर्द की महक (कविता-संग्रह)
कवयित्री- हरकीरत हीर कवयित्री हरकीरत हीर की नज़्मों का संग्रह मूल्य- रु 225 प्रकाशक- हिंद युग्म, 1, जिया सराय, हौज़ खास, नई दिल्ली-110016 (मोबाइल: 9873734046) फ्लिकार्ट पर खरीदने का लिंक |
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"न जाने कितनी खामोशियाँ आपसे आवाज़ मांगती है
न जाने कितने गुमनाम चेहरे आपसे पहचान माँगते हैं
और एक आग आपकी रगों में सुलगती है ,अक्षरों में ढलती है"
दर्द की महक हरकीरत हीर द्वारा लिखित यह काव्य संग्रह अमृता की लिखी इन्ही पंक्तियों को को दर्शाता है ..दर्द की महक जब अक्षरों में ढलती है तो वह दूर तक फ़ैल जाती है .चाहे वह किसी रूप में भी क्यों न लिखी गयी हो चाहे वह कितनी भी दबाई गयी क्यों न हो ..वह तो बस महक जाती है |वैसे भी जब जब मैंने हीर जी का लिखा पढा है तो दर्द और हीर एक दूजे के साथ साथ ही चलते लगे मुझे ...और दर्द को इन्होने बहुत अच्छे से लफ़्ज़ों में ढाल कर औरों के दर्द को भी एक सकूं इस तरह से दिया है कि सबको उस में अपनी बात नजर आती है ..
अमृता इमरोज़ को समर्पित यह संग्रह पूरी तरह से यह दर्शाता है कि लेखिका का दिल का हर कोना अमृता के रंग में रचा बसा है ...कहीं कहीं पढ़ते हुए ऐसा लगा कि अमृता खुद हरकीरत जी की कलम से बोल उठी हैं ...इस संग्रह का पहला पन्ना ही बहुत विशेष ढंग से अपनी बात की शुरुआत करता हुआ लगता है ..इमरोज़ जी को फ़ोन लगाती हूँ ..और वह जवाब में जो नज्म भेज देते हैं ..वही हरकीरत जी की पहचान करवा देते हैं ..न कभी हीर ने /न कभी रांझे ने /अपने वक़्त के कागज पर अपना नाम लिखा /फिर भी लोग न हीर का नाम भूले /न रांझे का ...हीर तुम्हारी नज्मे खुद बोलती हैं उन्हें किसी तम्हीद (प्रस्तवना )की जरूरत नहीं .......और बस वहीँ से हीर जी के व्यक्तित्व का ,उनके लेखन से जैसे पढने वाला खुद बा खूब रूबरू होने लगता है |
इस काव्य संग्रह में जैसे जैसे आप पन्ने पलटते जाते हैं एक बात अपनी तरफ जो खींचती है वह है ऊपर लिखी पंक्तियाँ ,जो लिखी हर रचना से जुडी हुई हैं और नीचे लिखी वह टिप्पणियाँ --जो हीर जी के ब्लॉग पर पढ़ते हुए उनके पढने वाले चाहने वाले देते रहे हैं ,उन्हें साथ पढ़ते पढ़ते हुए जैसे आप एक सफ़र में खोये हुए मुसाफिर सा खुद को महसूस करते हैं जो हर भाव में हीर जी के साथ चल रहा है | यही हीर जी के लेखन की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह आपको उन शब्दों से और पढने के बाद उन शब्दों के जादू से रिहा नहीं होने देती ..और आप पढने के बाद खुद भी गुनगुना उठते हैं ठहर ऐ सुबह /रात की सांसे रुकी हैं अभी /टांक लेने दे उसे मोहब्बत के पैरहन पर /इश्क का बटन .....पर हीर जी वही अगली नज्म में खुदा से सवाल कर बैठती है कि रब्ब तेरी बनायी मोहब्बतों की मूरत क्यों इंसानी मोहब्ब्बत से महरूम है ...यही तो सच है सबसे बड़ा आज के समय का ..मोहब्बत बिखरी है दुनिया में यह दिल फिर भी तरसता है .....मोहब्बत जो दवा भी है ,दर्द भी ,सकून भी और बेकरारी भी ,करार भी है ,बेताबी भी ...और मासूम भी ...वो मुस्करा के पूछता डेयरी मिल्क या किट-कैट?वो खिलखिला के कहती किट कैट .और वो उदास हो जाता ..हीर जी की लिखी यह नज्म मोहब्बत सीधे दिल में उतर जाती है ...और करवाचौथ नज्म------------ नज्म में आखिरी पंक्तियाँ वह धीमे से /रख देती अपने तप्त होंठ उसके लबों पे /और कहती है ..आज करवाचौथ है जान ..खिड़की से झांकता चौथ का चाँद होले होले मुस्कारने लगता है और इस नज्म के यूँ पूरे होते होते पढने वाले की आँखों में नमी आ कर रुक जाती है ...और कोई दर्द आगोश में जैसे दरकने लगता है ...धीमे से यह कहते हुए ..मैं हूँ न तेरे पास ........हीर जी कि लिखी नज्मे अपने में मुक्कमल है पर कहीं कहीं ऐसा लगता है मन में अभी भी कुछ भरा हुआ है .सहमा हुआ है .रुका हुआ है ..ख़ामोशी के लफ्ज़ हैं यह जो चुपके चुपके बहाते हैं आंसू ख्वाइशों कफन ओढ़े ...
दर्द हीर जी की कलम से हर अंदाज़ में ब्यान हुआ है चाहे वह पति पत्नी के नाजुक रिश्ते पर हो .चाहे फिर रात की उदासियों का ज़िक्र हो ..या फिर वह तवाइफ़ का दर्द हो ...लालटेन की धीमी रोशनी में /उसने वक़्त से कहा -मैं जीवन भर ले तेरी सेवा करुँगी मुझे यहाँ से ले चल /वक़्त हँस पड़ा /कहने लगा मैं तो पहले से ही लूला हूँ /आधा घर का आधा घाट का ...और यह पढ़ते ही वक़्त वहीँ थम जाता है ..अमृता प्रीतम की रसीदी टिकट ..हिंदी पंजाबी साहित्य में एक अदभुत कहानी है और वह हीर की कलम से भी ब्यान हुई है ..क्यों वह सिर्फ अमृता की कहानी नहीं और भी कई औरतों की कहानी है ...जिसे देख कर मिटटी भी रोई आज नसीब अपना /के इसी कोख से ये सदाकत जनी है ........और इस बात को कुछ इस नजर से देखना है तो देखना रिश्तों की इन गहराई को अदालत में जा कर जहाँ हर रोज़ न जाने कितने रिश्ते /जले कपड़ों में देते हैं गवाही
असम में जन्मी हीर के लेखन में अमृता का प्रभाव बहुत ही अधिक है .वह अपना जन्मदिन भी ३१ अगस्त को अमृता के जन्मदिन वाले दिन ही मनाती है और .दर्द की महक तो समर्पित ही इमरोज़ -अमृता को है ..इसी संग्रह के लिए उन्हें मेघालय के उप-मुख्य मंत्री श्री बी. ऍम . लानोंग के हाथों सम्मानित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | ब्लॉग जगत में तो सबकी प्रिय वह हैं ही ..उनकी किताब दर्द की महक में नीचे आये टिप्पणियों में कई नाम यह बताते हैं कि उनके लिखे दर्द में हर किसी को अपना दर्द महसूस होता है और वह उसी नज्म में खो कर रह जाता है | संजो के रखने लायक संग्रह है यह ..मैं अमृता को बहुत गहरे से पढ़ती हूँ ...पर यहाँ हीर का लिखा पढ़ कर मुझे भी दोनों में अंतर करना मुश्किल लगा ..कि यह हीर ने लिखा या अमृता ने खुद .अब इस को उपलब्धि भी मान सकते हैं और कमी भी ..क्यों कि मैं हीर को अमृता से अलग कर ही नहीं पायी मैं कई नज्मों में |इस संग्रह का विमोचन प्रगति मैदान बुक फेयर में हुआ था जहाँ उस दिन मुझे खुद के न जा पाने के अफ़सोस है पर अब जब यह महक मैं पढ़ चुकी हूँ तो लगता है वही तो थी मैं भी ....इमरोज़ के ख़त के साथ इस संग्रह के आखिरी पन्ना हीर के इस संग्रह की समाप्ति जरुर कहा जा सकता है पर यही आगाज भी है उस अगले सफ़र का जहाँ हीर फिर से अपने लिखे दर्द की महक से हमें रूबरू करवाती हुई कहेंगी ..अभी तो मेरी इन आँखों ने वक़्त के कई पन्ने पढने हैं /जहाँ रिश्तों के धागे /दर्द की दरगाह पर बैठे अपनी उम्रे गिनते हैं ....आप यदि इसी महक से मिलना चाहते हैं तो इसी संग्रह से रूबरू हो .जो दर्द के काले रंग में लिपटा अपनी गुलाबी गुलाब की कली से मोहित करता हुआ आपको अपने ही अन्दर कहीं गहरे में उतार लेगा और आप खुद को पढने के बाद भी उसी के सम्मोहन में जकड़ा हुआ महसूस करेंगे |
17 comments:
हीर जी को पढ़ना, मानो मोहब्बत करना किसी से....पूरी शिद्दत से,चाहे वो एकतरफा मोहब्बत क्यूँ न हो..
समीक्षा ने पूरी तरह न्याय किया है...
आपका बहुत आभार
अनु
.कहीं कहीं पढ़ते हुए ऐसा लगा कि अमृता खुद हरकीरत जी की कलम से बोल उठी हैं ...
bahut badi baat kah di aapne... par maine iss book ko dekha hai, aur harkeerat jee ko padha hai, bahut baar... bahut sach kaha...!!
sameeksha ke to aap jadugar ho...!!
जितना हीर की नज़्में महसूस होती हैं , उतनी ही सुंदर और महसूस हुयी यह पुस्तक समीक्षा ... आभार
बहुत सुन्दर समीक्षा..हरकीरत जी को बधाई...
दर्द हीर जी की कलम से हर अंदाज़ में ब्यान हुआ है तो उसकी महक को सांझा किया है आपने इस समीक्षा से ... लाजवाब प्रस्तुति ... बधाई सहित अनंत शुभकामनाएं
हरकीरात जी को पढना तो हमेशा ही भाता है और उस पर आपकी समीक्षा ने कमाल कर दिया। आप दोनो को बधाई।
एक प्रवाह में पढ़ी जा सकने वाली समीक्षा
aaj pahli baar aapke blog par aana hua...vividh rango se sajaya hua sarthak prayass..bahut achha lagaa aa kar..
हीर जी भावों की गहराई में उतर कर लिखती हैं..
zaroor padhege
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हरकीरत जी को बधाई..
दर्द की महक" पुस्तक की लाजबाब समीक्षा के लिए
रंजना जी बहुत२ बधाई,,,
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
बहुत सुन्दर लाजबाब समीक्षा..के लिए,,,
रंजना जी बहुत२ बधाई,,
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ
मेरे ब्लॉग
जीवन विचार पर आपका हार्दिक स्वागत है।
हरकीरत जी की नज्मों में दर्द की लहर साफ़ दिखाई देती है ... बहुत ही कमाल की समीक्षा की है आपने ... जान डाल दी है किताब में ... बधाई है इस प्रकाशन पे ...
बहुत जबरदस्त प्रभाव शाली समीक्षा कल के चर्चा मंच पर डालूंगी आभार
रंजू जी आपने तो आँखें नम कर दी .....
ऋणी हो गई आपकी ...
बहुत ही दिल से लिखी आपने पोस्ट ....
इस पुस्तक को बहुत पसंद किया गया ...
कल जलन्दर से एक रिटायर्ड इनकम टैक्स आफिसर का फोन आया वो इतने प्रभावित थे कि मेरा पंजाबी का संग्रह
पंजाब साहित्य अकादमी से छपवाने की गुजारिश की ....
आप इस पोस्ट को इस मेल bringania@gmail.com भेज दें ...ये विनोद रिंगानिया जी हैं यहाँ के दैनिक समाचार पत्र के कार्यकारी संपादक ...अपना पता मो न. भी लिख दें ...
aapko bahut bahut badhai aapke shabd bolte hain .aur hamari bhavnaon ko panah mil jati hai
badhai
rachana
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