प्रेम के विषय में बहुत कुछ पढ़ा और समझा गया है ... प्रेम का नाम सोचते ही ...नारी का ध्यान ख़ुद ही आ जाता है ... क्यों कि नारी और प्रेम को अलग करके देखा ही नही जाता|
मैने जितनी बार अमृता ज़ी को पढ़ा प्रेम का एक नया रूप दिखा नारी में और उनकी कुछ पंक्तियां
दिल को छू गयी |उनके लिखे एक नॉवल "" दीवारो के साए'' में शतरूपा .. की पंक्तियां नारी ओर प्रेम को सही ढंग से बताती हैं ...
औरत के लिए मर्द की मोहब्बत और मर्द के लिए औरत की मोहब्बत एक दरवाज़ा होती है और इसे दरवाज़े से गुज़र कर सारी दुनिया की लीला दिखाई देती | लेकिन मोहब्बत का यह दरवाज़ा जाने खुदा किस किस गर्दो _गुबार मैं खोया रहता है की बरसो नही मिलता, पूरी पूरी जवानी रोते हुए निकल जाती है तड़पते हुए यह दरवाज़ा अपनी ओर बुलाता भी है ओर मिलता भी नही...
प्यार का बीज जहाँ पनपता है मीलों तक विरह की ख़ुश्बू आती रहती है,............ यह भी एक हक़ीकत है की मोहब्बत का दरवाज़ा जब दिखाई देता है तो उस को हम किसी एक के नाम से बाँध देते हैं| पर उस नाम में कितने नाम मिले हुए होते हैं यह कोई नही जानता. शायद कुदरत भी भूल चुकी होती है कि जिन धागो से उस एक नाम को बुनती है वो धागे कितने रंगो के हैं, कितने जन्मो के होते हैं.......
शिव का आधार तत्व हैं और शक्ति होने का आधार तत्व :..वो संकल्पहीन हो जाए तो एक रूप होते हैं . संकल्पशील हो जाए तो दो रूप होते हैं ,इस लिए वो दोनो तत्व हर रचना में होते हैं इंसानी काया में भी . कुदरत की और से उनकी एक सी अहमियत होती है इस लिए पूरे ब्रह्मड में छह राशियाँ पुरुष की होती है और छह राशियाँ स्त्री|
शतरूपा धरती की पहली स्त्री थी ठीक वैसे ही जैसे मनु पहला पुरुष था|ब्रह्मा ने आधे शरीर से मनु को जन्म दिया और आधे शरीर से शत रूपा को | मनु इंसानी नस्ल का पिता था,
और शतरूपा इंसानी नस्ल की माँ..|
अंतरमन की यात्रा यह दोनो करते हैं लेकिन रास्ते अलग अलग होते हैं मर्द एक हठ्योग तक जा सकता है और औरत प्रेम की गहराई में उतर सकती है ...साधना एक विधि होती है लेकिन प्रेम की कोई विधि नही होती ,इस लिए मठ और महज़ब ज्यदातर मर्द बनाता है औरत नही चलाती|
लोगो के मन में कई बार यह सवाल उठा कि बुद्ध और महावीर जैसे आत्मिक पुरुषों अपनी अपनी साधना विधि में औरत को लेने से इनकार क्यूं किया ? इस प्रश्न की गहराई में उतर कर रजनीश ज़ी ने कहा ..
बुद्ध का सन्यास पुरुष का सन्यास है , घर छोड़ कर जंगल को जाने वाला सन्यास ,जो स्त्री के सहज मन को जानते थे कि उसका होना जंगल को भी घर बना देगा ! इसी तरह महवीर जानते थे कि स्त्री होना एक बहुत बड़ी घटना है..उसने प्रेम की राह से मुक्त होना है साधना की राह से नही , उसका होना उनका ध्यान का रास्ता बदल देगा |
वह तो महावीर की मूर्ति से भी प्रेम करने लगेगी ... उसकी आरती करेगी हाथो में फूल ले ले कर उसके दिल में जगह बना लेगी ,उसके मन का कमल प्रेम में खिलता है ....ध्यान साधना में बहुत कम खिल पाता है|
उन्ही की लिखी कविता एक कविता है जो प्रेम के रूप को उँचाई तक
मैने जितनी बार अमृता ज़ी को पढ़ा प्रेम का एक नया रूप दिखा नारी में और उनकी कुछ पंक्तियां
दिल को छू गयी |उनके लिखे एक नॉवल "" दीवारो के साए'' में शतरूपा .. की पंक्तियां नारी ओर प्रेम को सही ढंग से बताती हैं ...
औरत के लिए मर्द की मोहब्बत और मर्द के लिए औरत की मोहब्बत एक दरवाज़ा होती है और इसे दरवाज़े से गुज़र कर सारी दुनिया की लीला दिखाई देती | लेकिन मोहब्बत का यह दरवाज़ा जाने खुदा किस किस गर्दो _गुबार मैं खोया रहता है की बरसो नही मिलता, पूरी पूरी जवानी रोते हुए निकल जाती है तड़पते हुए यह दरवाज़ा अपनी ओर बुलाता भी है ओर मिलता भी नही...
प्यार का बीज जहाँ पनपता है मीलों तक विरह की ख़ुश्बू आती रहती है,............ यह भी एक हक़ीकत है की मोहब्बत का दरवाज़ा जब दिखाई देता है तो उस को हम किसी एक के नाम से बाँध देते हैं| पर उस नाम में कितने नाम मिले हुए होते हैं यह कोई नही जानता. शायद कुदरत भी भूल चुकी होती है कि जिन धागो से उस एक नाम को बुनती है वो धागे कितने रंगो के हैं, कितने जन्मो के होते हैं.......
शिव का आधार तत्व हैं और शक्ति होने का आधार तत्व :..वो संकल्पहीन हो जाए तो एक रूप होते हैं . संकल्पशील हो जाए तो दो रूप होते हैं ,इस लिए वो दोनो तत्व हर रचना में होते हैं इंसानी काया में भी . कुदरत की और से उनकी एक सी अहमियत होती है इस लिए पूरे ब्रह्मड में छह राशियाँ पुरुष की होती है और छह राशियाँ स्त्री|
शतरूपा धरती की पहली स्त्री थी ठीक वैसे ही जैसे मनु पहला पुरुष था|ब्रह्मा ने आधे शरीर से मनु को जन्म दिया और आधे शरीर से शत रूपा को | मनु इंसानी नस्ल का पिता था,
और शतरूपा इंसानी नस्ल की माँ..|
अंतरमन की यात्रा यह दोनो करते हैं लेकिन रास्ते अलग अलग होते हैं मर्द एक हठ्योग तक जा सकता है और औरत प्रेम की गहराई में उतर सकती है ...साधना एक विधि होती है लेकिन प्रेम की कोई विधि नही होती ,इस लिए मठ और महज़ब ज्यदातर मर्द बनाता है औरत नही चलाती|
लोगो के मन में कई बार यह सवाल उठा कि बुद्ध और महावीर जैसे आत्मिक पुरुषों अपनी अपनी साधना विधि में औरत को लेने से इनकार क्यूं किया ? इस प्रश्न की गहराई में उतर कर रजनीश ज़ी ने कहा ..
बुद्ध का सन्यास पुरुष का सन्यास है , घर छोड़ कर जंगल को जाने वाला सन्यास ,जो स्त्री के सहज मन को जानते थे कि उसका होना जंगल को भी घर बना देगा ! इसी तरह महवीर जानते थे कि स्त्री होना एक बहुत बड़ी घटना है..उसने प्रेम की राह से मुक्त होना है साधना की राह से नही , उसका होना उनका ध्यान का रास्ता बदल देगा |
वह तो महावीर की मूर्ति से भी प्रेम करने लगेगी ... उसकी आरती करेगी हाथो में फूल ले ले कर उसके दिल में जगह बना लेगी ,उसके मन का कमल प्रेम में खिलता है ....ध्यान साधना में बहुत कम खिल पाता है|
उन्ही की लिखी कविता एक कविता है जो प्रेम के रूप को उँचाई तक
पहुँचा देती है
आसमान जब भी रात का
रोशनी का रिश्ता जोड़ते हैं,
सितारे मुबारकबाद देते हैं
मैं सोचती हूँ ,
अगर कही ...........मैं ,
जो तेरी कुछ नही लगती
जिस रात के होंठो ने
कभी सपने का माथा चूमा था
सोच के पैंरों में उस रात से
एक पायल बज रही है,
तेरे दिल की एक खिड़की ,
जब कही बज उठती है
,सोचती हूँ ,
मेरे सवाल की
यह कैसी ज़रूरत है !
हथेलियों पर इश्क़ की
मेहंदी का कोई दावा नही
हिज़रे का एक रंग है ,
और तेरे ज़िक्र की एक ख़ुश्बू
मैं जो तेरी कुछ नही लगती !!!!!!
आसमान जब भी रात का
रोशनी का रिश्ता जोड़ते हैं,
सितारे मुबारकबाद देते हैं
मैं सोचती हूँ ,
अगर कही ...........मैं ,
जो तेरी कुछ नही लगती
जिस रात के होंठो ने
कभी सपने का माथा चूमा था
सोच के पैंरों में उस रात से
एक पायल बज रही है,
तेरे दिल की एक खिड़की ,
जब कही बज उठती है
,सोचती हूँ ,
मेरे सवाल की
यह कैसी ज़रूरत है !
हथेलियों पर इश्क़ की
मेहंदी का कोई दावा नही
हिज़रे का एक रंग है ,
और तेरे ज़िक्र की एक ख़ुश्बू
मैं जो तेरी कुछ नही लगती !!!!!!
20 comments:
गहन आलेख..प्रेम की गहराई को समझना बहुत कठिन है..
खूबसूरत गहन आलेख.
मैं जो तेरी कुछ नही लगती !!!!!!………फिर भी मोहब्बत परवान चढती है।
प्रेम की गहराई लिए गहन आलेख..
बहुत बहुत सुन्दर रचना...
गहन अभिवयक्ति...... प्रभावशाली प्रस्तुती....
इन दिनों बादलों की सैर पर हैं क्या ? :)
बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,
शिवरात्रि की शुभकामनाएँ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति
क्या बात है...डूबा ले गई भावों के प्रवाह में...उम्दा!!
हथेलियों पर इश्क़ की
मेहंदी का कोई दावा नही
हिज़रे का एक रंग है ,
और तेरे ज़िक्र की एक ख़ुश्बू
kya baat hai....meri nayi post pe bhee aapka swaagat hai!
मैं जो तेरी कुछ नही लगती !!!
आह! और वाह!
आसमान जब भी रात का
रोशनी का रिश्ता जोड़ते हैं,
सितारे मुबारकबाद देते हैं
गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुति।
बहुत ही गहरी बात को सहज ही लिखा है ...
प्रेम तो बस एक अनुभूति है ,... रिश्तों की पकड़ से बहुत बाहर ...
प्रेम की गहराइयों की थाह किसने पाई ? कुछ ना लगते हुए भी सब कुछ हो जाना .......आह !
बढ़िया लिखा है.. कविता बेहद बेहद खूबसूरत है। शुक्रिया
sartahi likha hai,
aur koi rasta bhi nahim hai.
is se upar utha kar sochne ki jarurat bhi nahin hai,
bahut sunder prastuti......
bahut sunder prastuti......
bahut sunder prastuti......
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